बुन्देलखण्ड का किसान प्राकृतिक आपदाओं के चलते रोजगार के लिए पलायन करने को मजबूर है,पलायन रोकने के लिए पूर्व सरकार द्वारा रोजगार देने के उद्देश्य से मनरेगा योजना का शुभारंभ किया गया था। मनरेगा से बुन्देलखण्ड के हजारों मजदूरों को रोजगार मिल रहा था और मनरेगा से कही न कही गरीब मजदूर परिवारों का पेट पल रहा था, लेकिन वर्तमान सरकार की उपेक्षा के चलते मनरेगा योजना अपनी अंतिम सांसे गिन रही हैं।
रोजगार न मिलने से साल दर साल गरीब मजदूरों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है। मनरेगा आंकड़ों को देखा जाए तो जिले में वित्तीय वर्ष में 2333 के कार्य शुरू हुए थे जिसमें 413 कार्य ही पूर्ण हो पाए थे, लेकिन अगर वर्तमान वर्ष की बात की जाए तो 3223 के सापेक्ष मात्र 7 कार्य ही पूर्ण हुए। ये आंकड़े कही न कही मनरेगा के प्रति प्रशासन की उदासीनता दर्शाते नजर आ रहे हैं। आकड़ों से ये अंदाजा लगाना काफी है कि जब 2018 में मनरेगा के तहत 3223 काम में से सिर्फ 7 ही पूरे हुए है और बाकी कामों की रफ़्तार मजदूर न मिलने से कम है।
जानकारों की माने तो दरअसल मनरेगा योजना को वर्तमान सरकार का सही सहयोग नहीं मिल पा रहा। शायद यहीं वजह है कि न तो मजदूरी में इजाफा हो रहा है और न ही इसमें बजट आने से मजदूरों को काम के बदले सही समय पैसे मिल पा रहे है। वर्तमान वर्ष में जिले के 17492 परिवार मनरेगा से लाभान्वित हुए। पर ये आकंड़े भी जिले में रोजगार देने में नाकाफी है। आज भी रोजगार की तलाश में हजारों की तादात में गरीब किसान, मजदूर महोबा से दिल्ली और मुम्बई जाने वाली ट्रेनों से पलायन कर जाता है।
महोबा नेताओं के लिए राजनीतिक अखाड़ा तो बन गया लेकिन जब विकास और रोजगार की बात हुई तो उन्ही राजनीतिक रोटी सेकने वाले नेताओं ने महोबा को पीछे की ओर धकेल दिया। आपको बता दें कि पूर्व की सरकार में मनरेगा के तहत होने वाले कामों में मजदूरों की बड़ी संख्या काम करते देखी जाती थी। कहीं तालाब खुदाई तो कई अन्य विकास कार्यों के चलते मजदूर अपने परिवार को पाल रहा था, लेकिन साल दर साल मनरेगा में मजदूरी न के बराबर मिलने और सही समय पर भुगतान न होने से ग्रामीण मजदूरों ने इस योजना से ही किनारा कर लिया।
इस बात की बानगी ये है कि महोबा शहर मुख्यालय में गांव से सैकड़ों मजदूर, मजदूरी के लिए आते है। आल्हा चौक चौराहे पर खड़ी ये भीड़ उन मजदूरों की है जो पहले मनरेगा में मजदूरी करते थे मगर अब ये मजदूरी के लिए इस चौराहे पर मेरबान का इंतजार करते रहते है। जहां इनके काम के दाम लगाए जाते है। इन मजदूरों की माने तो मनरेगा से इन्हे कोई फायदा नहीं है इतना जरूर है कि पूर्व केंद्र सरकार में जरूर मनरेगा से इनके परिवार पल रहे थे लेकिन अब ऐसा नहीं है। यहीं वजह है कि ये बेलदारी करने लगे है।
इस बात की बानगी ये है कि महोबा शहर मुख्यालय में गांव से सैकड़ों मजदूर, मजदूरी के लिए आते है। आल्हा चौक चौराहे पर खड़ी ये भीड़ उन मजदूरों की है जो पहले मनरेगा में मजदूरी करते थे मगर अब ये मजदूरी के लिए इस चौराहे पर मेरबान का इंतजार करते रहते है। जहां इनके काम के दाम लगाए जाते है। इन मजदूरों की माने तो मनरेगा से इन्हे कोई फायदा नहीं है इतना जरूर है कि पूर्व केंद्र सरकार में जरूर मनरेगा से इनके परिवार पल रहे थे लेकिन अब ऐसा नहीं है। यहीं वजह है कि ये बेलदारी करने लगे है।
जनपद में कई गांव ऐसे है जहां सूखे की मार और मनरेगा की बदहाली के चलते बड़ी तादाद में युवा पलायन कर गए है। गांव में रह रहे बुजुर्ग बताते है कि परिवार पालने के लिए उनके अपने उन्हें छोड़ कर चले गए है। बीजेपी सरकार भले ही बुंदेलखंड की चिंता को जाहिर करती रहती है मगर ये तस्वीरें बताती है कि योजनाओं को सही अमली जामा न पहनाये जाने से उनका लाभ गरीबों तक नहीं पहुंच रहा। मजदूरी के भटके इन मजदूरों को भी कभी कभी काम नहीं मिल पता । उस दिन इनके घर चूल्हा जलना तो दूर पेट भरना भी मुश्किल होता है।इनकी माने तो दैवीय आपदाओं के साथ-साथ सरकारी उपेक्षा इनके लिए नासूर बनी है। वहीं जिम्मेदार इसको लेकर गंभीरता तो जताते है मगर जमीनी हकीकत क्या है ये किसी से छुपी नहीं है।
महोबा डीएम सहदेव बताते है कि भारत सरकार से मिलने वाले मनरेगा के पैसे को सीधा मजदूरों के खाते पर पहुंचाया जाता है। मगर नीरीक्षण के दौरान इसमें घोर लापरवाही देखने को मिली है। अधिकारीयों को मनरेगा में लापरवाही न बरतने की नसीहत दी गई है।
महोबा डीएम सहदेव बताते है कि भारत सरकार से मिलने वाले मनरेगा के पैसे को सीधा मजदूरों के खाते पर पहुंचाया जाता है। मगर नीरीक्षण के दौरान इसमें घोर लापरवाही देखने को मिली है। अधिकारीयों को मनरेगा में लापरवाही न बरतने की नसीहत दी गई है।