मैनेजमेंट मंत्र

पढ़ाई को नहीं थे पैसे, साइकिल पंचर से चलता था घर खर्च, ऐसे पूरा किया IAS बनने तक का सफर :यहां पढ़ें

Motivational Story

Feb 23, 2019 / 01:35 pm

Deovrat Singh

Motivational Story

motivational story : यूपीएससी की परीक्षा का नाम सुनने मात्र से ही अच्छे – अच्छे अपने पैर खिंच लेते हैं। बहुत से लोग अपने आर्थिक स्तर के बहाने बना लेते हैं। आईएएस की परीक्षा की तैयारी के लिए जज्बे की जरुरत होती है, इसमें न कोई आर्थिक हालात झुकने को मजबूर करते हैं और ना ही किसी प्रकार से समय निकाल पाना मुश्किल होता है। मंजिल पाने की ललक अगर इंसान में है तो किसी भी प्रकार की दीवारें बाधा नहीं बन सकती। आज हम जिस शख्स का बात कर रहे हैं वो आज जिस मुकाम पर हैं, उसके पीछे संघर्ष की कहानी युवाओं में जोश भर देगी। हम बात कर रहे हैं IAS ऑफिसर वरुण बरनवाल की, जो कभी साइकिल के पंक्चर की दुकान में काम करते थे। उसी के जरिए गुजर बसर होती थी। वरुण महाराष्ट्र के एक छोटे से शहर बोइसार के रहने वाले हैं, जिन्होंने 2013 में हुई यूपीएससी की परीक्षा में 32वां स्थान हासिल किया। सफलता के पीछे की वजह नहीं होती क्योंकि मेहनत से ही मुकाम हासिल होता है लेकिन वरुण की इस मेहनत में सहयोग के तौर पर उनकी मां, दोस्त और रिश्तेदारों का अहम रोल है।
पिता की मृत्यु के बाद किया साइकिल की पंचर बनाने का काम
साल 2006 में वरुण के पिता की मृत्यु हो गई, उस वक्त वरुण ने 10वीं की परीक्षा दी थी। पिता की मौत के बाद वरुण ने परिवार की जिम्मेदारी उठाने का फैसला कर पढ़ाई छोड़ने का निर्णय किया। पढ़ाई छोड़कर उन्हें पिता की साइकिल की दुकान ही संभालनी है। 10वीं की परीक्षा देने के बाद उन्होंने साइकिल की दुकान पर पंचर लगाना शुरू किया। लेकिन जैसे ही 10वीं के परीक्षा परिणाम जारी हुए, तो परिवार में ख़ुशी का माहौल बन गया। दरअसल, वरुण ने 10वीं की परीक्षा में टॉप किया था। वो पूरे गांव में सबसे ज्यादा अंक हासिल करने वाले छात्र थे। पढ़ाई में बेटे की कबिलिलियत और लगन को देख मां ने वरुण का दाखिला हाई स्कूल करवाया और खुद ने दुकान की जिम्मेदारी उठा ली। हालांकि, वरुण ने काफी समय तक साइकिल की दुकान पर पंचर लागाए।
हाई स्कूल में दाखिले के लिए आगे आये भामाशाह
जब ग्यारहवीं की पढ़ाई के लिए पैसे नहीं थे तो घरवालों ने काफी सपोर्ट किया। मां ने कहा ‘हम सब काम करेंगे, तू पढ़ाई कर’. 11वीं-12वीं जीवन के सबसे कठिन साल रहे हैं। सुबह 6 बजे उठकर स्कूल जाना और उसके बाद 2 से रात 10 बजे तक ट्यूशन लेना और उसके बाद दुकान पर हिसाब करना होता था। वरुण ने बताया 10वीं में एडमिशन के लिए हमारे घर के पास एक ही अच्छा स्कूल था। लेकिन उसमें एडमिशन लेने के लिए 10 हजार रुपये डोनेशन लगता है। जिसके बाद मैंने एक साल रूक कर पढ़ने का फैसला किया। लेकिन भगवान कुछ और ही मंजूर था, माँ ने बताया कि पिताजी का जो इलाज करने वाले डॉक्टर ने 10 हजार रुपये निकाल दिए और कहा जाओ दाखिला करवा लो। वहीं से जिंदगी ने फिर से रफ़्तार पकड़ ली।
भामाशाहों ने करवाई पढ़ाई
किस्मत और मेहनत के धनी वरुण ने बताया कि पढ़ाई के लिए कभी 1 रुपये भी खर्च नहीं किया है। शुरू से ही मेरी पढ़ाई से सभी प्रभावित थे। कोई न कोई मेरी किताबें, फॉर्म, फीस भर दिया करता था। मेरी शुरुआती फीस तो डॉक्टर ने भर दी, लेकिन इसके बाद टेंशन ये थी स्कूल की हर महीने की फीस कैसे दूंगा। जिसके बाद ‘मैंने सोच लिया अच्छे से पढ़ाई करूंगा और फिर स्कूल के प्रिंसिपल से रिक्वेस्ट करूंगा कि मेरी फीस माफ कर दें’. और हुआ भी यही। वरुण के दो साल की फीस टीचर ने दे दी। आगे की पढाई में एक साल की फीस माँ ने भरी और उसके बाद दोस्तों के सहारे भरी गई।

UPSC की तैयारी
वरुण ने बताया कि मेरी प्लेसमेंट तो काफी अच्छी हो गई थी। बहुत सी कंपनी में नौकरी के ऑफर मेरे पास थे, लेकिन उस वक्त सिविल सर्विसेज परीक्षा देने का मन बना लिया था। सपना बना लिया लेकिन तैयारी कैसे और कब हो, इसका अंदाजा नहीं था। तैयारी के लिए उनके भइया ने मदद की। जब यूपीएससी का रिजल्ट आया तो भइया से ही पूछा कि मेरी रैंक कितनी आई है। जिसके बाद उन्होंने बताया कि 32वीं रैंक हासिल हुई है। वरुण की कहानी जितनी ही रोचक है उतनी ही जज्बे से भरी हुई है। UPSC की तैयारी करने वाले प्रत्येक युवा को सपना साकार करने के लिए जज्बे के साथ मेहनत भी करनी चाहिए। मेहनत करने वाले युवा अक्सर कामयाब जरूर होते हैं। वर्तमान में वरुण जिला विकास अधिकारी भावनगर है।

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