नेपाल में जारी अस्थिर राजनीति के बीच पूर्व राजा ज्ञानेंद्र ने भाई टीका के पर्व के अवसर पर जनता को संबोधित अपने बयान में कहा कि नेपाल के सुख समृद्धि के लिए उनकी राजनीति में सक्रियता जरूरी जान पड़ती है। उन्हांेने कहा कि हैरत है कि नेपाल में आम चुनाव का बिगुल बज गया है लेकिन चुनाव मैदान में उतरी पाहर्टयों के पास नेतृत्व के ही लाले पड़े हैं। किसी भी राजनीतिक दल के पास सक्ष्म नेतृत्व नही है ऐसे में चुनाव बाद स्थिर सरकार की उम्मीद कैसे की जा सकती है। पूर्व नरेश ने लोकतांत्रिक ढंग नेपाल की जिम्मेदारी लेने के भी संकेत दिए है। इसीके साथ उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी विधानसभा तथा संसंदीय चुनाव में भी हिस्सा लेगी। नंपाल के संसद में राष्टीयप्रजातंत्र पार्टी नेपाल राजा समर्थक पार्टी मानी जाती है जिसके अध्यक्ष अभी कमल थापा हैे। कमल थापा देउबा सरकार में हाल ही उप प्रधानमंत्री बनाए गए है।
पूर्व नरेश के इस बयान के बाद नेपाल की राजनीति में भूचाल आ गया है। इसकी वजह यह है कि जितने भी बड़े दल हैं, राजशाही खत्म होने के बाद वे न तो स्थिर सरकार दे सके हैं और न ही जनहित की कोइ योजना ही ला सके है। कहना न होगा कि लोकतंत्र में नेपाली जनता अभी तक कोई बदलाव की अनुभूति नही कर पाई है। जनता मौजूदा लोंकतंत्र से त्रस्त है। अपनी नाकामी की समीक्षा कर रहे राजनीतिक दल राजा के बयान से चैकन्ने है। वहीं दूसरी ओर नेपाली राजनीतिक समीक्षक इस बात के मंथन में जुट गए हैं कि यदि पूर्व नरेश राजनीतिक रूप से सक्रिय होकर चुनाव मैदान में उतर तोे नेपाली राजनीति किसी करवट बैठेगा। नेपाल में नए संविधान के तहत कुल सात प्रदेश बनाए गए हैं जिनमें करीब 55 से 75 विधायक तक हो सकते है। कुल 75 जिलों में एक जिले से कम से कम तीन सांसद हो सकते है। नेपाल मे इन दोनों सदनों के लिए चुनाव की घेषणा हो चुकी है। दो चरणों में होने वाले चुनाव का पहला नवंबर का अंतिम सप्ताह में है तो दूसरा चरण दिसंबर का प्रथम सप्ताह निश्चित है। चुनाव में सक्रिय भागीदारी के लिए पूर्व नरेश के पास समय कम है बावजूद इसके यदि अपनी पार्टी को चुनाव मैदान में उतारकर वे स्वयं प्रचार में जुट गए तो सत्ता हासिल करने का दावा करने वाली किसी भी पार्टी के लिए मुसीबत तो खड़ी ही कर देंगे।
By- Yasoda Srivastava