7 साल पुरानी राजनीतिक खींचतान
शिवपाल और अखिलेश के बीच राजनीतिक खींचतान 7 सालों पुरानी थी। 2022 विधानसभा चुनाव में दोनों ने भले ही रथ यात्रा एक साथ निकाली हो लेकिन फिर भी दोनों के बीच मनभेद बना रहा।
मैनपुरी उपचुनाव में नेता जी मुलायम की विरासत की जंग जीतने की बात आई तो चाचा-भतीजे फिर एक साथ हो गए। शिवपाल के साथ आने से सपा इस चुनाव में मजबूत स्थिति में आ गई। इस फैक्टर ने डिंपल की रिकॉर्ड जीत में अहम भूमिका निभाई है।
शिवपाल और अखिलेश के बीच राजनीतिक खींचतान 7 सालों पुरानी थी। 2022 विधानसभा चुनाव में दोनों ने भले ही रथ यात्रा एक साथ निकाली हो लेकिन फिर भी दोनों के बीच मनभेद बना रहा।
मैनपुरी उपचुनाव में नेता जी मुलायम की विरासत की जंग जीतने की बात आई तो चाचा-भतीजे फिर एक साथ हो गए। शिवपाल के साथ आने से सपा इस चुनाव में मजबूत स्थिति में आ गई। इस फैक्टर ने डिंपल की रिकॉर्ड जीत में अहम भूमिका निभाई है।
कभी भाजपा चल रही थी शिवपाल पर दांव
विधानसभा चुनाव 2017 से ही भाजपा शिवपाल को अपने पाले में लाने की कोशिश कर रही थी। जब शिवपाल के भाजपा में शामिल होने की अटकलें तेज होती तब पार्टी इस पर मौन धारण कर मुद्दे को हवा देने में लग जाती। लेकिन शिवपाल उस समय भाजपा के साथ जाने की बात नहीं स्वीकारते थे।
विधानसभा चुनाव 2017 से ही भाजपा शिवपाल को अपने पाले में लाने की कोशिश कर रही थी। जब शिवपाल के भाजपा में शामिल होने की अटकलें तेज होती तब पार्टी इस पर मौन धारण कर मुद्दे को हवा देने में लग जाती। लेकिन शिवपाल उस समय भाजपा के साथ जाने की बात नहीं स्वीकारते थे।
2018 में उन्हें लाल बहादुर शास्त्री मार्ग वाला सरकारी आवास दिया गया था। यह आवास पहले पूर्व सीएम मायावती को दिया गया था। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद उन्हें इस आवास को खाली करना पड़ा था।
शिवपाल यादव ने अपने ट्वीट्स के जरिये भी सपा से दूरी पर संकेत दिया था। उन्होंने कई बार इस बात को कहा कि अखिलेश ने उनके प्रत्याशियों को टिकट दिया होता तो आज सपा की सरकार होती।
अब पॉलिटिकल एक्सपर्ट्स मान रहे हैं कि अखिलेश ने प्रसपा का विलय सपा में कराकर भाजपा को सीधा संदेश दिया है। अखिलेश ने भी 2024 लोकसभा चुनाव कन्नौज से लड़ने की बात कही है। इसके बाद माना जा रहा है कि शिवपाल विधानसभा में नेता विपक्ष हो सकते हैं।