संगीतकार मास्टर गुलाम हैदर ने जब शमशाद की आवाज को सुना तब महज 13 वर्ष की उम्र में एक पंजाबी गीत ‘हथ जोड़यिा पंखिया दे’ गवाया। शमशाद बेगम की आवाज में रचा बस यह गीत काफी लोकप्रिय हुआ।
इसके बाद रिकार्ड कंपनी ने उनसे कई गीत गवाए। उस दौर में उनको प्रति गीत साढ़े 12 रुपए मिला करते थे। इसी दौरान पंजाबी फिल्मों के जाने माने फिल्मकार दिलसुख पंचोली ने उनकी प्रतिभा को पहचाना और उन्हें अपनी फिल्म यमला जट में पाश्र्वगायन का मौका दिया। इस फिल्म के लिए उन्होंने आठ गीत गाए। रोचक तथ्य है कि इसी फिल्म से सदी के खलनायक प्राण ने अपनी अभिनय यात्रा शुरू की थी।
वर्ष 1941 में प्रदर्शित फिल्म खजांची से शमशाद बेगम ने हिंदी फिल्मों में भी अपना कदम रख दिया। इस फिल्म में उन्होंने अपना पहला गीत ‘सावन के नजारे हैं’ गाया। इसी फिल्म में पाश्र्वगायक मुकेश के साथ उनका गाया गीत ‘मोती चुगने गई रे हंसनी मनसरोवर तीर’ बहुत लोकप्रिय हुआ। खजांची में उनके गा, अन्य लोकप्रिय गीतों में ‘लौट गई पापन अंधियारी’ और ‘दीवाली फिर आई सजनी’ श्रोताओं के बीच पसंद की गई।
वर्ष 1950 में प्रदर्शित फिल्म बाबुल में नौशाद के संगीत निर्देशन में शमशाद बेगम की आवाज में गाया गीत ‘छोड़ बाबुल का घर मोहे पी के नगर आज जाना पड़ा’ आज भी जब विदाई के समय बजता है तो सुनने वालो की आंखें नम हो जाती हैं।
उन्होंने एक बार इससे जुड़ा संस्मरण सुनाया था ‘मेरी बेटी की शादी हो रही थी। सारा वातावरण गमगीन था। अचानक ही यह गीत बजाया गया। मेरी बेटी रोते रोते हंस दी और उसने कहा अरे ये तो मेरी अम्मी का गीत है।’ इसी फिल्म में उन्होंने लता मंगेश्कर के साथ ‘किसी के दिल में रहना था’ गाया था।
वर्ष 1951 में प्रदर्शित फिल्म दीदार में शमशाद बेगम ने नौशाद के संगीत निर्देशन में ‘चमन में रहके वीराना होता है’ जैसे सुपरहिट गीत गाए। वर्ष 1952 में प्रदर्शित बहार में जहां शमशाद ने ‘दुनिया का मजा ले लो दुनिया तुम्हारी है’ जैसा फडक़ता हुआ गीत गाया वही इसी फिल्म में उनका गाया गीत ‘सइंया दिल में आना रे’ बेहद लोकप्रिय हुआ था। उन्होंने जहां मदर इंडिया में विदाई के अवसर पर ‘पी के घर आज प्यारी दुल्हनिया चली’ जैसा भावविभोर करने वाला गीत गाया।
आज के दौर में जो गीत धूम धड़ाके वाले कहे जाते हैं, इन गीतों का आगाज करने का श्रेय शमशाद बेगम को जाता है। उन्होंने राजकपूर की फिल्म आवारा में ‘एक दो तीन आजा मौसम है रंगीन’ जैसा फडक़ता गाना गाया। गीत गाने में उन्हें कोई कठिनाई नहीं हुई। उनके गाए उल्लेखनीय गीतों में ‘जब उसने गेसू बिखराये बादल आया झूम के, न आखों में आंसू ना होठों पे हाय, लेके पहला पहला प्यार, रेशमी सलवार कुर्ता जाली का, तेरी महफिल में किस्मत आजमा के हमभी देखेगे, कजरा मोहब्बत वाला आंखों में ऐसा डाला, होली आई रे कन्हाई, बूझ मेरा क्या नाम रे, कही पे निगाहें कही पे निशाना, कभी आर कभी पार, आना मेरी जान संडे के संडे’ जैसे कई सुपरहिट नगमे शामिल हैं।
उन्होंने अपने दौर के सभी दिग्गज संगीतकार नौशाद, गुलाम हैदर, ओपी नैय्यर, कल्याणजी-आनंद जी, सी. रामचंद्र के साथ काम किया। वर्ष 2009 में शमशाद बेगम को उनके उल्लेखनीय योगदान को देखते हुए पद्म भूषण पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वह सहगल की बड़ी प्रशंसक थी और उन्होंने उनकी फिल्म देवदास 14 बार देखी थी। अपनी खनकती आवाज से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करने वाली शमशाद बेगम 23 अप्रेल, 2013 को इस दुनिया को अलविदा कह गईं।