यह केवल उन लोगों के साथ एक मुद्दा नहीं, जिनके पास कोई बात करने वाला नहीं है। इसका उम्र, लिंग, पेशे, सफलता, सामाजिक, वैवाहिक, आर्थिक स्थिति से भी कोई लेना-देना नहीं। इसके ज्मिेदार कुछ हद तक हम खुद हैं। हमने अपने आसपास कुछ सीमाएं बना ली हैं जो हमें अवसाद की ओर ले जा रही हैं। इसी विषय पर अभिनेता अनुपम खेर ने ट्विटर पर एक वीडियो शेयर की। इसमें उन्होंने लोगों को खुलकर बात करने की सलाह दी।
अनुपम खुद भी अवसाद के शिकार हो चुके हैं। निजी अनुभव का जिक्र कर उन्होंने नकली मुस्कुराहट को रोकने, हर वत खुद को फिट दिखाने की कोशिश को बंद करने का आग्रह किया। अनुपम कहते हैं- हम सब इन दिनों पूरे दिन मशीनों के साथ उलझे रहते हैं। इंसानी स्पर्श हमारे जीवन से गायब होता जा रहा है। जब मैं छोटा था तब एक छोटे से घर में कई लोग साथ रहते थे। घर इतना छोटा था कि असर कोई न कोई एक दूसरे से टकरा जाता था। तब दादाजी ने हमें एक उपाय सुझाया। उन्होंने कहा जब आप टक्कर मारने वाले हैं एक-दूसरे को गले लगाएं। ऐसा कर एक अलग अनुभूति होगी।
आज घर तो बड़ा है लेकिन उसमें रहने वाले लोग अपने मोबाइल से साथ बिजी रहते हैं। मुझे लगता है सोशल मीडिया पर यही निर्भरता अवसाद की तरफ ले जा रही है। डल्यूएचओ के मुताबिक भारत में 5.6 करोड़ लोग इससे ग्रसित हैं। कई रिपोर्ट में बताया गया है कि ऐसे लोगों के लिए दूसरों के सामने दिल की बात कहना आसान नहीं। उन्हें डर रहता है कि दूसरें जज कर रहे हैं या फिर धाक जमा रहे हैं।
ये सब बातें आसपास की दुनिया को छोड़ डिजिटल दुनिया को अपनाने पर मजबूर करती है। पर सबसे बड़ा सवाल यह है कि या भारत की मौजूदा पेशेवर मदद इस स्थिति को संभालने के लिए पर्याप्त है? दीपिका पादुकोण भी डिप्रेशन की शिकार हो चुकी हैं। वे लिव लव लाफ नाम का फाउंडेशन भी चलाती है। दीपिका का कहना है कि आज के दौर में डिप्रेशन के साथ ये कलंक जुड़ा हुआ है कि लोग अपने लिए मदद नहीं मांगते। किसी को इससे बाहर निकलने के लिए कहना वैसा ही है, जैसे पैर से लाचार इंसान को चलने के लिए कहना।