उन्होंने कहा, इसलिए छात्रों को अपने गुरुओं का आभारी होना चाहिए और साथ ही माता, मातृभाषा और मातृभूमि की सेवा के लिए काम करना चाहिए। उपराष्ट्रपति ने कहा, अंग्रेजी, हिंदी या फ्रेंच सीखने में कुछ भी गलत नहीं है, (लेकिन) छात्रों को अपनी मातृभाषा में कुशल होना चाहिए। जो दिल से निकलती है और भावनाओं को बेहतर तरीके से व्यक्त करने में मदद करती है।
उन्होंने कहा कि जब उच्च शिक्षा के क्षेत्र में विकास होगा है तो देश बढ़ेगा। उन्होंने आगे कहा, हम एलपीजी – उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण के युग में हैं। आज जीवन बहुत प्रतिस्पर्धी बन गया है, इसलिए छात्रों को नए कौशल सीखने और समकालीन दुनिया में नए ज्ञान प्राप्त करने के लिए खुद को तैयार करना होगा। देश की महान संस्कृति को सलाम करते हुए उन्होंने कहा कि जमीनी स्तर पर वापस जाने की आवश्यकता है।
उन्होंने कहा, भारत का एक महान विरासत है और आपको महान भारतीय संस्कृति के उत्तराधिकारी के रूप में गर्व महसूस करना चाहिए। विविधता में एकता और हमारी संस्कृति की जड़ें हमारे देश की अखंडता के लिए महत्वपूर्ण हैं। भारत को अवसरों की भूमि बताते हुए उन्होंने कहा कि किसी भी पृष्ठभूमि से होने के बावजूद कड़ी मेहनत और जुनून के साथ कोई भी कुछ भी हासिल कर सकता है। नायडू ने दिवगंत पूर्व राष्ट्रपति ए. पी. जे. अब्दुल कलाम और प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी का उदाहरण दिया।