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नेपाल के पूर्व नरेश ज्ञानेन्द्र ने चुनाव में भागीदारी के दिये संकेत

locationमहाराजगंजPublished: Oct 23, 2017 09:57:07 am

Submitted by:

Akhilesh Tripathi

सत्ता हासिल करने वाले दलों के सामने चुनौती हो सकते हैं पूर्व नरेश

Nepal former King

नेपाल के पूर्व नरेश ज्ञानेन्द्र

महाराजगंज. नेपाल की राजनीति में एक नए धुरी का उदय होने वाला है। यदि ऐसा हुआ तो अभी चल रहे नेपाली लोकतंत्र की राजनीति का करवट चौंकाने वाला हो सकता है। दीपावली के बाद नेपाल में धूमधाम से मनाए जाने वाला भाई टीका के पर्व पर पूर्व नरेश ज्ञानेंद्र के बयान से नेपाल के सभी राजनीतिक दल चौकन्ना हो गए है। नेपाल में भले ही राजशाही खत्म कर लोकतंत्र की स्थापना हुई हो लेकिन करीब ढाई करोड़ की आवादी वाले नेपाल मेें एक तिहाई आवादी अभी राजशही के विरोध में नही है। इसकी एक बड़ी वजह नेपाल में विफल लोकतंत्र का होना भी है। 2008 के प्रथम संविधान सभा के चुनाव के बाद नेपाल का लोकतांत्रिक संविधान अभी भी अधर में है। मधेसी दल और मधेसी लोगों का भविष्य भी अधर में है। सत्ता लोलुपता की प्रवृत्त बढ़ी है। वैचारिक रूप से मतभेद से लबरेज दलें भी सत्ता के लिए विपरीत विचारधारा वाली पार्टियों के साथ मिलकर सत्ता का मजा ले रही है। करीब तीन सालों से नेपाल में सरकार सरकार का खेल जारी है। नेपाली जनता तमाशबीन बनी हुई है।

नेपाल में जारी अस्थिर राजनीति के बीच पूर्व राजा ज्ञानेंद्र ने भाई टीका के पर्व के अवसर पर जनता को संबोधित अपने बयान में कहा कि नेपाल के सुख समृद्धि के लिए उनकी राजनीति में सक्रियता जरूरी जान पड़ती है। उन्हांेने कहा कि हैरत है कि नेपाल में आम चुनाव का बिगुल बज गया है लेकिन चुनाव मैदान में उतरी पाहर्टयों के पास नेतृत्व के ही लाले पड़े हैं। किसी भी राजनीतिक दल के पास सक्ष्म नेतृत्व नही है ऐसे में चुनाव बाद स्थिर सरकार की उम्मीद कैसे की जा सकती है। पूर्व नरेश ने लोकतांत्रिक ढंग नेपाल की जिम्मेदारी लेने के भी संकेत दिए है। इसीके साथ उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी विधानसभा तथा संसंदीय चुनाव में भी हिस्सा लेगी। नंपाल के संसद में राष्टीयप्रजातंत्र पार्टी नेपाल राजा समर्थक पार्टी मानी जाती है जिसके अध्यक्ष अभी कमल थापा हैे। कमल थापा देउबा सरकार में हाल ही उप प्रधानमंत्री बनाए गए है।
पूर्व नरेश के इस बयान के बाद नेपाल की राजनीति में भूचाल आ गया है। इसकी वजह यह है कि जितने भी बड़े दल हैं, राजशाही खत्म होने के बाद वे न तो स्थिर सरकार दे सके हैं और न ही जनहित की कोइ योजना ही ला सके है। कहना न होगा कि लोकतंत्र में नेपाली जनता अभी तक कोई बदलाव की अनुभूति नही कर पाई है। जनता मौजूदा लोंकतंत्र से त्रस्त है। अपनी नाकामी की समीक्षा कर रहे राजनीतिक दल राजा के बयान से चैकन्ने है। वहीं दूसरी ओर नेपाली राजनीतिक समीक्षक इस बात के मंथन में जुट गए हैं कि यदि पूर्व नरेश राजनीतिक रूप से सक्रिय होकर चुनाव मैदान में उतर तोे नेपाली राजनीति किसी करवट बैठेगा। नेपाल में नए संविधान के तहत कुल सात प्रदेश बनाए गए हैं जिनमें करीब 55 से 75 विधायक तक हो सकते है। कुल 75 जिलों में एक जिले से कम से कम तीन सांसद हो सकते है। नेपाल मे इन दोनों सदनों के लिए चुनाव की घेषणा हो चुकी है। दो चरणों में होने वाले चुनाव का पहला नवंबर का अंतिम सप्ताह में है तो दूसरा चरण दिसंबर का प्रथम सप्ताह निश्चित है। चुनाव में सक्रिय भागीदारी के लिए पूर्व नरेश के पास समय कम है बावजूद इसके यदि अपनी पार्टी को चुनाव मैदान में उतारकर वे स्वयं प्रचार में जुट गए तो सत्ता हासिल करने का दावा करने वाली किसी भी पार्टी के लिए मुसीबत तो खड़ी ही कर देंगे।
By- Yasoda Srivastava

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