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रामायण के चर्चित पात्र जटायू का संरक्षण करेगी योगी सरकार, बढ़ेगी गिद्धों की आबादी

locationलखनऊPublished: Nov 19, 2019 02:50:53 pm

Submitted by:

Hariom Dwivedi

-गोरखपुर में खुलेगा प्रदेश का पहला गिद्ध संरक्षण केंद्र-यूपी में 2014 में पहली बार हुई थी गिद्धों की गणना-पूरे प्रदेश में 1000 से भी कम बचे हैं प्रकृति के सफाईकर्मी-देश में गिद्धों की संख्या में 97 प्रतिशत गिरावट-1990 के पहले लगभग 40 लाख गिद्ध भारत में थे

रामायण के चर्चित पात्र जटायू का संरक्षण करेगी योगी सरकार, बढ़ेगी गिद्धों की आबादी

रामायण के चर्चित पात्र जटायू का संरक्षण करेगी योगी सरकार, बढ़ेगी गिद्धों की आबादी

पत्रिका एक्सक्लूसिव
महेंद्र प्रताप सिंह
लखनऊ. अयोध्या में भगवान श्रीराम की भव्य मूर्ति निर्माण के साथ ही योगी आदित्यनाथ सरकार रामायण के सबसे चर्चित्र पात्र जटायू के संरक्षण का काम भी करेगी। मुख्यमंत्री के गृह जनपद गोरखपुर में देश का दूसरा सबसे बड़ा जटायू सरंक्षण और प्रजनन केंद्र खोला जाएगा। हरियाणा के पिंजोर के बाद देश का यह पहला ऐसा गिद्ध कंजर्वेशन और ब्रीडिंग सेंटर होगा जहां गिद्धों की तीन प्रमुख प्रजातियों के संरक्षण और संर्वधन से जुड़ी सभी सुविधाएं उपलब्ध होंगी। इस महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट पर सरकार जल्द ही काम शुरू करेगी।
देश में गिद्धों की संख्या में पिछले एक दशक में 97 प्रतिशत की गिरावट आयी है। 1990 के पहले दशक में लगभग 40 लाख गिद्ध भारत में थे, लेकिन अब गिद्धों की कई प्रजातियां खत्म होने के कगार पर हैं। पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले इस पक्षी को बचाने के लिए ही पर्यावरण प्रेमी योगी आदित्यनाथ की पहल पर यूपी में गिद्ध संरक्षण की पहल की जा रही है। राज्य सरकार ने एक अध्ययन में पाया है कि गिद्धों के खत्म होने से मृत पशुओं की सफाई, बीजों का प्रकीर्णन और परागण भी काफी हद तक प्रभावित हुआ है। अध्ययन में पता चला है कि गिद्धों की घटती संख्या का मुख्य कारण मृत मवेशियों में डाइक्लिोफिनेक दवाई का सांद्रीकरण है। इसके अलावा भोजन की अनुपलब्धता, भोजन के लिए कुत्तों के साथ स्पर्धा, प्राकृतिक आवास का कम होना, पेड़ों का काटना और प्रजनन स्थल की असुरक्षा भी महत्वपूर्ण हैं।
दुनिया में 20 प्रजातियां
विश्व में गिद्धों की 20 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिसमें से भारतीय उपमहाद्वीप में नौ प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें से भारतीय सफेद पीठ वाले गिद्व, लंबे चोंच वाले गिद्ध और पतली चोंच वाले गिद्ध भारत में विलुप्तप्राय की श्रेणी में आ गए हैं। बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी (बीएनएचएस) के विश्लेषण के अनुसार डिक्लोफेनाक का पशु-चिकित्सा में उपयोग भारत में गिद्धों के लिए मुख्य खतरा है। गिद्धों के लिए कीटनाशक प्रदूषण भी एक खतरा है। क्लोरीनयुक्त हाइड्रोकार्बन डी.डी.टी (डाइक्लोरो डाइफिनाइल ट्राईक्लोरोइथेन) गिद्धों के शरीर में प्रवेश करने के बाद एस्ट्रोजन हार्मोन की गतिविधि को प्रभावित करता है, परिणामस्वरूप अंड कोश कमजोर हो जाता है। इससे अंडों की असामयिक सेने की प्रक्रिया होती है जिससे भ्रूण की मौत हो जाती है।
बीएनएचएस के सहयोग से होगा स्थापित
उप्र के चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डेन यानी सीडब्ल्यूडब्ल्यू सुनील पांडे के मुताबिक गोरखपुर का गिद्ध संरक्षण केंद्र बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी के सहयोग से स्थापित किया जाएगा। यह प्रदेश का पहला केंद्र होगा जिससे पर्यावरण के अनुकूल साइंटिफिक तरीके से विकसित किया जाएगा। इसे गोरखपुर के जंगलों में विकसित किया जाएगा। उप्र का वन विभाग गिद्धों के संरक्षण में बरेली के वन्यजीव संरक्षण, प्रबन्धन और रोग निगरानी केन्द्र, भारतीय पशु चिकित्सा अनुसन्धान संस्थान, की भी मदद लेगा।
यूपी में कहां कितने गिद्ध
वन विभाग के अफसरों के मुताबिक इसी अगस्त माह में महाराजगंज के मदहौलिया वन रेंज में एक ही जगह पर करीब 100 गिद्धों के झुंड देखे गए थे। इसके पहले 2014 में प्रदेश के गिद्ध बहुल 13 जिलों में पहली बार गिद्धों की आधिकारिक गणना हुई थी तब 900 के करीब गिद्ध देखे गए थे। इनमें मैनपुरी में 193,पीलीभीत में 125 और लखीमपुर खीरी में 100 की संख्या में गिद्ध मिले थे। इसके अलावा अन्य जिलों में छिटपुट संख्या में यह विलुप्तप्राय पक्षी पाए गए थे। यूपी में इजिप्शियन वल्चर वैज्ञानिक नाम- नीयोफ्रोन प्रीक्नोपटेरस अब विलुप्तप्राय हैं। इसी तरह इंडियन वल्चर वैज्ञानिक नाम जिप्स इंडिकस, लंबी चोंच वाले गिद्ध वैज्ञानिक नाम जिप्स टेरनूईरोस्टिक्स और लाल सिर वाले सारकोजिप्स कैलवस गिद्ध की स्थिति गंभीर रूप से चिंताजनक है। इन्हें तुरंत बचाए जाने की जरूरत है। राज्य सरकार इनके संरक्षण की पहल करेगी।
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