पूर्व मुख्यमंत्री कमला पति त्रिपाठी का आवास जो आज भाजपा कार्यालय है, विश्व नाथ प्रताप सिंह, वीर बहादुर सिंह, हेमवती नंदन बहुगुणा और श्रीपति मिश्र को भी बंगले मिले थे। मगर 1997 में उच्च न्यायालय के एक आदेश के बाद वीपी सिंह,कमलापति त्रिपाठी, हेमवती नंदन बहुगुणा और श्रीपति मिश्र के आवास खाली हो गए। लेकिन, मायावती की गठबंधन सरकर ने एक्स चीफ मिनिस्टर्स रेजीडेंस अलाटमेंट रूल्स 1997 बनाकर एक बार फिर बंगलों पर कब्जा जमाए रखने का इंतजाम कर लिया था। इस नियम के बाद पूर्व मुख्यमंत्रियों के बंगलों में जमे रहने का मार्ग निकल आया। पर सर्वोच्च न्यायालय ने अलाटमेंट रूल्स 1997 को दरकिनार करते खाली करने के आदेश कर दिए हैं। अब इस आदेश का तोड़ तलाशने की कवायद की जा रही है।
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा पूर्व मुख्यमंत्रियों के बंगलों को खाली कराए जाने के आदेश के अनुपालन में मुलायम सिंह यादव , मायावती, राजनाथ सिंह , नारायण दत्त तिवारी, कल्याण सिंह और अखिलेश यादव को 15 दिन में बंगले खाली करने के राज्य सरकार के निर्देशों पर सम्पत्ति विभाग ने नोटिसें तो जारी कर दी हैं पर देखने की बात होगी कि ये सुख सुविधा वाले बंगले सरकार खाली करवा पाती है या नहीं। अथवा पूर्व मुख्यमंत्री कोई न कोई दांव पेच लगाकर काबिज रहेंगे।
हालांकि, पूर्व मुख्यमंत्रियों में से एक केन्द्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने तो बंगला खाली कर गोमती नगर के विपुल खंड चार में रहने की घोषणा कर दी है। राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह ने प्रदेश सरकार में मंत्री और अपने पोते के बंगले में रहने की इच्छा जाहिर की है। वहीं दूसरी तरफ अखिलेश यादव ने बंगला खाली करने के लिए सरकार से दो साल की मोहलत मांगी है। मुलायम सिंह यादव ने नोटिसें जारी होने से पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मिलकर कोई रास्ता निकाले जाने का अनुरोध किया था। इसके बाद भी नोटिस जारी हो जाने पर मुलायम सिंह यादव अपने लिए आवास तलाश रहे हैं। इस सम्बन्ध में सपा के राज्य सभा सदस्य एवं प्रदेश के बड़े बिल्डर संजय सेठ माकूल बंगला ढूंढने में जुटे हुए हैं। इस बीच एक वरिष्ठ पत्रकार ने अखिलेश यादव को ट्वीट के जरिए अनुरोध किया है कि अगर असुविधा न हो तो वे मेरे मकान में सुविधा जनक तरीके से रह सकते हैं। जहां सुरक्षा की भी कोई असुविधा नहीं होगी।
मजेदार बात यह है कि बसपा सुप्रीमो मायावती ने सरकारी बंगला छोडऩा न पड़े इसके लिए अपने बंगले के बाहर कांशी राम यादगार विश्रामालय का बोर्ड लगा दिया है। इससे एक बात तो साफ नजर आती है कि राज नेता सरकारी बंगलों को छोडऩे की मन:स्थिति नहीं रखते हैं। मगर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय की दहशत भी है। कांशीराम यादगार विश्राम स्थल का बोर्ड लगा दिए जाने के फैसले से कांशीराम के नाम से दलितों की भावनाएं जुड़ी होने के कारण सरकार के लिए उस पर कब्जा करना गले की हड्डी बन जाएगी। क्योंकि 2019 के लोकसभा चुनाव सिर पर हैं।
मजेदार बात यह है कि बसपा सुप्रीमो मायावती ने सरकारी बंगला छोडऩा न पड़े इसके लिए अपने बंगले के बाहर कांशी राम यादगार विश्रामालय का बोर्ड लगा दिया है। इससे एक बात तो साफ नजर आती है कि राज नेता सरकारी बंगलों को छोडऩे की मन:स्थिति नहीं रखते हैं। मगर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय की दहशत भी है। कांशीराम यादगार विश्राम स्थल का बोर्ड लगा दिए जाने के फैसले से कांशीराम के नाम से दलितों की भावनाएं जुड़ी होने के कारण सरकार के लिए उस पर कब्जा करना गले की हड्डी बन जाएगी। क्योंकि 2019 के लोकसभा चुनाव सिर पर हैं।
(वरिष्ठ पत्रकार व पीटीआई के पूर्व ब्यूरो प्रमुख ने जैसा बताया)