scriptWorld Bicycle Day 2023: मुलायम यादव ने शर्त में जीती थी साइकिल, दोस्त से मिलने साइकिल से जाते थे अटल, साइकिल चोरी हुई तो रो पड़े थे कांशीराम | World Bicycle Day 2023: Mulayam Yadav had won a bicycle in a bet, Atal | Patrika News

World Bicycle Day 2023: मुलायम यादव ने शर्त में जीती थी साइकिल, दोस्त से मिलने साइकिल से जाते थे अटल, साइकिल चोरी हुई तो रो पड़े थे कांशीराम

locationलखनऊPublished: Jun 03, 2023 07:14:07 am

Submitted by:

Vikash Singh

आज वर्ल्ड साइकिल डे है। सिर्फ यूपी में ही नहीं बल्कि पूरे वर्ल्ड में साइकिल की अपनी एक अलग पहचान है। यूपी में तो यह एक पॉलिटिकल पार्टी का चुनावी सिंबल भी है। इसलिए सोशल मीडिया से लेकर शहर और गांव तक इसकी चर्चा हर दिन होती रहती है। आज हम साइकिल से जुड़ी हुई पॉलिटिक्स को जानेंगे।
 

cycel_day_image.jpg
आपको बता दें कि UP में साइकिल सिर्फ एक वाहन नहीं है, बल्कि सियासत की सीढ़ी भी है। यहां कई ऐसे नेता हुए जिन्होंने साइकिल का हैंडल थामा और सत्ता के शीर्ष पर पहुंच गए। साइकिल डे के दिन आज हम उन्हीं में से 3 लोगों की कहानियां आपको बताएंगे।
सबसे पहले हम मुलायम सिंह यादव से जुड़ा किस्सा बताएंगे, फिर कांशीराम और अटल बिहारी का। साथ ही एक ऐसे प्रधानमंत्री की कहानी जो संसद साइकिल से जाते हैं। आइए शुरू करते हैं…

सपा की ‘साइकिल’ बनने की कहानी
इंडियन एक्सप्रेस में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक समाजवादी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल का कहना है कि 1993 के विधानसभा चुनाव के लिए जब सिंबल चुनने की बात आई तो नेताजी और बाकी वरिष्ठ नेताओं ने विकल्पों में से साइकिल को चुना। उस समय साइकिल किसानों, गरीबों, मजदूरों और मिडिल क्लास की सवारी थी। साइकिल चलाना आसान और सस्ता था। वहीं हेल्थ के लिए भी साइकिल चलाना फायदेमंद है। इसी वजह से साइकिल को ही सिंबल के लिए चुना गया।
 
mulayam_image_final.jpg
मुलायम सिंह यादव को साइकिल से बहुत लगाव था। जब उनकी पार्टी बनी तो चुनाव चिन्ह भी उन्होंने साइकिल ही रखा। IMAGE CREDIT:
3 बार विधायक बनने के बाद भी साइकिल से चलते थे मुलायम
सपा के संस्थापक सदस्यों में से एक और उत्तराखंड प्रदेश अध्यक्ष डॉ. सत्यनारायण सचान ने कहा कि तीन बार विधायक बनने के बाद भी मुलायम सिंह यादव ने 1977 तक साइकिल की सवारी की। सचान के बताया कि बाद में पार्टी के किसी अन्य नेता ने पैसा इकठ्ठा किया और इनके लिए एक कार खरीदी। उनका कहना है कि साइकिल का चिन्ह गरीबों, दलितों, किसानों और मजदूर वर्गों को दर्शाता है। जिस तरह से समाज और समाजवादी चलते रहते है, उसके दो पहिये खड़े होते हैं, जबकि हैंडल बैलेंस करने के लिए होता है।
20 किलोमीटर साइकिल चलाकर कॉलेज जाते थे मुलायम

मुलायम सिंह यादव 1960 में उत्तर प्रदेश के इटावा में जब कॉलेज में पढ़ाई कर रहे थे, तब उन्हें रोजाना करीब 20 किलोमीटर साइकिल चलाकर कॉलेज जाना पड़ता था। मुलायम के घर की आर्थिक हालत ऐसी नहीं थी कि वह एक साइकिल खरीद पाते। पैसों की कमी के चलते वह मन मसोस कर रह जाते थे और कॉलेज जाने के लिए संघर्ष करते थे।
frnak_hujur.jpg
फ्रैंक हुजूर समाजवाद और समाजवादी पार्टी के नेताओं पर कई किताबें लिख चुके हैं। IMAGE CREDIT:
आत्मकथा पर आधारित फ्रैंक हुजूर की किताब द सोशलिस्ट के मुताबिक मुलायम अपने बचपन के दोस्त रामरूप के साथ एक दिन किसी काम से उजयानी गांव पहुंचे। दोपहर का समय था, गांव की बैठक में कुछ लोग ताश खेल रहे थे। मुलायम और रामरूप भी साथ में ताश खेलने लग गए। वहीं गांव गिंजा के आलू कारोबारी लाला रामप्रकाश गुप्ता भी ताश खेल रहे थे। गुप्ता जी ने खेल में शर्त रख दी कि जो भी जीतेगा उसे रॉबिनहुड साइकिल दी जाएगी। मुलायम के लिए गुप्ता की शर्त उनका सपना पूरा करने का जरिया बनी। मुलायम ने बाजी जीती और इसी के साथ रॉबिनहुड साइकिल भी। मुलायम साइकिल पर ऐसे सवार हुए कि जब 4 नवंबर 1992 को समाजवादी पार्टी बनी तो उन्होंने पार्टी का चुनाव निशान भी साइकिल ही रखा।
kanshiram_image_final.jpg
15 मार्च 1983 को साइकिल यात्रा निकालते हुए कांशीराम ने 40 दिनों में 7 राज्यों से होते हुए 4,200 किलोमीटर की दूरी तय की थी। IMAGE CREDIT:
साइकिल से ही प्रचार-प्रसार करते थे कांशीराम
बसपा के संस्थापक कांशीराम अपनी साइकिल से ही पूरे हिन्दी प्रदेश में प्रचार प्रसार का काम किया करते थे। कभी उत्तराखंड तो कभी मध्य प्रदेश साइकिल से ही चले जाते थे। दलितों को एकजुट करने के लिए उन्होंने कई साइकिल रैलियां की थी। कांशीराम के दोस्त मनोहर आटे बताते हैं, “उन दिनों महाराष्ट्र सरकार मुख्यालय के सामने अंबेडकर की मूर्ति हुआ करती थी। अक्सर कांशीराम वहां बैठकर बहुजन समाज के बारे में सोचते और गहन विचार किया करते थे। वहीं सामने एक ईरानी होटल था जहां वो अपनी साइकिल खड़ी करते थे।”
 
kanshi_museam_image_final.jpg
यही वो साइकिल है जिससे कांशीराम ने 4,200 किलोमीटर की दूरी तय की थी। IMAGE CREDIT:
साइकिल चोरी होने पर रो पड़े थे कांशीराम

एक बार उनकी साइकिल चोरी हो गई। कांशीराम को साइकिल से इतना लगाव था कि चोरी होने की घटना से वो भावुक हो गए थे। इसके पीछे की घटना यह कि, एक बार रात 11 बजे तक कांशीराम अंबेडकर की मूर्ति के नीचे बैठकर अपने दोस्त के साथ चर्चा कर रहे थे। उन्होंने देखा की ईरानी होटल बंद हो रहा है, लेकिन उनकी साइकिल जहां उन्होंने खड़ी की थी वहां से गायब है । साइकिल को ढूंढते-ढूंढते कांशीराम की आंखों में आंसू आ गए थे। बहुत ढूंढने के बाद भी जब साइकिल नहीं मिली तब उन्होंने होटल के वेटर को डांटते हुए अपनी साइकिल के बारे में पूछा। उन्होंने कहा कि अगर साइकिल नहीं मिली तो वो पुलिस कम्प्लेन करेंगे। पुलिस का नाम सुनते ही वेटर डर गया और उसने साइकिल लौटा दी। चोरी हुई साइकिल मिलने के बाद कांशीराम ने वेटर को पकड़कर पुलिस के हवाले कर दिया।
साइकिल सिर्फ वाहन नहीं, मिशन को बढ़ाने का साधन है

उनके करीबी मित्रों ने जब उनसे रोने का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि ये साइकिल मेरे लिए बस एक वाहन नहीं है। ये मेरे मिशन को आगे लेकर जाने वाला सबसे बड़ा साधन है। इसे लापता पाकर मुझे ऐसा लगा मानो मेरी जिंदगी खत्म होने लगी है। कांशीराम के दिल में बहुजन समाज के प्रति ऐसा प्रेम देखकर उनके मित्र बहुत खुश हुए।
साइकिल से मथुरा में चुनाव प्रचार करने गए थे अटल बिहारी वाजपेयी

मथुरा के बिसावर के रहने वाले 90 साल के पूर्व विधायक चौ. बृजेंद्र सिंह बताते हैं कि पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी 1956 में जब यहां चुनाव प्रचार करने आए थे। तब वे मथुरा में सभा करने के बाद साइकिल से ही प्रचार करने सादाबाद के पटलोनी गांव पहुंचे थे।
दोस्तों से मिलने साइकिल से ही निकल जाया करते थे

अटल बिहारी वाजपेयी की भतीजी कांति मिश्रा ने बताया कि प्रधानमंत्री बनने से पहले वे अक्सर मध्य प्रदेश आया करते थे। वह मेरे बेटे नितिन की साइकिल लेकर उसी से अपने मित्रों से मुलाकात करने 30 से 40 किलोमीटर उनके घर चले जाते थे।
frnak_hujur.jpg
यह तस्वीर दिवंगत पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की यंग एज की है। IMAGE CREDIT:
साइकिल से चलते हैं इस देश के प्रधानमंत्री

नीदरलैंड एक ऐसा देश है, जहां के प्रधानमंत्री मार्क रूट भी साइकिल से ही संसद जाते हैं। यहां सड़कों पर आपको साइकिलें ज्यादा दिखाई देंगी। साइकिल के लिए खास सड़कें और नियम हैं। राजधानी एम्स्टर्डम में साइक्लिस्ट ही शासन करते हैं। साइकिल एम्स्टर्डम में इतनी पॉपुलर है कि नीदरलैंड के ज्यादातर सांसद साइकिल से ही संसद जाते हैं।
 
amsterdam__image_final.jpg
प्रधानमंत्री मार्क रूट अक्सर राजधानी एम्स्टर्डम में साइकिलिंग करते हुए देखे जाते हैं । IMAGE CREDIT:
नीदरलैंड में साइकिलों से ही ज्यादा दूरी तय की जाती है

नीदरलैंड में 22,000 मील की रिंग रोड हैं। इस देश में लोग लंबी दूरी भी साइकिलों से ही तय कर लेते हैं। एम्स्टर्डम और अन्य सभी डच शहरों में “साइकिल सिविल सेवक” नामित किए गए हैं, जो नेटवर्क को बनाए रखने और सुधारने के लिए काम करते हैं।
 
modi_and_route.jpg
जून 2017 में नीदरलैंड गए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को मार्क रूट से गिफ्ट में साइकिल मिली थी। IMAGE CREDIT:
नीदरलैंड मॉडल देखकर ही अखिलेश यादव ने UP में साइकिल ट्रैक बनाने का सपना देखा था।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो