जानकारी के मुताबिक ग्राम पचेड़ा केदो ग्रामीणों को 78 आवारा मवेशियों के साथ सिडगिड़ी के लोगों ने पकड़ लिया। इसके बाद सिरगिड़ी के लोगों ने दोनों ग्रामीण और मवेशियों को चार घंटे तक रोके रखा। बाद में पचेड़ा के ग्रामीणों के सिरगिड़ी पहुंचने के बाद आपस में सुलाह-समझौता हुआ तब कहीं जाकर 4 घंटे बाद दोनों ग्रामीण और मवेशियों को छोड़ा गया। गौरतलब है एनएच- 53 और 353 में दिन आए दिन आवारा मवेशियों की हादसे में मौत हो रही है। लोगों के आक्रोश को देखते हुए कलक्टर ने आदेश दिया था कि, आवारा मवेशियों को रोड़ किनारे से हटाकर सुरक्षित जगहों पर छोड़ा जाए।
इसके बाद से ग्रामीण अपने गांव के आवारा मवेशियों को दूसरे गांव की सीमाओं में छोड़ दे रहे हैं। गांवों में आवारा मवेशियों की झूंड लग रही है। जब दूसरे गांव के लोग पकड़े जाते है, तो विवाद की स्थिति उत्पन्न होती है। ज्ञात हो कि, इससे पहले भी कौंदकेरा नर्सरी के पास शहर के 400 आवारा मवेशियों को छोडऩे के बाद भी 30-40 आवारा मवेशियों को कौंदकेरा में ही छोड़ते हुए ग्रामीणों ने पालिका के काउकैचर टीम को पकड़ लिया था। बाद में सीएमओ और तहसीलदार के मौके पर पहुंचने के बाद उन्हें छोड़ा गया।
प्रशासन के पास नहीं है फंड
शहर के आवारा मवेशियों को कांजी हाउस में रखा जाना चाहिए, लेकिन स्थानीय प्रशासन के पास फंड नहीं होने के अभाव में मवेशियों को दो या तीन दिन रखकर छोड़ दे रहे है। वहीं शहर में स्थित गौशाला भी मवेशियों से भरी है। कांजी हाउस में मवेशियों को चारा तक नहीं मिलता है। कहीं मवेशियों की मौत न हो जाए इसके डरकर स्थानीय प्रशासन भी हाथ खींच ले रहा है। पशु पालक भी अब मवेशियों को अपने घरों में जगह नहीं दे रहे हैं। शहर से चारागाह भी समाप्त हो गया है। मवेशी सडक़ों व बाजारों मेें घुमते रहते हैं।
जागरुकता होनी चाहिए
कलक्टर, हिमशिखर गुप्ता ने बताया आवारा पशुओं के लिए सुरक्षित जगह कांजी हाउस और दुसरी सुरक्षित स्थान है। लोगों में जागरूकता होनी चाहिए कि, वे अपने मवेशियों को बांध कर रखे इससे समस्या थोड़ी कम हो सकती है।