बुंदेली समाज के संयोजक तारा पाटकर ने बताया कि गांव वालों के बुलावे पर हम लोग वहां सुबह 6 बजे पहुंचे। दल में शामिल लखनऊ के राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान के पूर्व प्रधान वैज्ञानिक डा. राम सेवक चौरसिया ने जुड़वां कल्प वृक्षों के तने, शाखाओं आदि का अवलोकन व परीक्षण किया और बताया कि कल्प वृक्ष ओलिएसी कुल में आता है और ये वृक्ष भी उसी कुल के हैं। इनका वनस्पतिक नाम ओलिया कस्पीडाटा है। एक वृक्ष तो पूरी तरह ठीक है लेकिन दूसरे वृक्ष का मुख्य तना काफी क्षतिग्रस्त हो चुका है। अगर जल्दी उचित उपचार नहीं किया गया तो पहले वृक्ष को भी नुकसान हो सकता है।
डा. चौरसिया ने बताया कि देश में कुल 9-10 कल्प वृक्ष हैं। सबसे पुराना बाराबंकी के राम नगर क्षेत्र में है। जिसकी आयु 5 हजार साल से अधिक है। झारखंड के रांची, राजस्थान के अजमेर, कर्नाटक के पुटपर्थी व बुंदेलखंड के हमीरपुर में भी कल्प वृक्ष लगे हैं। सिचौरा के सचिन खरे ने बताया कि दो हजार साल पहले कल्प वृक्ष गांव में किसने लगाए, ये तो कोई नहीं जानता लेकिन यहां लोग अपनी मनोकामना पूरी करने के लिए धागा बांधते हैं। यहां प्रशासन की तरफ से अब तक कोई नहीं आया। पूर्व सांसद गंगा चरण राजपूत ने जरूर कल्प वृक्ष के चारों ओर चबूतरा बनवा दिया था।
वहीं महोबा के डीएफओ रामजी राय ने कहा कि अब तक हमें इन जुड़वां कल्प वृक्षों के बारे में पता नहीं था लेकिन अब जल्दी ही वन विभाग की टीम सिचौरा जाएगी व इन दुर्लभ वृक्षों के संरक्षण का पूरा प्रयास किया जाएगा। इस मौके पर दिनेश खरे, प्रवीण चौरसिया, अवधेश गुप्ता व ग्यासी लाल समेत तमाम लोग मौजूद रहे।