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Independence Day 2022: महात्मा गांधी के स्वागत के लिए रेलवे स्टेशन से गांधी चौक तक बिछाई टाटपट्टी

locationमहासमुंदPublished: Aug 14, 2022 08:51:08 pm

Submitted by:

CG Desk

Independence Day 2022: – महात्मा गांधी से प्रभावित होकर ज्वाला प्रसाद शर्मा ने बनाई थी वानर सेना- पुलिस से बचने के लिए गुलेल से पत्र भेजकर साथियों को करते थे अलर्ट

Independence Day 2022: महात्मा गांधी के स्वागत के लिए रेलवे स्टेशन से गांधी चौक तक बिछाई टाटपट्टी

Independence Day 2022: महात्मा गांधी के स्वागत के लिए रेलवे स्टेशन से गांधी चौक तक बिछाई टाटपट्टी

Independence Day 2022: महासमुंद. सन् 1930 की वो यादें, जब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जंगल सत्याग्रह में शामिल होने के लिए महासमुंद रेलवे स्टेशन पहुंचे थे, तब महासमुंद में कक्षा चौथी में पढऩे वाले पं. ज्वाला प्रसाद शर्मा ने यह तय किया कि बापू का पैर जमीन पर पडऩे नहीं देंगे। उन्होंने रेलवे स्टेशन से आज के गांधी चौक तक टाटपट्टी बिछा-बिछाकर उनका एतिहासिक स्वागत किया। ये पुरानी यादें स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व. पं. ज्वाला प्रसाद शर्मा की बहन कुमारी बाई शर्मा (92) ने पत्रिका से शेयर की।

कुमारी बाई शर्मा ने अपनी धुंधली यादों को ताजा करते हुए बताया कि पं. ज्वाला प्रसाद शर्मा का महात्मा गांधी से ज्यादा लगाव था। उनमें कम उम्र में भी भारत देश को आजादी दिलाने के लिए कुछ कर गुजरने का जुनून था। पं. ज्वालप्रसाद शर्मा देश आजाद हुआ है या नहीं, इसकी जानकारी लेने के लिए कोतवाली जाते थे। चूंकि, उस समय संचार के साधन में तार व वायरलेस की सुविधा थी। स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी हर छोटी से छोटी जानकारी भी वायरलेस के माध्यम से मिलती थी। कुमारी बाई ने बताया कि जब महात्मा गांधी रायपुर से महासमुंद पहुंचे। उनका रेलवे स्टेशन से गांधी चौक तक अभूतपूर्व स्वागत हुआ। उस समय पं. ज्वाला प्रसाद शर्मा ने महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित होकर एक वानर सेना बनाई। वानर सेना ग्रुप में आठ सदस्य थे। सभी की उम्र 16-17 साल थी। गु्रप के सदस्य जो, सोचते थे, वही करते थे। विरोध जताने के लिए छोटे-छोटे हमले करते थे। कुमारी बाई ने बताया कि गिरफ्तारी से बचने के लिए जंगलों में बैठकें होती थीं। वहीं रणनीति तैयार की जाती थी। सूचना आदान-प्रदान करने के लिए गुलेल का इस्तेमाल करते थे। पत्र पहले से लिखकर रखते थे। खतरे को भांपते हुए वही पत्र गुलेल के माध्यम से अपने साथियों के तक पहुंचाते थे। उसमें दो कलर में निशान होते थे। काला और लाल। काला रंग अलर्ट और लाल खतरे का निशान था। पत्र मिलने के बाद गु्रप के सभी सदस्य चौकन्ना हो जाते थे।

आठ सदस्य जेल गए
कुमारी बाई ने बताया कि आजादी के पहले 1942-43 के दौरान वानर सेना के आठ में सात सदस्य जेल चले गए। अपने साथियों के जेल जाने की खबर मिली, तो ज्वाला प्रसाद शर्मा भूमिगत हो गए। इसके बाद गुलेल से सूचना आदान-प्रदान करने का काम रुक गया। ज्वाला प्रसाद शर्मा करीब चार से पांच साल जंगल में रहे। इस दौरान उन्हें काफी कठिनाइयां हुईं। इनके सहयोग करने वालों की गिरफ्तारी हो जाती थी। जब भारत देश 1947 को आजाद हो गया। तब महासमुंद से जेल गए वानर सेना के सात सदस्य जेल से बाहर आ गए। जितने भी भूमिगत हुए थे, उन्हें बुलाया लिया गया। जब ज्वाला प्रसाद शर्मा जंगल से बाहर आए, तो उनके घरवाले उन्हें पहचान नहीं पा रहे थे।

सेनानियों को था जानवरों का डर
कुमारी बाई शर्मा ने बताया कि जब पं. ज्वालाप्रसाद शर्मा भूमिगत होने के दौरान जंगल में रहे। जंगलों में जानवरों से ज्यादा खतरा था। जानवरों से बचने के लिए पेड़ों का सहारा लेते थे या फिर टीलों में घुस जाते थे। खाने के लिए कांदा, जाम, बेल के अलावा कुछ नहीं मिलता था। जो मिल जाए, उससे पेट भरते थे। जब देश को आजादी मिली, तब पं. ज्वाला प्रसाद शर्मा जंगल से बाहर आए। इसके बाद उन्होंने गायत्री परिवार से जुड़ गए।

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