जब मैंने दिल्ली के स्कूल में पढऩा शुरू किया तब छोटे बच्चों के लिए प्यार और उनकी देखभाल करना मेरे लिए एक पेशे से ज्यादा जुनून बन गया। शिक्षक के रूप में 33 साल की सेवा के बाद, मैं पिछले साल एक प्रसिद्ध पब्लिक स्कूल में वाइस प्रिंसिपल के पद से सेवानिवृत्त हुई। रियारटमेंट के बाद भी मेरे जीवन में दूसरों को देने के लिए बहुत कुछ बचा था। इसलिए मै ंने ‘द न्यू मी’ नामक एक कार्यक्रम लॉन्च किया। यह कार्यक्रम व्यक्तिगत विकास उपकरण के साथ युवाओं को सशक्त बनाने और उनके चरित्र को समृद्ध करने के लिए था। आज के बच्चों के जीवन में जानकारियों की बमबारी हो रही है। लेकिन कोई भी उन्हें आचरण का पाठ नहीं पढ़ाता। उन्हें कोई यह नहीं बताता कि अपने मूल्यों को किस तरह इस्तेमाल करना चाहिए।
उन्हें सिर्फ सफलता के पीछे भागना सिखाया जा रहा है। खुशी के बारे में कोई नहीं बताता। मेरी वर्कशॉप बौधिक सिद्धंतों पर आधारित है। इसमें खुशियां, साकरात्मक सोच और निजी बदलाव शामिल हैं। इस वर्कशॉप के साथ मैं अलग-अलग स्कूलों व शिक्षकों तक पहुंचने लगी। इसके बाद एक वर्कशॉप की वजह से दूसरी वर्कशॉप करने का मौका मिलने लगा। लोग इसके बारे में एक-दूसरे से बात करने लगे। और इस तरह सिर्फ एक साल में मैंने टीचर और स्टूडेंट्स के लिए 20 वर्कशॉप कीं। मैं खुद को खुशनसीब मानने लगी। मेरे एक सेशन में 300 बच्चों ने हिस्सा लिया।
एक कम उम्र की लड़की मेरे वर्कशॉप में पहुंची। उसने कहा- काश आपका यह सत्र लंबा होता। क्या आप मेरे स्कूल आकर सीखा नहीं सकतीं। मैं आपसे सीखना चाहती हूं। हमें अपने युवाओं को हर पल, हर दिन मूल्यों का पाठ पढ़ाना चाहिए। हमें अपने शिक्षकों को सही मायने में एक रोल मॉडल बनाने की जरूरत है। बदलाव के लिए हमें हजारों लोगों की जरूरत नहीं है। जैसा कि मलाला यूसुफजई ने कहा, एक किताब, एक कलम, एक बच्चा, और एक शिक्षक, दुनिया को बदल सकता है।