पेड़ों की मां के नाम से चर्चित थिमाक्का ने अपनी पूरी जिंदगी दरअसल पेड़ों को पालने-पोसने में ही खपा दी। अभी तक की जिंदगी में उन्होंने करीब 8,000 पेड़ लगा डाले और सिर्फ लगाए ही नहीं, बल्कि उन्हें बच्चों की तरह पाल-पोषकर बड़ा भी किया। इसमें सबसे उल्लेखनीय उनका काम करीब 400 बरगद के पेड़ लगाना रहा। ये पेड़ हुल्लूर और कुदूर के बीच हाइवे पर करीब 4 किमी के दायरे में फैले हुए हैं।
यहां से गुजरने वाला हर शख्स एक बार जरूर धरती की हरियाली बढ़ाने वाली इस दादी का शुक्रगुजार जरूर हो जाता है, क्योंकि गर्मियों में सडक़ के किनारे लगे बरगद पेड़ छांव तो देते ही हैं, हाइवे की खूबसूरती भी बढ़ाते हैं।
खुदकुशी कर रही थीं, पति ने रोक लिया
कर्नाटक के तुमकुरु जिले में जन्मी थिमाक्का की शादी एक मजदूर से हुई थी। वह खुद भी मजदूरी कर पेट पालती थीं। शादी के 20 साल बाद भी जब उनके बच्चे नहीं हुए तो वे खुदकुशी करना चाहती थीं। जब पति ने समझाया तो बरगद के पेड़ों को ही अपना बेटा मानने लगीं। उनका सबसे बड़ा बेटा (बरगद का पेड़) ६५ साल का है।
100 प्रभावशाली हस्तियों में शामिल
थिमाक्का को दुनिया तब ज्यादा जान पाई जब बीबीसी ने 2016 में उन्हें दुनिया की 100 सबसे प्रभावशाली शख्सीयतों में शुमार किया। 1996 में उन्हें राष्ट्रीय नागरिक सम्मान दिया गया। 2015 में उन पर एक किताब भी छपी। सालुमारदा का कन्नड़ में अर्थ होता है वृक्षों की कतार।