मधुबनी

सुभाष चंद्र बोस , गुमनामी बाबा या फिर भगवनजी , नहीं हो सकी पहचान

न्यायमूर्ति विष्णु सहाय आयोग की जांच का निष्कर्ष, 130 पेज की रिपोर्ट सदन में पेश, आठ बिंदुओं पर आधरित है जांच रिपोर्ट

मधुबनीDec 21, 2019 / 11:58 pm

Navneet Sharma

सुभाष चंद्र बोस , गुमनामी बाबा या फिर भगवनजी , नहीं हो सकी पहचान

लखनऊ. 34 साल पुराने रहस्य से पर्दा उठ गया है। वह नेताजी सुभाष चंद बोस नहीं थे। वे भगवन जी बनाम गुमनामी बाबा थे। उनका अख्श सुभाषचंद बोस जैसी शख्सियत से मेल खाता था।
वे नेताजी की तरह बोलते थे। वही हाव-भाव थे। लेकिन, उनके घर मिली वस्तुओं से यह साबित नहीं हो सका कि 18 सितंबर 1985 को अयोध्या में मरने वाले नेताजी थे। यह निष्कर्ष है न्यायमूर्ति विष्णु सहाय आयोग की जांच निष्कर्ष का। आयोग पिछले तीन साल से गुमनामी बाबा के बारे में जांच कर रहा था। गुरुवार को आयोग ने 130 पेज की रिपोर्ट उत्तर प्रदेश विधानसभा में पेश की। रिपोर्ट में कहा गया है गुमनामी बाबा का असल परिचय ज्ञात नहीं हो सका है। यानी अब भी यह रहस्य बना रहेगा कि भगवन जी कौन थे।
अब भी रहस्य बरकरार

गुमनामी बाबा की कहानी जानने के लिए 34 साल पीछे लौटना होगा। अयोध्या के सिविल लाइंन्स में स्थित रामभवन में एक बाबा रहते थे। इनकी जिंदगी बहुत रहस्यमयी थी। यह किसी से मिलते-जुलते नहीं थे। बहुत कम बाहर निकलते थे। कम बोलते थे। लोग इन्हें भगवनजी कहते थे। कुछ इन्हें गुमनामी बाबा कहकर भी बुलाते थे। 16 सितंबर 1985 को इनकी मौत हो गयी। इनकी मौत के दो दिन बाद गुपचुप तरीके से अंतिम संस्कार कर दिया गया। बाबा के निधन के बाद जब इनका कमरा खोला गया, तब पता चला यह कोई साधारण बाबा नहीं थे। कमरे में जो सामान मिले उससे सबकी आंखें खुली रह गयीं।
नेताजी सुभाष चंद बोस से जुड़ी तमाम वस्तुएं इनके कमरे में करीने से सजी मिलीं। इसके बाद बड़ी तेजी से कानाफूसी शुरू हुई। मरने वाला शख्स नेताजी जी थे। वही नेताजी जिनकी मौत 23 जनवरी 1945 को जापान में एक विमान दुर्घटना में हो गयी थी। बहरहाल, शहर और फिर देश-प्रदेश में गुमनामी बाबा की चर्चा होने लगी। हवा पश्चिम बंगाल तक पहुंची। असलियत क्या है यह जानने के लिए नेताजी सुभाष चंद्र बोस के भाई स्वर्गीय सुरेश चंद्र की बेटी ललिता बोस और अन्य परिवारी जन अयोध्या आए। यहां उन्हें वह नेताजी की तरह के दर्जनों गोल चश्मे, 555 सिगरेट और विदेशी शराब का बड़ा जख़ीरा मिला। रोलेक्स की जेब घड़ी मिली। आज़ाद हिन्द फ़ौज की यूनिफॉर्म मिली।
…और बहुत कुछ मिला। जो यह साबित करता था कि हो न हो यह नेताजी ही थे। जो गुमनामी बाबा बनकर रह रहे थे। असलियत जानने के लिए ललिता बोस ने 1986 में इलाहाबाद हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की। जिसमें कहा गया गुमनामी बाबा ही नेताजी थे। 2010 में भी कुछ और याचिकाएं दायर हुईं। फिर 31 जनवरी 2013 को कोर्ट ने कहा, गुमनामी बाबा की असलियत जांचने के लिए एक आयोग बने। इसके बाद राज्यपाल की पहल पर 28 जून 2016 को सरकार ने जस्टिस विष्णु सहाय की अध्यक्षता में एक सदस्यीय जांच आयोग बनाया। इसी जांच आयोग ने यह रिपोर्ट सौंपी है।
रिपोर्ट की अहम बातें
वह यानी भगवन जी असाधारण मेधावी थे,युद्ध,राजनीति और सामयिकी की उन्हें गहन जानकारी थी नेताजी सुभाष चंद बोस की ही तरह उनके स्वर के भी भाव थे, उनमें नेताजी की तरह प्रचंड आत्मबल और आत्मसंयम था
जो उन्हें सुनते थे, सम्मोहित हो जाते थे,वे पूजा-पाठ और ध्यान में पर्याप्त समय बिताते थे, बढिय़ा वस्तुओं,संगीत, सिगार और अच्छे भोजन के वे प्रेमी थी, नेताजी नहीं बल्कि नेताजी के प्रबल अनुयायी थे, केंद्रीय विधि विज्ञान प्रयोगशाला, कोलकाता का भी जांच में लिया सहारा
मुखर्जी आयोग भी कर चुका पड़ताल

इसके पहले 1999 में सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज मनोज मुखर्जी आयोग ने भी नेताजी की मौत पर साल साल बाद 6 मई 2006 को एक रिपोर्ट दी थी जिसमें कहा गया था कि नेता जी की मौत विमान दुर्घटना में नहीं हुई थी। हालांकि इस रिपोर्ट को केंद्र सरकार ने अस्वीकार कर दिया था।

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