दलित वोटों की राजनीति के लिए मायावती को रिझाने की कोशिश है या अखिलेश यादव के खिलाफ गुस्सा… योगी आदित्यनाथ ने सपा के सुल्तान अखिलेश यादव से उम्दा किस्म की एसयूवी को छीनकर बसपा सुप्रीमो मायावती को सौंपी है, विपक्षी नेताओं ने इसे घटिया राजनीति करार दिया है, जबकि योगी सरकार ने रुटीन व्यवस्था का हिस्सा बताया है।
लखनऊ. दलित वोटों की राजनीति के लिए मायावती को रिझाने की कोशिश है या अखिलेश यादव के खिलाफ गुस्सा… योगी आदित्यनाथ ने सपा के सुल्तान अखिलेश यादव के काफिले में शामिल पांच एसयूवी (स्पोर्टस यूटिलिटी व्हीकल) इसुजू कार में तीन को वापस छीन लिया है। नायाब किस्म की इसुजू के स्थान पर अखिलेश के काफिले में पुरानी अंबेसडर कारों को शामिल किया गया है। इसी प्रकार मुलायम सिंह के काफिले से एसयूवी इसुजू कारों को वापस मांग लिया गया है। पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के काफिले से उम्दा किस्म की एसयूवी को छीनकर उन्हें बसपा सुप्रीमो मायावती के काफिले में शामिल किया गया है। विपक्षी नेताओं ने इसे घटिया राजनीति करार दिया है, जबकि योगी सरकार ने रुटीन व्यवस्था का हिस्सा बताया है।
अखिलेश का सुरक्षा चक्र कमजोर, मायावती पर मेहरबानी
यूपी की दलित बिरादरी को रिझाने में जुटी भाजपा ने सुरक्षा और सुविधाओं के बहाने राजनीति करना शुरू कर दिया है। अव्वल योगी सरकार ने सपा के संरक्षक मुलायम सिंह यादव के काफिले से एक इनोवा और दो एसयूवी कारों को वापस लिया, लेकिन पार्टी आलाकमान के कहने पर यह तय किया गया कि उम्रदराज राजनेता मुलायम सिंह से एक एसयूवी कार को वापस नहीं लिया जाएगा, वह जब चाहें, तब मर्जी से एसयूवी इसुजू को वापस करेंगे। इस व्यवस्था के तीन दिन बाद ही योगी सरकार ने अखिलेश यादव के काफिले में शामिल पांच एसयूवी इसुजू कारों से तीन को वापस छीनकर अंबेसडर कारों को शामिल कर दिया। अखिलेश के काफिले से छीनी गई तीन एसयूवी में दो को मायावती के काफिले में जोड़ दिया गया, जबकि एक को केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह के काफिले में। मायावती के काफिले से हटाई गई अंबेसडर कारों को ही अखिलेश यादव के काफिले में जोड़ा गया है। अखिलेश यादव के काफिले से कारों के वापस लेने के साथ ही दोनों ड्राइवरों सुनीत यादव और गंगाप्रसाद को राज्य संपत्ति विभाग से संबद्ध कर दिया गया है।
यह फैसला विपक्षी एकता में सेंध लगाने की कोशिश!
राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, योगी सरकार का यह फैसला यूपी की राजनीति से प्रेरित है। वरिष्ठ पत्रकार अशोक पाण्डेय कहते हैं कि राष्ट्रपति चुनाव में साथ देने के कारण मुलायम सिंह यादव पर मेहरबानी जारी है, जबकि वर्ष 2019 के आम चुनावों में सपा-बसपा के संभावित गठबंधन में दरार डालने की कोशिश के तौर पर अखिलेश यादव से सुविधाओं को छीनकर मायावती पर नजरें इनायत हो रही हैं। ऐसी कोशिशों से अव्वल यह संदेश जाएगा कि बसपा और भाजपा के अंदरखाने कुछ पक रहा है, साथ ही सपाइयों के दिल में बसपा को लेकर आक्रोश पैदा होगा। नतीजे में वर्ष 2019 में गठजोड़ में मुश्किल होगी। बावजूद सपा-बसपा साथ आएंगे तो कार्यकर्ताओं में दूरी कायम रहेगी। कानपुर विश्वविद्यालय में राजनीति शास्त्र के प्रोफेसर एसपी सिंह कहते हैं कि राजनीतिक दलों के निहितार्थ अलग-अलग हैं। मायावती अपना वजूद बचाने के लिए भाजपा के साथ आने से परहेज नहीं करेंगी। इसके साथ ही ब्राह्मण-बनियों के साथ-साथ दलितों की रहनुमा बनकर भाजपा लंबे समय तक यूपी में शासन करना चाहती है। इसी मंजिल को हासिल करने के लिए मायावती पर मेहरबानी के जरिए दलितों को संदेश देने का प्रयास है कि भाजपा दलितों के लिए समान भाव रखती है।