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महोबा के शिवतांडव मंदिर में सावन के पहले सोमवार पर पूजा करने पहुंचे भक्त, की पूजा अर्चना

locationमहोबाPublished: Jul 22, 2019 10:06:53 pm

Submitted by:

Neeraj Patel

जिले में स्थित ऐतिहासिक गोरखगिरि पहाड़ के समीप ‘शिव तांडव मंदिर’ में सावन के पहले सोमवार को भक्तों का भारी जनसैलाब उमड़ पड़ा।

Sawan ka pehla somwar shiv puja vidhi and mahatva

महोबा के शिवतांडव मंदिर में सावन के पहले सोमवार पर पूजा करने पहुंचे भक्त, की पूजा अर्चना

महोबा. जिले में स्थित ऐतिहासिक गोरखगिरि पहाड़ के समीप ‘शिव तांडव मंदिर’ में सावन के पहले सोमवार को भक्तों का भारी जनसैलाब उमड़ पड़ा। सुबह से ही शिव मंदिरों में भक्तों द्वारा विधिवत पूजा अर्चना कर वेलपत्र, दूध, दही और जल से अभिषेक कर भगवान की विधिवत पूजा अर्चना की गई। भगवान शिव की ये अनोखी मूर्ति चंदेल शासक नान्नुक ने 11वीं सदी में स्थापित कराई थी। ऐसी मान्यता है भगवान शिव के अलौकिक नृत्य करती प्रतिमा के दर्शन कर मंदिर में माथा टेकने के बाद भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती है।

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चंदेल शासक नान्नुक ने 11वीं सदी में ऐतिहासिक मदन सागर सरोवर के पश्चिम में गोखारपहाड़ की उत्तर भूमि में ग्रेनाइट शिला पर भगवान भोलेनाथ की महाकाल मुद्रा में तांडव नृत्य करती दस भुजी प्रतिमा का निर्माण कराया था, जो शिव तांडव के नाम से देश विदेश में प्रसिद्ध है। यह मूर्ति उत्तर भारत में अपने किस्म की अनोखी है। विश्व प्रसिद्ध यह मंदिर यूपी के महोबा जिले में है जहां सावन के हर सोमवार को शिवभक्तों का सैलाब उमड़ता है। ऐतिहासिक गोखार पहाड़ में स्थित शिवतांडव प्रतिमा अपने आप में अनोखी है। गजासुर के वध के उपरांत शिव जी ने जो नृत्य किया।

वहीं शिवतांडव के नाम से प्रसिद्ध हुआ था। यह भव्य प्रतिमा एक चट्टान पर उत्कीर्ण की गई है। इसका वर्णन कर्मपुराण में भी मिलता है। इस प्रकार की गजासुर प्रतिमा दक्षिण में ऐलोरा, हेलविका तथा दारापुरम में भी है। शिवतांडव में शिवरात्रि, मकर संक्रांति व सावन मास के सभी सोमवार को भक्तों का भारी सैलाब उमड़ता है। मान्यता है महाकाल की तांडव प्रतिमा में मत्था टेकने से जो मांगों वह मिल जाता है। त्रेता युग में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम, माता सीता व लक्ष्मण के चरणों से पवित्र हुई आल्हा ऊदल की वीरभूमि महोबा का ऐतिहासिक गोखार पर्वत धार्मिक दृष्टि से विशेष महत्व रखता है।

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प्रभु श्रीराम ने अपने वनवास काल के दौरान कुछ पुण्यकाल यहां भी बिताया था।गुरु गोरखनाथ एवं उनके सातवें शिष्य दीपकनाथ के तप ने इस पहाड़ को तेज प्रदान किया। इसी पर्वत के नीचे भगवान शिव की तांडव करती सिद्ध प्रतिमा स्थापित है। दूर दराज से भगवान शिव के दर्शन के लिए भक्त यहां पहुंचते हैं। शिव तांडव में पूजा के बाद हजारों भक्तों वलखंडेश्वर धाम, बारह ज्योतिलिंग धाम पहुंच कर भक्तों ने भगवान भोले नाथ की पूजा की ।

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