पुरानी किताबों से दी जाती है शिक्षा सीएम योगी की मंशा के विपरीत बेसिक शिक्षा विभाग की कार्यप्रणाली होने से मासूम बच्चों को बिना किताबों के ही पढ़ना पड़ रहा है। ये नजारा महोबा जनपद का है। शिक्षा सत्र शुरू हुए आधा माह बीत गया मगर छात्रों को पढ़ने के लिए किताबें तक नहीं दी गई हैं। महोबा जनपद के प्राथमिक और उच्च प्राथमिक विद्यालयों में पुरानी किताबों के भरोसे बच्चों को पढ़ाने का अध्यापक प्रयास कर रहे हैं। दरअसल, अभी तक बेसिक शिक्षा विभाग के पास शासन से किताबें ही उपलब्ध नहीं हुई हैं। ऐसे में पिछले वर्ष की पुरानी हो चुकी किताबों से ही बच्चों को पढ़ाया जा रहा है। समस्या ये है कि किताबें कम और क्षात्र ज्यादा हैं। यहीं नहीं पुरानी किताबें या तो फटी हुई है कई के लेटर मिट चुके हैं लेकिन फिर भी अध्यापक बच्चों को पढ़ाने की कोशिश में लगे हैं।
पुरानी किताबों से पढ़ने में असमर्थ बच्चे महोबा शहर के नजदीक ग्राम बीजानगर के उच्च प्राथमिक विद्यालय का भी यही हाल है। कक्षा 8 तक के इस स्कूल में भी अभी तक किताबें उपलब्ध नहीं कराई गई। नतीजन बच्चों के सामने शिक्षा को लेकर अवरोध पैदा हो रहा है। स्कूल में पढ़ने वाले छात्र बताते हैं कि स्कुल में नियमित पढाई हो रही है मगर नई कताबें न मिलने से वो सही से नहीं पढ़ पा रहे। पुरानी किताबें अभी दी गई हैं उसी के भरोसे पढ़ रहे है। उन्हें जो पुरानी किताबें मिली हैं, उनमे अधिकतर फटी हुई हैं जिस कारण उनका भी उपयोग नहीं हो पा रहा। कक्षा 8 में पढ़ने वाली छात्रा आकांक्षा बताती है कि पुरानी किताबें दें दी गई उससे वो नहीं पढ़ पा रहे।
पढ़ाने में भी परेशानी बिना किताबों के बच्चों को पढ़ा रही सहायिका अध्यापिका रीता मिश्रा और प्रिंसिपल तिवारी की मानें, तो नई पुस्तकों के न आने से पढ़ाने में दिक्कत हो रही है। मगर फिर भी पुरानी किताबों के माध्यम से पढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है। पुरानी किताबें भी सभी बच्चों को नहीं मिल पा रही।
बैठने की भी पर्याप्त व्यवस्था नहीं इनसे भी बुरा हाल है इस वर्ष शुरू किये गए इंग्लिश मीडियम मॉर्डन प्राईमरी स्कूलों का। इन स्कूलों को शुरू करने के पीछे सरकार की मंशा थी कि कॉन्वेंट स्कूलों की तरह ही ग्रामीण क्षेत्रों के बच्चों को अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाया जा सके। यही वजह है की महोबा जनपद में इस वर्ष ऐसे 28 स्कूलों को प्रारम्भ किया गया, जिनमें 25 अंग्रेजी स्कूलों को संचालित किया जा रहा है। मगर अंग्रेजी माध्यम में पढ़ने वाले बच्चों को भी हिंदी मीडियम की पुरानी किताबों से ही पढ़ाया जा रहा है। दरअसल, जल्द बाजी में शासन ने इन अंग्रेजी स्कूलों को शुरू तो कर दिया मगर कोई जमीन तैयारी नहीं की गई। ऐसे में न तो स्कूलों में बैठने की पर्याप्त व्यवस्था है और न ही पढ़ने के लिए किताबें उपलब्ध हुई हैं। बिना अंग्रेजी माध्यम की किताबों के ही इन नौनिहालों को कॉन्वेंट जैसी पढाई दिए जाने के दावें खोखले साबित हो रहे है। शहर से लगे बीजानगर गांव में भी इंग्लिश मीडियम मॉर्डन प्राइमरी संचालित है। ये स्कूल कक्षा पांच तक है और यहाँ भी किताबें नहीं दी गई। स्कूल के प्रिन्सिपल दीपक साहू बताते हैं कि सरकार की ये पहल सरहानीय है लेकिन बिना किताबों के ये मंशा पूरी नहीं हो रही है। कोर्स की किताबें न होने के कारण सबसे अधिक होम वर्क में बच्चों को समस्याएं आ रही है।
बिना नई किताबों के पढ़ने में नहीं लगता है मन इंग्लिश माध्यम से पढ़ने वाले ग्रामीण अंचल के बच्चे इस बात से तो खुश हैं कि वो भी कॉन्वेंट स्कूलों की तरह पढ़ रहे है मगर उन्हें किताबों की कमी भी खल रही है। ईश्वरदास, पिंकी और सूरज बताते है कि उन्हें बिना किताबों के पढ़ने में तनिक भी रूचि नहीं हो रही। हिंदी मीडियम की किताबों से उन्हें पढ़ाया जा रहा है, जिससे उन्हें मजा नहीं आ रहा न ही पढ़ने में मन लगता है। वहीं महोबा के बेसिक शिक्षा अधिकारी महेश प्रताप सिंह बताते है कि जनपद में 25 इंग्लिश मीडियम स्कूल संचालित हैं। सभी में बेहतर शिक्षा का कार्य हो रहा है। जुलाई आखिरी तक सभी स्कूलों में किताबें पहुंचा दी जाएंगी। अभी पुरानी किताबों के माध्यम से ही पाठ्यक्रम पढ़ाया जा रहा है।