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लोकसभा चुनाव में इन पूर्व दलित अधिकारियों को उतारेगी भाजपा!, बसपा को होगा सबसे बड़ा नुकसान

locationमहाराजगंजPublished: Nov 22, 2018 05:04:02 pm

आधा दर्जन पूर्व दलित अधिकारी तैयार कर रहे मायावती के दलित प्रेम का कच्चा चिट्ठा।

Mayawati and narendra Modi

मायावती नरेन्द्र मोदी

यशोदा श्रीवास्तव

महराजगंज. 2019 का लोकसभा चुनाव भाजपा के लिए 2014 जैसा आसान नहीं होगा। जाहिर है भाजपा भी इसे समझ रही होगी। इस बार तो अयोध्या और राम मंदिर भी भाजपा की ओर वोटरों को कम ही लुभाएंगे। अभी 25 नवंबर को अयोध्या में कूच को लेकर जनता में कोई प्रतिक्रिया नहीं देखी जा रही है जबकि गांव गांव भाजपा के साधु संत चक्कर काट रहे हैं। कयास है कि उस रोज अयोध्या में केवल गेरूवाधारियों का ही जमावड़ा हो सकेगा जो उनका तो पेशा ही है। संभवतः जनता के इस मूड को भांप कर ही आरएसएस ने नया पैंतरा बदला है कि प्रयाग राज में लगने वाले कुंभ में यूपी के हर गांव से कम से कम पांच लोग पंहुचे।
जाहिर यह सब राम मंदिर के लिए नहीं बल्कि 2019 को लेकर चल रहा है। 2019 को पार पाने के लिए भाजपा की कई तैयारियां चल रही है। इसमें इस बार दलित वोटों को अधिक से अधिक अपनी झोली में डालना भी है। अभी अंदरखाने बसपा भाजपा के मिलन की तैयरी चल रही है। हो गया तो ठीक वरना चुनाव में बसपा के कथित दलित प्रेम को उजागर करते हुए उनके वोटरों पर डोरा डालने की रणनीति पर गहनता सं मंथन चल रहा है। भाजपा इसके लिए युपी कैडर के अवकाश प्राप्त आधा दर्जन दलित अफसरों को तैयार कर रही है। ये वे दलित अफसर हैं जो मायावती के शासनकालों में उनके करीबी और बेहद खास रहे हैं। लोकसभा चुनाव में यही पूर्व अफसर मायावती केे दलित प्रेम की बखिया उधेड़ेंगे।
मायावती शासनकाल में एससीएसटी आयोग और दलित उत्पीड़न के मुकदमों को लेकर उन्हें घेरने की तैयारी है। ये पूर्व दलित अफसरान अभी से फोल्डर और बुकलेट तैयार कर रहे हैं जिसे बसपा से तालमेल की संभावना क्षींण होते ही पब्लिक में बंटवाना शुरू हो जाएगा। भाजपा के इस रणनीत के पीछे भाजपा के दो पूर्व अफसरान तेजी से काम कर रहे हैं। एक है, लोकसभा सदस्य उदितराज और दूसरे यूपी एससीएसटी आयोग के चेयरमैन बृजलाल!
मयावती पर सबसे बड़ा इल्जाम यह होगा कि जिन दलित वोटरों के बदौलत वे सत्ता के शिखर तक पंहुची, उन्हें कैसे कैसे गुमराह कर केवल वोट बैंक के रूप में इस्तेमाल किया और उनका सौदा तक किया। इलजाम यह है कि 13 मई 2007 को पूर्ण बहुमत की सरकार सत्ताशीन होने के एक सप्ताह बाद ही तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने तत्कालीन मुख्य सचिव शंभूनाथ के हस्ताक्षर से आदेश जारी करवाया कि अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति वर्ग के पीड़ित व्यकितयों के मामले में हत्या,बलात्कार व हत्या के प्रयास जैसे मामलों को छोड़कर अन्य मामलों में एससी एसटी एक्ट के तहत मुकदमें पंजिकृत नहीं होंगे। मायवाती के काफी नजदीक रहे एक मौजूदा दलित अफसर का कहना है कि मायावती के इस आदेश से दलितों की दो तरफा प्रताड़ना हुई।
एक तो उन्हें प्रताड़ित होना ही पड़ा दूसरे इस अपराध के होने पर सरकार द्वारा जो इमदाद मिलता उससे भी उन्हें महरूम होना पड़ा क्योंकि जबतक एससीएसटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज नहीं होगा तब तक पीड़ित व्यक्ति सरकारी इमदाद का हकदार नहीं हो सकता। उक्त अफसर ने कहा कि भाजपा ने ताजा दलित एक्ट संशोधन में न केवल उन्हें मिलने वाला सरकारी इमदाद चार गुना कर दिया है, मुकदमा दर्ज होते ही पीड़ित को इसे प्राप्त हो जाना है। और दलित उत्पीड़न के मामले में मुकदमा दर्ज करने की कानूनन वाध्यता भी कर दी है। दलितों के मामले में मायावती के कई ऐसे मामलों का कच्चा चिट्ठा है जो मायवाती के दलित प्रेम की असलियत को चीड़ फाड़ कर उन्हें बेपर्दा कर रहा है।
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