इस सम्बन्ध में प्रदीप कुमार सिंह लिखते हैं कि भारत में आजादी के बाद से ही महिलाओं को वोट देने का अधिकार प्राप्त तो था, लेकिन पंचायतों तथा नगर निकायों में चुनाव लड़ने का कानूनी अधिकार 73वे संविधान संशोधन के माध्यम से तत्कालीन प्रधानमंत्री स्वर्गीय राजीव गाँधी के प्रयास से मिला। इसी का परिणाम है कि आज भारत की पंचायतों में महिलाओं की 50 प्रतिशत से अधिक भागीदारी है।
प्रदीप कुमार सिंह लिखते हैं कि इन कुछ उपलब्धियों के बाद भी देखें तो आज भी महिलाओं की कामयाबी आधी-अधूरी समानता के कारण कम ही है। हर साल 26 अगस्त को अंतर्राष्ट्रीय महिला समानता दिवस तो मनाया जाता है लेकिन दूसरी ओर महिलाओं के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार आज भी जारी है। हर क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी और प्रतिशत कम है। दिल्ली महिला आयोग की सदस्य रूपिन्दर कौर कहती हैं, बदलाव तो अब काफी दिख रहा है।
पहले जहां महिलाएं घरों से नहीं निकलती थीं वहीं अब वे अपने हक की बात कर रही हैं। उन्हें अपने अधिकार पता हैं और इसके लिए वे लड़ाई भी लड़ रही हैं। अन्य देशों की भांति भारत में महिलाओं को समान अधिकारों के लिए संघर्ष नहीं करना पड़ा अर्थात स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात महिलाओं को समान अधिकार प्राप्त हुए। भारतीय सविधान महिलाओं को पुरूषांे के समान अधिकारों की गारंटी प्रदान करता है। यद्यपि वर्तमान समय में महिलाएं पुरूषांे से कंधे से कंधा मिला कर प्रत्येक क्षेत्र में भाग ले रही हैं।
कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है जहाँ महिलाआंे ने अपनी योग्यता का परचम ना लहराया हो। शिक्षा, विज्ञान, खेल, प्रौद्योगिकी, व्यापार, मीडिया, मनोरंजन प्रत्येक क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी देखने को मिलती है। इसके बावजूद भारत में महिलाओं की दयनीय दशा देखने को मिलती है। आए दिन महिलाओं के विरूद्ध हिंसा की घटनायें सुनने में आती रहती हैं। महिलाओं के विरूद्ध कई प्रकार की हिंसाएँ देखने को मिलती हैं जैसे की हत्या, बलात्कार, छेड़छाड़, अपहरण, एसिड अटैक, दहेज हत्या, हानर किलिंग, जबरन गर्भपात, भ्रुण हत्या इत्यादि। इस प्रकार यह स्पष्टता परिलक्षित होती है कि सवैंधानिक समानता के बावजूद भारत में महिलाओं को वास्तविक समानता अभी भी प्राप्त नहीं हो पाई है।
भारत में बच्चों और महिलाओं के उचित विकास के लिये इस क्षेत्र में महिला और बाल विकास विभाग अच्छे से कार्य कर रहा है। विकास का मुख्य उद्देश्य महिलाओं को समर्थ बनाना है क्योंकि एक सशक्त महिला अपने बच्चों के भविष्य को बनाने के साथ ही देश का भविष्य का सुनिश्चित करती है। विकास की मुख्यधारा में महिलाओं को लाने के लिये भारत सरकार के द्वारा कई योजनाओं को शुरू किया गया है। पूरे देश की जनसंख्या में महिलाओं की भागीदारी आधे की है और महिलाओं और बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिये हर क्षेत्र में इन्हें स्वतंत्रता की जरूरत है।
सामाजिक विकास के क्षेत्र में महिलाओं के व्यक्तिगत योगदान को पहचान देने के लिए केंद्र सरकार ने स्त्री शक्ति के नाम से राष्ट्रीय पुरस्कारों की स्थापना की है। ये पुरस्कार भारतीय इतिहास को सम्मानित महिलाओं के नाम पर रखे गए हैं, जो अपने साहस और एकता के लिए विख्यात हैं, जैसे- देवी अहिल्याबाई होल्कर, कन्नगी, माता जीजाबाई, रानी गिडेनेलु जेलियांग तथा रानी लक्ष्मीबाई। भारत सरकार की बेटी बचाओ- बेटी पढ़ाओं योजना भी समानता की दिशा में अच्छा कार्य कर रही है। महिला जनप्रतिनिधिओं को प्रशिक्षण देने के लिए सरकार ने सराहनीय कदम उठाये हैं। महिलाओं को कानूनी संरक्षण देने के लिए कड़े कानून बनाये गये हैं।