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Work Load on Primary teachers: ‘कोल्हू का बैल’ बने प्राथमिक शिक्षक, जी हुजूरी बनी गुरुजनों की मजबूरी

locationलखनऊPublished: May 18, 2023 12:16:39 am

Submitted by:

Markandey Pandey

Work Load on Primary teachers: डॉ एपीजे अब्दुल कलाम जब बच्चों से बातचीत करते तो अपने प्राथमिक शिक्षकों की चर्चा जरुर किया करते थे। भारत दुनिया का इकलौता ऐसा देश है, जहां गुरु-शिष्य परंपरा महाकाव्यों की रचनाओं से लेकर आज तक कायम है। लेकिन अब प्राथमिक शिक्षक सरकारी बाबू बना दिए गए हैं, जिनसे शिक्षा छोडक़र बाकी सभी काम लिया जा रहा है। आइए जानते हैं विस्तार से प्राथमिक शिक्षकों का दर्द…

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प्रतीकात्मक कार्टून

प्राथमिक स्कूलों में तैनात शिक्षक सरकार के लिए ‘कोल्हू का बैल’ या ‘रोबोट’ बन गए हैं, जिनसे हर वह कार्य लिया जा रहा है, जिसका बच्चों की शिक्षा से कोई लेना-देना नहीं है। इन शिक्षकों के पास पढ़ाने के अलावा सरकार ने सभी काम दे रखे हैं। जैसे संचारी रोग नियंत्रण, पेट के कीड़े मारने की दवा खिलाने, स्कूल चलो अभियान, शिक्षक संकुल, विभागीय अधिकारियों के साथ बैठक, चुनाव संबंधित कार्य, पोलियो उन्मूलन कराना, खाद्यान्न वितरण कराना, हाउसहोल्ड सर्वे, दस्तक कार्यक्रम, मतगणना, जनगणना, मध्यान्ह भोजन गणना, मिशन इंद्र धनुष, जीरो बैंलेंस खाता खुलवाना आदि सभी कार्य प्राथमिक शिक्षकों को ही करना है। ऐसे में सवाल उठता है कि शिक्षक बच्चों को कब पढ़ाए।
करे अभिभावक, भुगते शिक्षक
बच्चों के स्कूल यूनिफार्म का पैसा सरकार अभिभावकों के खाते में भेजती है और कई बार अभिभावक उस पैसे को दूसरे मद में खर्च कर देता है। इस स्थिति में यदि बच्चा स्कूल यूनिफार्म में नहीं आता तो शिक्षक ही जिम्मेेदार माना जाएगा। प्रदेश में ऐसे अनेक विद्यालय हैं, जो शिक्षकों की कमी से जूझ रहे हैं। कई जगहों पर तो शिक्षामित्र पर ही बच्चों का भविष्य निर्भर है। ऐसे में शिक्षकों की ड्यूटी चुनाव में बीएलओ, बीएलओ सुपरवाईजर, मतगणना और अन्य कार्यो में लगती है तो बच्चों की पढ़ाई-लिखाई पूरी तरह ठप्प हो जाती है। स्कूल चलो अभियान के तहत आउॅट ऑफ स्कूल बच्चों के चिंहिकरण, पंजीकरण, नामांकन, परिवार सर्वे आदि कार्य करना मजबूरी बनी हुई है।
उच्च न्यायालय का आदेश
शिक्षकों से गैर शैक्षणिक कार्य करवाने को लेकर उच्च न्यायालय ने कई बार नाराजगी भी प्रगट किया है। उच्च न्यायालय ने शिक्षकों से गैर शैक्षणिक कार्य नहीं कराए जाने को लेकर स्पष्ट कहा भी है। लेकिन लाल फिताशाही और सरकारी तंत्र को इससे फर्क नहीं पड़ता। चाहे यातायात जागरुकता सप्ताह हो, चाहे आयुष मंत्रालय के औषधीय वाटिका लगवाने का अभियान हो या पर्यावरण संरक्षण हर कार्य में शिक्षकों की सहभागिता जरुरी हो गया है।
महानिदेशक स्कूल शिक्षा और राज्य परियोजना कार्यालय एक तरफ शिक्षा संवर्धन के लिए नए-नए प्रयोग बेसिक शिक्षा में कर रहा है तो दूसरी तरफ शिक्षण कार्य में तीन दर्जन गतिविधियों के अलावा एक दर्जन गैर शैक्षणिक कार्य भी इन्हीं शिक्षकों के जिम्मे है। इसके बार विभिन्न प्रकार की समितियों का गठन कर शिक्षण कार्य की गुणवत्ता की जांच भी की जाती है।
साफ-सफाई भी शिक्षकों के भरोसे
परिषदीय विद्यालयों में परिचारक या प्यून की नियुक्ति न के बराबर है। ऐसे में विद्यालय की साफ-सफाई, समय से स्कूल खोलना, समय-सारणी लिखना, फूल-पौधों में पानी देना और बीईओ कार्यालय से मांगी गई सूचनाओं को व्यवस्थित करके भेजना। इतना ही नहीं, इन विद्यालयों में क्लर्क तो होते नहीं इसलिए प्रेरणा पोर्टल अपडेट करना, छात्रों का डाटा फीड करना, प्रमाणिकरण करना, यू डाइस पोर्टल पर बच्चों की संख्या और डाटा अपलोड करना।
इसके साथ ही डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के तहत बच्चों के अभिभावकों के खाते में पैसा भेजना शिक्षकों की रोजाना की जिम्मेदारी बन गई है। विभाग में 80 के लगभग ऐप चल रहे हैं, जिन पर शिक्षकों और अधिकारियों द्वारा कार्य किया जा रहा है। काम के बोझ से दबे शिक्षकों को सरकारी बाबू से आगे बढक़र कोल्हू का बैल बना दिया गया है।
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