स्वच्छता अभियान से जुड़े एक केंद्रीय कर्मचारी ने कहा कि खुले में शौच करने जाने वालों में बड़ी तादाद उनकी है, जिनके घर शौचालय की सुविधा उपलब्ध है। कई लोग टहलने के उद्देश्य से शौच के लिए खुले में जाते हैं, तो उनकी संख्या भी कम नहीं जो पानी दूर से लेकर जाने के आलस में बाहर जाते हैं। कर्मचारी ने कहा कि केवल शौचालयों का निर्माण ही काफी नहीं है। जब तक प्रत्येक शौचालय के साथ पानी की सुविधा उपलब्ध नहीं कराई जाएगी, खुले में शौच से मुक्ति का सपना पूरा कर पाना असंभव है। इसके लिए प्रत्येक शौचालय के साथ नल उपलब्ध कराने की जरूरत है। पानी कहीं दूर से लाकर शौचालयों के उपयोग करने में कोई भी असुविधा महसूस कर सकता है। उन्होंने कहा कि स्वच्छता अभियान की प्रत्येक बैठक में शौचालयों के साथ पानी की उपलब्धता का मुद्दा उठता रहता है, लेकिन जिम्मेदार ओहदों पर बैठे लोग इस तरफ ध्यान नहीं देते। गांव में बने ज्यादेतर शौचालयों के उपयोग में न होने का एक बड़ा कारण उसके साथ पानी की अनुपलब्धता है।
गांवों में 50 फीसदी शौचालय का निर्माण शेष पंचायत विभाग की रिपोर्ट के अनुसार अभी भी गांवों में 50 प्रतिशत शौचालयों का निर्माण शेष है। इधर अधिकारी दनादन गांवों को खुले में शौच मुक्त करने का अभियान चला रहे हैं। वहीं सांसद आदर्श ग्रामों में योजना की खस्ता हालत कुछ और ही कहानी बयान कर रही है। गौरतलब है कि सांसद ने सन 2014 में पहला बड़हरामीर गांव को गोद लिया था। 887 मकानों की आबादी वाले गांव में महज 164 शौचालयों का ही निर्माण हुआ था। अभियान के तहत 135 शौचालय बनवाए जाने थे, लेकिन अभी तक इसे भी पूरा नहीं किया जा सका है। सांसद द्वारा गोद लिया गया दूसरा गांव है पनियरा ब्लॉक का गोनहा गांव। इस गांव में 885 मकान हैं। यहां 101 घरों में पहले से ही शौचालय था। स्वच्छ भारत मिशन के तहत 155 घरों में नया शौचालय बनना था। विभाग का दावा है कि सांसद आर्दश गांव में शौचालयों का निर्माण तेजी से हो रहा है जबकि हकीकत यह है कि इसकी प्रगति बहुत ही धीमी है। सच तो यह है कि गांव वालों में भी नाराजगी है। प्रशासन का दावा है कि सांसद द्वारा गोद लिए गए गांवों को ओडीएफ करना पहली प्राथमिकता है।
By: यशोदा श्रीवास्तव