खैर पीएम मोदी की नेपाल की तीसरी यात्रा जो जनकपुर से मुक्तिनाथ की थी। वह पूरी तरह धार्मिक रही। उन्होंने कहा भी कि, वे भारत के प्रधानमंत्री नहीं प्रधान र्तीथयात्री के रूप में नेपाल आए हैं। मोदी ने जनकपुर में माता जानकी के दर्शन के साथ मुक्तिनाथ में झांझ बजाकर अपनी यात्रा को पूरी तरह धार्मिक साबित करने की कोई कोशिश नाहीं छोड़ी।
सच भी है! पीएम मोदी ने जिस रामयाण सर्किट के बहाने अयोध्या को जनकपुर से जोड़कर धार्मिक और पर्यटकीय विकास की बात की उसके पीछे का निहितार्थ यही है। जनकपुर से नेपाल की राजधानी काठमांडू तक के नेपाली राजनीतिक गलियारों में मोदी के धार्मिक भाषणों को भारत के आसन्न लोकसभा चुनाव से जोडकर देखा जा रहा है। जनकपुर नेपाल के नवगठित प्रदेश संख्या दो की राजधानी है। जहां फिलहाल मधेसियों की सरकार है। माता सीता और राम भारतीयों के आराध्य देवी देवता तो हैं ही करीब तीन दशक से ये भारतीय राजनीति के प्रमुख केंद्र विदु भी बन गए हैं। और सीधे कहा जाय तो वर्तमान राजनीति में सीता और राम निर्णायक भूमिका में हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव हो या इसके पहले राम सीता और अयोध्या को खूब भुनाया गया।
नेपाल की राजनीति में धार्मिक कार्ड विफल रहा है। लेकिन नेपाल के हिंदू राष्ट के स्वरूप को बचाने के नाम पर भारतीय राजनीति को प्रभावित किया गया। 2006 में नेपाल को जब धर्म निरपेक्ष राष्ट घोषित किया गया तब उसकी सर्वाधिक प्रत्ििरकया भारत के हिंदूवादी संगठनों में हुई। पिछले आम चुनाव में हिंदू कार्ड की वजह से नेपाल के सबसे बड़े और पुराने राजनीकि दल नेपाली कांगे्रस का सफाया हो गया। भारत की प्रेरणा से नेपाली कांगे्रस के पूर्व पीएम शेर बहादुर देउबा ने आम चुनाव में हिंदू कार्ड खेलते हुए नेपाल के हिंदू राष्ट के स्वरूप को बहाल करने का वादा किया तो कथित हिंदू राष्ट में उनकी पार्टी सत्ता से बाहर हो गई। जाहिर है कि पीएम मोदी के नेपाल यात्रा को धार्मिक यात्रा साबित करने के पीछे नेपालियों में नहीं, भारतीयों में उनकी धार्मिक भावना को धार देने की रही।
शुक्रवार को पीएम मोदी जनकपुर से अयोध्या तक चलने वाली मैत्री बस को झंडी दिखाते हैं तो इसे और धार देने की कोशिश यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने शनिवार को अयोध्या में इसी रूट पर चलनेे वाली दूसरी बस को झंडी दिखाकर रवाना किया। यद्यपि की यह पूर्व नियोजित था लेकिन इस नियोजन का अपना निहितार्थ भी था।