दरअसल, उत्तर प्रदेश में वर्तमान में उत्तर प्रदेश शहरी भवन (किराये पर देने, किराया तथा बेदखली विनियमन) अधिनियम-1972 लागू है। यह कानून काफी पुराना हो चुका है। प्रदेश में इस समय मकान मालिक व किरायेदारों के बीच विवाद बढ़ गए हैं। बड़ी संख्या में मामले अदालतों में चल रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर प्रदेश सरकार ने केंद्र के मॉडल टेनेंसी एक्ट के आधार पर नया अध्यादेश तैयार किया है। इसे शुक्रवार को कैबिनेट बाई सर्कुलेशन के जरिए मंजूरी दे दी गई।
इस अध्यादेश में ऐसी व्यवस्था की गई है कि मकान मालिक मनमाने तरीके से किराया नहीं बढ़ा सकेंगे। इसमें जो व्यवस्था है उसके अनुसार आवासीय पर पांच फीसद और गैर आवासीय पर सात फीसद सालाना किराया बढ़ाया जा सकता है। किरायेदार को भी किराये वाले स्थान की देखभाल करनी होगी। दो महीने तक किराया न देने पर किरायेदार को मकान मालिक हटा सकेंगे। किरायेदार घर में बिना पूछे तोडफ़ोड़ नहीं कर सकेंगे। पहले से रह रहे किराएदारों के साथ यदि अनुबंध नहीं है तो इसके लिए तीन महीने का समय दिया गया है।
दो महीने से अधिक एडवांस नहीं ले सकेंगे मकान मालिक
किराया बढ़ाने के विवाद पर रेंट ट्रिब्यूनल संशोधित किराया और किरायेदार द्वारा देय अन्य शुल्क का निर्धारित कर सकेंगे। सिक्योरिटी डिपाजिट के नाम पर मकान मालिक आवासीय परिसर के लिए दो महीने से अधिक एडवांस नहीं ले सकेंगे जबकि गैर आवासीय परिसरों के लिए छह माह का एडवांस लिया जा सकेगा। केंद्र सरकार, राज्य सरकार या केंद्र शासित प्रदेश के उपक्रम में यह कानून लागू नहीं होगा। कंपनी, विश्वविद्यालय या कोई संगठन, सेवा अनुबंध के रूप में अपने कर्मचारियों को किराये पर कोई मकान देते हैं तो उन पर यह लागू नहीं होगा। धार्मिक, धार्मिक संस्थान, लोक न्याय अधिनियम के तहत पंजीकृत ट्रस्ट, वक्फ के स्वामित्व वाले परिसर पर भी किरायेदारी कानून प्रभावी नहीं होगा।
अध्यादेश की कुछ खास बातें
1. अनुबंध पत्र की शर्तों के अनुसार समय पर देना होगा किराया
2. मकान मालिक को देनी होगी किराए की रसीद
3. किराएदारी अनुबंध पत्र की मूलप्रति का एक-एक सेट दोनों के पास रहेगा
4. किराएदार को परिसर की करनी होगी देखभाल
5. मकान मालिक किराएदार को अनुबंध अवधि में नहीं कर सकेंगे बेदखल
6. मकान मलिक को देनी होंगी जरूरी सेवाएं