नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे -4 के आंकड़ों के अनुसार जन्म के एक घंटे में 25.2 फीसद माताएं (शहरी व ग्रामीण) नवजात को दूध पिलाती हैं। नवजात को जन्म के एक घंटे के अंदर स्तनपान कराने के मामले में प्रदेश में शहरी क्षेत्रों 21.5 फीसद माताएं हैं, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में 26.2 फीसद हैं| वही प्रदेश में छह माह तक 41.6 फीसद माताएं (शहरी व ग्रामीण) नवजात को केवल स्तनपान करवा रही हैं।
नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे-4 के आंकड़ों के अनुसार नवजात तथा शिशुओं की मृत्यु दर में सुधार करने के लिए महिलाओं को स्तनपान के मामले में अत्यधिक जागरूक किए जाने की जरूरत है। स्तनपान इसलिए जरूरी
बलरामपुर चिकित्सालय के डॉ ब्रजेश कुमार के अनुसार बच्चे के जन्म के तुरंत बाद माँ का दूध देना आवश्यक होता है जिसे कोलेस्ट्रम कहा जाता है। यह बच्चे को मिलना अतिआवश्यक होता है। इससे मां को भी फायदे होते है जैसे प्रसव के बाद यह महिलाओं में रक्तश्राव को कम करता है, दूसरा गर्भ ठहरने की संभावना कम होती है एवं स्तन और गर्भाशय के कैंसर से भी बचाता है। इसके साथ ही छह माह तक नवजात को सिर्फ मां का दूध मिलना चाहिए। माँ का दूध बच्चे की शारीरिक जरूरतों के साथ उसे मानसिक रूप से भी स्वस्थ बनाता है| माँ का दूध पीने वाले बच्चों का आई.क्यू बेहतर होता है, इसके साथ ही मां के दूध में बिटामिन प्रोटीन फैट व कैलोरी का सम्पूर्ण मिश्रण होता है, जो कि शिशु के समुचित विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है|
एसआरएस 2016 की रिपोर्ट के अनुसार प्रदेश में वर्ष भर में जन्मे एक वर्ष की उम्र तक के हजार शिशुओं में से 43 की मौत हो जाती है तथा पांच वर्ष तक की उम्र के हजार बच्चों में से वर्ष भर में 47 बच्चों की मौत हो जाती है।
आईसीडीएस विभाग के जिला कार्यक्रम अधिकारी अखिलेन्द्र दुबे के अनुसार स्तनपान पर ध्यान न देने के कारण ही बच्चे कुपोषण का शिकार होते हैं। बच्चे डायरिया की चपेट में आ जाते हैं और वह म्रत्यु के शिकार हो जाते हैं। इस मामले में सुधार के प्रयास किए जा रहे हैं। आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को हर गर्भवती महिला को नवजात की देखभाल तथा सुरक्षा के लिए स्तनपान का महत्व समझाने को कहा गया है। स्तनपान सही होगा तो शिशु का विकास सही होगा।
सरैया बाज़ार की आंगनवाडी कार्यकर्ता श्रीमती बताती हैं कि महिलाएं जन्म के बाद बच्चे को शहद, ग्लूकोज, शक्कर या गुड का पानी, सामान्य पानी, गाय का दूध आदि देती है लेकिन यह सब बच्चे और माँ दोनों के लिए ही नुकसानदायक होते है। इससे बच्चे में संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है | स्तनपान कराने के लिए गर्भवती महिलाओं की सास और ननद पर ज्यादा समझाना की जरूरत है क्यों कि आज भी वह लोग अन्धविश्वास में घिरे हुए हैं, उन लोगों के हिसाब से जब माँ का पहला दूध निकले तोह उसे तुलसी के पेड़ में डाल देना चाहिए | तब हम उनको उसका महत्त्व समझाते हुए बताते हैं कि शिशु के जन्म के एक घंटे के अंदर के अंदर मां का पहला दूध जरूर पिलाना चाहिए। इससे बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है तथा छह माह तक बच्चों को केवल मां का दूध ही देना चाहिए। स्तनपान से मां बेटे के बीच भावनात्मक रिश्ता बनता है और यह बचपन में होने वाली कई बीमारियों से बच्चों को दूर रखता है तथा माँ को भी इसके कई फायदे होते हैं|
समाज में फैली कुछ ऐसी भ्रांतियों के लिए समाज के सभी सदस्यों एवं खासकर महिलाओं का व्यवहार परिवर्तन करने की आवश्यकता है। इसके लिए एक घंटे के अंदर स्तनपान और छः माह तक सिर्फ स्तनपान को बढ़ावा देना व जागरूक करना बहुत ही आवश्यक है।
स्तनपान को बढ़ावा देने तथा जागरूक करने के लिए सरकार की ओर से मदर एब्सोल्यूट कार्यक्रम (माँ) 2016 से चलाया जा रहा है। इस कार्यक्रम का उद्देश्य देश में स्तनपान प्रथा को बढ़ावा देना है। यह कार्यक्रम महिलाओं, पुरुषों और परिवार के सभी वयस्क सदस्यों को स्तनपान को बढ़ावा देने हेतु पर्याप्त जानकारी और सहायता उपलब्ध कराने में पूर्णतः प्रयासरत है। इस कार्यक्रम के जरिये स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं, आशाओं और सहायक नर्सों को प्रशिक्षित किया जाता है, जिससे महिलाओं के बीच स्तनपान से संबन्धित किसी भी जानकरी को आसानी से उपलब्ध कराया जा सके। इसके अलावा समाज में फैल रही अनेक भ्रांतियों को खत्म करने के लिए माँ कार्यक्रम की सहायता से महिलाओं और परिवार के सदस्यों के अंदर व्यवहार परिवर्तन भी लाया जा सके।