डीएफओ रामजी राय ने माना कि यह कल्प वृक्ष देश के उन गिने चुने दुर्लभ वृक्षों में है जिनकी आयु डेढ़ से दो हजार वर्ष है। यह औलिएसी पादप कुल का सदस्य है। इसके दो तने हैं, जिनका व्यास करीब 13-13 मीटर है। एक तने में फंगस लग गया है और वह खोखला हो गया है। जिसमें फफूंद नाशक दवा का लेपन किया जाएगा एवं उसमें फेवीकोल मिलाकर लकड़ी का बुरादा भरा जाएगा। पानी से बचाने के लिए उसके ऊपर सीमेन्टिड प्लास्टर भी करना होगा। जुड़वां डालों के भार को सहारा देने के लिए लोहे के दो गार्डर भी लगाने होंगे। एक बोर्ड लगाकर कल्प वृक्ष के महत्व के बारे में भी बताया जायेगा। हम एक दो दिन में अपनी रिपोर्ट जिलाधिकारी अवधेश कुमार तिवारी को सौंप देंगे और उनसे सिचौरा चलने का आग्रह करेंगे।राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान के पूर्व प्रधान वैज्ञानिक डा. राम सेवक चौरसिया ने बताया कि कुछ वर्ष पूर्व प्रयागराज स्थित भारतीय वानस्पतिक सर्वेक्षण विभाग (बीएसआई) की टीम भी यहां आई थी लेकिन कल्प वृक्ष के संरक्षण पर कुछ हुआ नहीं। उधर बुंदेली समाज के संयोजक तारा पाटकर ने बताया कि सिचौरा कबरई से 10 किमी आगे हैं और छह माह पहले हम वहां गये थे। कल्प वृक्ष की खराब हालत के संबंध में डीएफओ को बताया था। करीब एक माह पहले कल्प वृक्ष का एक तना टूट कर गिर गया था।