लखनऊ। मंजिलें उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है, पंखों से कुछ नहीं होता है, हौंसलों से उड़ान होती है। यह लाइन राजधानी के जानकीपुरम में रहने वाली तरन्नुम पर बिल्कुल सटीक बैठती है। वह पिछले 20 साल से साइकिल, रिक्शा और कार के पंचर बनाकर अपने घर का खर्च लगा रही है।
37 साल की तरन्नुम बताती हैं कि उनके पति पहले जानकीपुरम एक्सटेंशन के मुलायम तिराहे के पास पंचर जोड़ते थे। वह भी इस काम में अपने पति का सहयोग देती थी। धीरे-धीरे उन्होंने भी पंचर जोडऩा सीख लिया। इसके बाद वह दुकान पर अकेली बैठ कर पंचर जोडऩे लगी और उनकी दुकान तरन्नुम पंचर के नाम से मशहूर हो गई। उनके पति दूसरे काम करते हैं। इससे डबल इनकम होती है और वह अपने बच्चों को अच्छी परवरिश दे पाती हैं।
300-400 रुपए तक हो जाती है कमाई
तरन्नुम के दो लड़के और एक लड़की स्कूल में पढ़ते हैं। घर की मजबूरियों के चलते और बच्चों को पढ़ाने के लिए तरन्नुम को यह काम करना पड़ा। वे बताती हैं कि दिनभर में 300-400 रुपए कमा लेती हैं। इससे उनके घर का खर्च चलता है। वे बाइक और कार सभी के पंचर बना लेती हैं। कभी-कभी तो वह रात के 12 बजे तक दुकान पर पंचर बनाती रहती हैं, लेकिन उन्हें कोई भय नहीं लगता है। उनका कहना है कि ऐसा कोई काम नहीं है, सिर्फ महिलाएं कर सकती हैं।