दसवीं में सिर्फ 46 फीसदी लेकिन पीसीएस में सफल
पीसीएस में सफल लकी सिंह ग्यारहवीं में फेल हो गई थीं। हाईस्कूल में 46 प्रतिशत ही नंबर थे। लकी सिंह कहती हैं कि कम या अधिक नंबर मायने नहीं रखते। सफलता में अपकी लगन और इच्छाशक्ति महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसलिए ऐसे विद्यार्थी जिनके बोर्ड परीक्षा में कम अंक आए हैं वे निराश न हों और आगे सफलता के लिए मेहनत करें।
पीसीएस में सफल लकी सिंह ग्यारहवीं में फेल हो गई थीं। हाईस्कूल में 46 प्रतिशत ही नंबर थे। लकी सिंह कहती हैं कि कम या अधिक नंबर मायने नहीं रखते। सफलता में अपकी लगन और इच्छाशक्ति महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। इसलिए ऐसे विद्यार्थी जिनके बोर्ड परीक्षा में कम अंक आए हैं वे निराश न हों और आगे सफलता के लिए मेहनत करें।
दसवीं कक्षा में 44.5% अंक और आज हैं जिला कलक्टर
छत्तीसगढ़ सरकार में जिला कलक्टर हैं। गांव की पाठशाला में पढ़े अवनीश ने देश की सर्वोच्च प्रतियोगी परीक्षा में सफलता हासिल कर साबित कर दिया था कि इरादे बुलंद हों तो राहें आएं हो जाती है। अवनीश ने प्राथमिक शिक्षा बाल सैनिक स्कूल, केवटा से हासिल की। उन्होंने दलसिंहसराय राष्ट्रिय उच्च विद्यालय से मेट्रिक करने के बाद दलसिंहसराय के ही आर.बी. कॉलेज से इतिहास से स्नातक पास की। पहले प्रयास में अवनीश इंटरव्यू तक पहुंचे थे। दूसरे ही प्रयास में 77वीं रैंक के साथ यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा 2008 में सफलता हासिल की। दसवीं कक्षा में 44.5%, बारहवीं में 65% और ग्रेजुएशन में 60.7% अंक मिले थे। इसके बावजूद भी उन्हें बेहद मुश्किल मानी जाने वाली UPSC की परीक्षा पास की और आज वह एक IAS अधिकारी हैं।
छत्तीसगढ़ सरकार में जिला कलक्टर हैं। गांव की पाठशाला में पढ़े अवनीश ने देश की सर्वोच्च प्रतियोगी परीक्षा में सफलता हासिल कर साबित कर दिया था कि इरादे बुलंद हों तो राहें आएं हो जाती है। अवनीश ने प्राथमिक शिक्षा बाल सैनिक स्कूल, केवटा से हासिल की। उन्होंने दलसिंहसराय राष्ट्रिय उच्च विद्यालय से मेट्रिक करने के बाद दलसिंहसराय के ही आर.बी. कॉलेज से इतिहास से स्नातक पास की। पहले प्रयास में अवनीश इंटरव्यू तक पहुंचे थे। दूसरे ही प्रयास में 77वीं रैंक के साथ यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा 2008 में सफलता हासिल की। दसवीं कक्षा में 44.5%, बारहवीं में 65% और ग्रेजुएशन में 60.7% अंक मिले थे। इसके बावजूद भी उन्हें बेहद मुश्किल मानी जाने वाली UPSC की परीक्षा पास की और आज वह एक IAS अधिकारी हैं।
12वीं में मिले 44.6 प्रतिशत अंक
राजीव चौधरी ने महज 44.6 प्रतिशत अंकों के आठ बारहवीं कक्षा पास की थी। उन्होंने बताया कि वे स्कूल में पढ़ाई के प्रति गंभीर नहीं रहे। खेलकूद में ही अधिक ध्यान रहता था। खेल में रुचि होने के कारण प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया। इसके चलते पढ़ाई में अच्छा नहीं कर सके, फिर स्पोर्ट्स एजुकेशन में ही करियर बनाने का फैसला किया। कॉलेज में हमेशा टॉप किया। ग्रेजुएशन और मास्टर में विवि के टॉप 5 रहे। आज राजीव चौधरी रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के शारीरिक शिक्षा विभागाध्यक्ष और स्टूडेंट्स वेलफेयर के डीन हैं।
राजीव चौधरी ने महज 44.6 प्रतिशत अंकों के आठ बारहवीं कक्षा पास की थी। उन्होंने बताया कि वे स्कूल में पढ़ाई के प्रति गंभीर नहीं रहे। खेलकूद में ही अधिक ध्यान रहता था। खेल में रुचि होने के कारण प्रतियोगिताओं में हिस्सा लिया। इसके चलते पढ़ाई में अच्छा नहीं कर सके, फिर स्पोर्ट्स एजुकेशन में ही करियर बनाने का फैसला किया। कॉलेज में हमेशा टॉप किया। ग्रेजुएशन और मास्टर में विवि के टॉप 5 रहे। आज राजीव चौधरी रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय के शारीरिक शिक्षा विभागाध्यक्ष और स्टूडेंट्स वेलफेयर के डीन हैं।
6वीं फ़ैल होने के बाद भी हासिल किया
रुक्मणि का जन्म सेवानिवृत डिप्टी डिस्ट्रिक अटॉर्नी, होशियारपुर बलजिंदर सिंह के यहां हुआ था। उन्हें छोटी सी उम्र में ही बोर्डिंग स्कूल भेज दिया गया था। वे बोर्डिंग स्कूल का दबाव सहन नहीं कर पाई और कक्षा 6 में फेल हो गई। रुक्मणि ने बताया था कि फेल होने के बाद वे बहुत घबरा गई और डिप्रेशन में रहने लगीं। उन्होंने कहा था कि फेल होने के बाद परिवार के लोग और शिक्षकों के सामने जाने की उनकी हिम्मत नहीं होती थी। वे ये सोचकर घबरा जाती थीं कि फेल होने को लेकर उनके घर वाले और शिक्षक उनके बारे में क्या सोचते होंगे। बहुत समय तक इस टेंशन में रहने के बाद उन्होंने सोचा कि इस समस्या का उन्हें सामना करना होगा। इसके बाद रुक्मणि ने मन बना लिया कि वे कड़ी मेहनत करेंगी और अपना सर्वश्रेष्ठ देंगी। उनका मानना है कि यदि हम ठान लें तो असफलताएं हमारा रास्ता कभी नहीं रोक सकतीं। आज रुक्मणि राजस्थान सरकार में जिला कलक्टर है।