कहते है दिया तले अंधेरा.. जी हां हम बात कर रहे है मुख्यालय से महज दो किमी दूर एक गांव दिसरापुर की । जो आजादी के 70 साल बीत जाने के बाद भी सड़क,बिजली जैसी मूलभूत सुविधाओं से मरहूम है। यहां के ग्रामीण कई बार मुख्यालय आकर अधिकारियों को अपनी समस्या से अवगत करा चुके हैं । मूलभूत समस्याओं का समाधान न देख आज सैकड़ों ग्रामीण हाइवे जाम करने को मजबूर हो गए ।
ग्रामीणों ने बताया कि अभी एक साल पहले सीमांकन के बाद हमारा गांव नगर पालिका क्षेत्र में आया है। इसके बाद हम ग्रामीणों को विकास की एक किरण दिखने लगी थी, लेकिन आज तक दिसरापुर को मुख्य मार्ग से नही जोड़ा गया है। कभी कोई बीमार हो जाये या बच्चों को स्कूल जाना हो तो कोई साधन नहीं है। यहां तक कि सड़क इतनी ऊबड़ खाबड़ है कि उस पर साइकिल चलाना भी मुश्किल है ।
ऐसे में गड्ढा मुक्त और डिजिटल इण्डिया की बाते बेमानी सी नजर आती है। बीजेपी सरकार से उन्हें बड़ी उम्मीद थी मगर ग्रामीण नरकीय जीवन जीने के लिए मजबूर है। सबसे ज्यादा दिकत पढ़ने वाले बच्चों को हो रही है । फाइलों में बिजली कनेक्शन हो रहे है। सरकार के वादें बेकार है कोई सुविधा नहीं मिल रही मजबूरन हम ग्रामीण सड़क पर उतरे है। जाम खुलवाने के लिए मौके पर पहुंचे एसडीएम, नायब तहसीलदार और बिजली विभाग के एसडीओ ने दो माह में बिजली सड़क निर्माण का वायदा करते हुए जाम खुलवा दिया है । तो वही एसडीओ महोबा ने बिजली वायर और खम्भे लगाने वाली कार्यदायी संस्था टाटा समूह को जल्द से जल्द गांव में वायर लगाकर बिजली पहुंचाने के लिए कहा है। अधिकारीयों के समझाने पर ग्रामीणों ने दो घण्टे बाद जाम खोल दिया।