भोजन में पाये जाने वाले आवश्यक तत्व हैं : कार्बोहाइड्रेट, वसा, प्रोटीन, विटामिन, खनिज पदार्थ, रेशे और पानी। विभिन्न पोषक तत्वों का हमारे शरीर में अलग-अलग कार्य होता है | इन तत्वों की मात्रा मनुष्य की आयु, लिंग, मेटाबोलिस्म, शारीरिक श्रम, शरीर की अवस्था, रोग ( यदि कोई है) व वातावरण पर भी कुछ हद तक निर्भर करती है | इन सभी आवश्यक तत्वों को मनुष्य को अपने भोजन में शामिल करना चाहिए | मनुष्य की इन आवश्यकताओं को पूरा करने वाले भोजन को संतुलित आहार कहते हैं | संतुलित आहार का सेवन करने से अतिपोषण या कुपोषण की समस्या से भी बचा जा सकता है |
पोषण विशेषज्ञ रूपाली बताती हैं कि, बढ़ते हुये बच्चों, गर्भवती तथा धात्री महिलाओं, अत्यधिक श्रम करने वाले व्यक्तियों या किसी विशेष रोग से ग्रस्त व्यक्ति को प्रति किलो शारीरिक वजन के लिए सिडेंटरी वर्कर ( बैठकर काम करने वाले) से कहीं ज्यादा कैलोरीज, प्रोटीन और अन्य पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है |
रूपाली ने बताया कि जीवन का विकास माँ के पेट से ही शुरू हो जाता है | यदि माँ संतुलित तथा पौष्टिक आहार लेती है तो उसके गर्भ में पल रही संतान का विकास भी अच्छा होता है तथा गर्भावस्था में होने वाली जटिलताओं से बचा जा सकता है |
एक महिला की गर्भावस्था को 3 भागों में विभाजित किया गया है – प्रथम , द्वितीय व तृतीय तिमाही | प्रथम तिमाही में भ्रूण का आकार बहुत छोटा होता है इस समय माँ को आहार की मात्रा बढ़ाने के स्थान पर उसकी गुणवत्ता बढ़ाने की आवश्यकता होती है अर्थात भोजन में फोलिक एसिड, आयरन प्रोटीन, अन्य सूक्ष्म पोषक तत्वों तथा विटामिन्स की पर्याप्त मात्रा होनी अत्यन्त आवश्यक है | दूसरी तिमाही में भोजन की मात्रा बढ़ानी जरूरी है क्यूंकि अब भ्रूण व प्लेसेन्टा का आकार बढ़ने लगता है तथा माँ के शरीर में पोषक तत्वों का भंडार होना शुरू हो जाता है जो कि बाद में काम आता है |
प्रसव पश्चात भी संतुलित व् पौष्टिक भोजन लेना आवश्यक है जिसमें पर्याप्त मात्रा में कैल्शियम, आयरन, वसा, कार्बोहाइड्रेट व प्रोटीन उपस्थित हो |
प्रसव पश्चात भी संतुलित व् पौष्टिक भोजन लेना आवश्यक है जिसमें पर्याप्त मात्रा में कैल्शियम, आयरन, वसा, कार्बोहाइड्रेट व प्रोटीन उपस्थित हो |
रूपाली बताती हैं कि जन्म के बाद बच्चे का विकास बहुत तेजी से होता है और उचित शारीरिक, मानसिक, संवेगात्मक विकास के लिए संतुलित आहार की भूमिका बहुत अहम होती है | बच्चों को वयस्क मनुष्य की तुलना में अधिक पोषक तत्व युक्त भोजन की आवश्यकता होती है | बच्चे एक समय में अधिक मात्रा में भोजन नहीं कर सकते हैं अतः उन्हें एक निश्चित अंतराल पर छोटी छोटी पोषण युक्त ख़ुराकें लेने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए जिससे कि मात्रा कम होने पर भी पर्याप्त पोषक तत्व मिल सकें | आज के दौर में टीवी व् इंटरनेट में दिखाए जाने वाले पिज़्ज़ा, बर्गर ,चिप्स, कोल्ड ड्रिंक्स आदि के विज्ञापन बच्चों को आकर्षित कर रहे हैं परन्तु इनका सेवन हनिकरका है इसलिए इस दौर में माता-पिता का बच्चों को संतुलित आहार का महत्व समझाने का दायित्व बढ़ जाता है |
इसी तरह किशोर/किशोरियों को ज्यादा आयरन की आवश्यकता होती है क्यूंकि किशोरियों में इस समय मासिक धर्म के दौरान रक्त का ह्रास होता है जबकि किशोरों में तेजी से ब्लड वॉल्यूम बढ़ता है | किशोरावस्था में एनीमिया की समस्या बहुत आम हो गयी हो गयी है जो कि चिंता का विषय है | एनीमिया विशेषतः विटामिन बी12, फोलिक एसिड और आयरन की कमी से होता है | अतः चाहे वह गर्भवती /धात्री महिलाएं हों, किशोर किशोरियां हों या बच्चे हों, उनके भोजन में हरी पत्ते दार सब्जियाँ , सहजन, मेथी, धनिया , रागी, बाजरा, चना, सोयाबीन, अमरूद, नींबू, संतरा, आदि ताजी सब्जियाँ पर्याप्त मात्रा में यदि हों तो इस समस्या से आसानी से निपटा जा सकता है |
राष्ट्रीय पोषण संस्थान के अनुसार गर्भवती महिलाओं को प्रतिदिन 350 किलोकैलोरी ऊर्जा व् 23 ग्राम प्रोटीन की अतिरिक्त आवश्यकता होती है जबकि गर्भवती महिलाओं व् धात्री महिलाओं को प्रतिदिन 35 मिग्रा आयरन और 1200 मिग्रा कैल्शियम की आवश्यकता होती है | 1-9 वर्ष तक के बच्चों को प्रतिदिन 600 मिग्रा कैल्शियम तथा 10- 16 वर्ष की आयु के लड़के लड़कियों को प्रतिदिन 800 मिग्रा कैल्शियम की आवश्यकता होती है |