परीक्षको के प्रतिक्रिया के बीच शिक्षक विधायक ध्रुव कुमार त्रिपाठी ने कहा कि यदि यूपी बोर्ड द्वारा ऐसा किया गया है तो नकलविहीन परीक्षा कराने की सरकार की मंशा का यह उपहास है और इससे छात्रों को पढ़ाई की ओर आकर्षित करना भी मुमकिन नही होगा।
परीक्षा परिणाम पर तो सभी परीक्षक चौके होंगे लेकिन सरकार की मंशानुरूप ज्यादातर खामोश ही रहे।अब जब पत्रिका ने बोर्ड के जादुई प्रतिशत की असलियत का खुलाशा कर दिया तो परीक्षकों ने अपनी जबान खोलनी शुरू कर दी।हाई स्कूल साइंस विषय के परीक्षक रहे संजय कुमार गिरी का कहना है कि जिस तरह छात्र फेल हो रहे थे उस हिसाब से रिजल्ट का प्रतिशत 35-40 प्रतिशत से अधिक नही आना चाहिए था।लेकिन 75 और 72 प्रतिशत छात्रों का पास होना अचरज भरा है।
हिंदी के परीक्षक रहे अशोक कुमार पांडेय और सुरेश सिंह ने कहा कि रिजल्ट तो तभी डाउटफुल लगा जब हिंदी जैसे विषय में छात्र फेल हो रहे थे।कहा कि यूपी बोर्ड स्वयं मान रहा है कि बोर्ड की परीक्षा में 11 लाख 20 हजार छात्र केवल हिंदी में फेल हुए हैं।तो फिर साइंस मैथ या अन्य कठिन विषयों में छात्र कैसे पास हो गए जिससे सम्मानजनक रिजल्ट का प्रतिशत बन गया।सोशल साइंस विषय के परीक्षक रहे अजय कुमार ने भी बोर्ड के परीक्षाफल में कहीं न कहीं पेंच होने की बात कही है।उन्होंने कहा कि लगता है परीक्षकों की जांची गई कापियों के ओएमआर सीट को परे रखकर मनमाना नंबर देकर छात्रों को पास किया गया।अब इसके पीछे बोर्ड की क्या मंशा रही होगी,वह ही जानें।
By Yashoda Srivastav