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शायरी करने के लिए छोड़ दी अच्छी नौकरी, फिर यूं जीता लोगों का दिल

अपनी शायरी की बेपनाह कामयाबी से उत्साहित होकर उन्होंने नौकरी छोड़ दी

जयपुरApr 20, 2019 / 06:51 pm

सुनील शर्मा

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मशहूर शायर और गीतकार शकील बदायूं का अपनी जिंदगी के प्रति नजरिया उनकी रचित इन पंक्तियों मे समाया हुआ है। …मैं शकील दिल का हूँ तर्जुमा, मोहब्बतों का हूँ राजदान मुझे फख्र है मेरी शायरी मेरी जिंदगी से जुदा नहीं। उत्तर प्रदेश के बदांयू कस्बे में 03 अगस्त 1916 को जन्में शकील अहमद उर्फ शकील बदायूंनी बी. ए. पास करने के बाद वर्ष 1942 में वह दिल्ली पहुंचे जहां उन्होनें आपूर्ति विभाग मे आपूर्ति अधिकारी के रूप मे अपनी पहली नौकरी की। इस बीच वह मुशायरों में भी हिस्सा लेते रहे जिससे उन्हें पूरे देश भर मे शोहरत हासिल हुई।

नौकरी छोड़ किया मुंबई का रूख
अपनी शायरी की बेपनाह कामयाबी से उत्साहित शकील बदायूंनी ने नौकरी छोड़ दी और वर्ष 1946 मे दिल्ली से मुंबई आ गए। मुंबई में उनकी मुलाकात उस समय के मशहूर निर्माता ए. आर. कारदार उर्फ कारदार साहब और महान संगीतकार नौशाद से हुई। नौशाद के कहने पर शकील ने हम दिल का अफसाना दुनिया को सुना देंगे, हर दिल में मोहब्बत की आग लगा देंगे गीत लिखा। यह गीत नौशाद साहब को काफी पसंद आया जिसके बाद उन्हें तुंरत ही कारदार साहब की ‘‘दर्द’’ के लिये साईन कर लिया गया। वर्ष 1947 मे अपनी पहली ही फिल्म ‘‘दर्द’’ के गीत ‘‘अफसाना लिख रही हूं’’ की अपार सफलता से शकील बदायूंनी कामयाबी के शिखर पर जा बैठे।

गीतों से जीता लोगों का दिन
शकील बदायूंनी के फिल्मी सफर पर अगर एक नजर डाले तो पायेंगे कि उन्होंने सबसे ज्यादा फिल्में संगीतकार नौशाद के साथ ही की। उनकी जोड़ी प्रसिद्ध संगीतकार नौशाद के साथ खूब जमी और उनके लिखे गाने जबर्दस्त हिट हुए। शकील बदायूंनी और नौशाद की जोड़ी वाले गीत- तू मेरा चांद मैं तेरी चांदनी, सुहानी रात ढल चुकी, वो दुनिया के रखवाले, मन तड़पत हरि दर्शन को, दुनिया में हम आए है तो जीना ही पड़ेगा, दो सितारों का जमीं पे है मिलन आज की रात, मधुबन मे राधिका नाची रे, जब प्यार किया तो डरना क्या, नैन लड़ जइहें तो मन वा मे कसक होइबे करी, दिल तोडऩे वाले तुझे दिल ढूंढ रहा है, तेरे हुस्न की क्या तारीफ करू, दिलरूबा मैने तेरे प्यार में क्या क्या न किया, कोई सागर दिल को बहलाता नहीं प्रमुख है। इन सभी गीतों को आज भी सुना जाता है।

तीन बार मिला फिल्मफेयर
शकील बदायूंनी को अपने गीतों के लिये तीन बार फिल्म फेयर अवार्ड से नवाजा गया। इनमें वर्ष 1960 में प्रदर्शित फिल्म चौहदवीं का चांद का गीत ‘‘चौदहवीं का चांद हो या आफताब हो, वर्ष 1961 में ‘‘घराना’’ के गीत हुस्न वाले तेरा जवाब नहीं और 1962 में बीस साल बाद में ‘‘कहीं दीप जले कहीं दिल’’ गाने के लिये फिल्म फेयर अवार्ड से सम्मानित किया गया। फिल्मीं गीतों के अलावा शकील बदायूंनी ने कई गायकों के लिये गजल लिखी है जिनमें पंकज उदास प्रमुख रहे हैं। लगभग 54 वर्ष की उम्र में 20 अप्रैल 1970 को शकील इस दुनिया को अलविदा कह गए।

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