विश्व में गिद्धों की 20 प्रजातियां पाई जाती हैं, जिसमें से भारतीय उपमहाद्वीप में नौ प्रजातियां पाई जाती हैं। इनमें से भारतीय सफेद पीठ वाले गिद्व, लंबे चोंच वाले गिद्ध और पतली चोंच वाले गिद्ध भारत में विलुप्तप्राय की श्रेणी में आ गए हैं। बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी (बीएनएचएस) के विश्लेषण के अनुसार डिक्लोफेनाक का पशु-चिकित्सा में उपयोग भारत में गिद्धों के लिए मुख्य खतरा है। गिद्धों के लिए कीटनाशक प्रदूषण भी एक खतरा है। क्लोरीनयुक्त हाइड्रोकार्बन डी.डी.टी (डाइक्लोरो डाइफिनाइल ट्राईक्लोरोइथेन) गिद्धों के शरीर में प्रवेश करने के बाद एस्ट्रोजन हार्मोन की गतिविधि को प्रभावित करता है, परिणामस्वरूप अंड कोश कमजोर हो जाता है। इससे अंडों की असामयिक सेने की प्रक्रिया होती है जिससे भ्रूण की मौत हो जाती है।
उप्र के चीफ वाइल्ड लाइफ वार्डेन यानी सीडब्ल्यूडब्ल्यू सुनील पांडे के मुताबिक गोरखपुर का गिद्ध संरक्षण केंद्र बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसायटी के सहयोग से स्थापित किया जाएगा। यह प्रदेश का पहला केंद्र होगा जिससे पर्यावरण के अनुकूल साइंटिफिक तरीके से विकसित किया जाएगा। इसे गोरखपुर के जंगलों में विकसित किया जाएगा। उप्र का वन विभाग गिद्धों के संरक्षण में बरेली के वन्यजीव संरक्षण, प्रबन्धन और रोग निगरानी केन्द्र, भारतीय पशु चिकित्सा अनुसन्धान संस्थान, की भी मदद लेगा।
वन विभाग के अफसरों के मुताबिक इसी अगस्त माह में महाराजगंज के मदहौलिया वन रेंज में एक ही जगह पर करीब 100 गिद्धों के झुंड देखे गए थे। इसके पहले 2014 में प्रदेश के गिद्ध बहुल 13 जिलों में पहली बार गिद्धों की आधिकारिक गणना हुई थी तब 900 के करीब गिद्ध देखे गए थे। इनमें मैनपुरी में 193,पीलीभीत में 125 और लखीमपुर खीरी में 100 की संख्या में गिद्ध मिले थे। इसके अलावा अन्य जिलों में छिटपुट संख्या में यह विलुप्तप्राय पक्षी पाए गए थे। यूपी में इजिप्शियन वल्चर वैज्ञानिक नाम- नीयोफ्रोन प्रीक्नोपटेरस अब विलुप्तप्राय हैं। इसी तरह इंडियन वल्चर वैज्ञानिक नाम जिप्स इंडिकस, लंबी चोंच वाले गिद्ध वैज्ञानिक नाम जिप्स टेरनूईरोस्टिक्स और लाल सिर वाले सारकोजिप्स कैलवस गिद्ध की स्थिति गंभीर रूप से चिंताजनक है। इन्हें तुरंत बचाए जाने की जरूरत है। राज्य सरकार इनके संरक्षण की पहल करेगी।