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संतान प्राप्ति के लिए महिलाओं ने की आंवला वट की पूजा

locationलखनऊPublished: Nov 12, 2021 02:56:44 pm

Submitted by:

Mahendra Pratap

हिन्दू धर्म में मान्यता है कि आंवला या अक्षय नवमी के दिन भगवान कृष्ण वृन्दावन से मथुरा गए थे। इस दिन उन्होंने अपने कर्मक्षेत्र में कदम रखा था। आंवला नवमी की पूजा खास तौर पर महिलाएं संतान प्राप्ति के लिए करती हैं। इस बार आंवला नवमी का पर्व दो दिन मनाया जा रहा है।

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लखनऊ. हिन्दू मान्यता के अनुसार कार्तिक मास में अनेक त्योहार मनाये जाते है। कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को आंवला नवमी या अक्षय नवमी और इच्छा नवमी के जाना जाता है। इस दिन महिलाएं संतान प्राप्ति के लिए आंवला के पेड़ की विधि-विधान से पूजा करने के बाद उसी पेड़ के नीचे प्रसाद चखती है।
इस बार दो दिन मनाया जा रहा अक्षय नवमी का पर्व
हिन्दू धर्म में मान्यता है कि आंवला या अक्षय नवमी के दिन भगवान कृष्ण वृन्दावन से मथुरा गए थे। इस दिन उन्होंने अपने कर्मक्षेत्र में कदम रखा था। आंवला नवमी की पूजा खास तौर पर महिलाएं संतान प्राप्ति के लिए करती हैं। इस बार आंवला नवमी का पर्व दो दिन मनाया जा रहा है। 12 नवंबर दिन शुक्रवार को सुबह 5.51 बजे से कार्तिक मास शुक्ल पक्ष नवमी तिथि समाप्त, 13 नवंबर शनिवार को सुबह 5.31 बजे तक
अक्षय नवमी पूर्वाह्न समय- सुबह 6.41 बजे से दोपहर 12.05 बजे तक
कुल अवधि- 05 घंटे 24 मिनट है।
इस तरह से करें आंवला या अक्षय नवमी की पूजा
आंवला नवमी की पूजा के लिएआंवले का पौधा, पत्ते एवं फल, तुलसी पत्र, कलश एवं जल, कुमकुम, हल्दी, सिंदूर, अबीर, गुलाल, चावल, नारियल, सूत का धागा, धूप, दीप श्रृंगार का सामान, दान के लिए अनाज आदि सामग्री की जरूरत होती है। आंवला नवमी के दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करके स्वच्छ वस्त्र धारण करें। आंवले के पेड़ की पूजा कर उसकी परिक्रमा करें। आंवला नवमी के दिन आंवला के वृक्ष की हल्दी, कुमकम, फल-फूल आदि से विधिवत् पूजा करें। आंवला वृक्ष की जड़ में जल और कच्चा दूध अर्पित करें। आंवले के पेड़ के तने में कच्चा सूत या मौली लपेटते हुए आठ बार परिक्रमा करें। इसके बाद पूजा करने के बाद कथा जरूर सुने। महिलाएं बिंदी, चूड़ी, मेहंदी, सिंदूर आदि आंवला के पेड़ पर चढ़ाएं। इस दिन ब्राह्मण महिला को सुहाग का समान, खाने की चीज और पैसे दान में देना अच्छा मानते है।
अक्षय नवमी की पूजा करने से कोढ़ मुक्त हुई थी महिला
आंवला नवमी की कथा के अनुसार एक व्यापारी और उसकी पत्नी काशी में रहते थे। उनकी कोई संतान नहीं थी। एक दिन व्यापारी की पत्नी को जीवित बच्चे की बलि भैरव बाबा के सामने देने की किसी ने सलाह दी। व्यापारी की पत्नी ने बात मानकर ऐसा ही किया। जिसके फल स्वरुप वह स्त्री कोढ़ ग्रस्त हो गई। अपनी पत्नी की यह हालत देख व्यापारी बहुत दुखी था। उसने अपनी पत्नी से इसका कारण पूछा। तब उसकी पत्नी ने बताया कि उसने एक बच्चे की बलि दी। व्यापारी ने अपनी पत्नी को अपने कुकर्म के प्रायश्चित करने की सलाह दी। उतनी ने व्यापारी की बात मानकर गंगा स्नान किया और एक दिन प्रसन्न होकर मां गंगा ने प्रसन्न होकर उसको रोगमुक्त कर दिया। इसके साथ ही उसको कार्तिक मास के शुक्ल। पक्ष की नवमी को आंवला नवमी का व्रत रहने को कहा। व्यापारी की पत्नी ने बड़े विधि-विधान के साथ पूजा की और उसे सुंदर शरीर के साथ ही पुत्र की प्राप्ति भी हुई। तभी से महिलाएं संतान प्राप्ति की कामना करते हुए आंवला नवमी का व्रत रखती है।
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