उन्होंने पीएम मोदी का ध्यान इस बात की ओर खींचा है कि वह पटना विश्वविद्यालय की जर्जर स्थिति और बिहार में उच्च शिक्षा की बदहाली को देखते हुए कोई ठोस कदम उठाएं और सुनिश्चित करें कि राज्यों के शिक्षकों को नए वेतनमान के अनुरूप वेतन मिले। उन्होंने कहा कि केन्द्र द्वारा मात्र पचास प्रतिशत आर्थिक मदद देने से राज्यों के लिए नया वेतनमान लागू करना मुश्किल हो जाएगा।
पत्र में कुमार ने कहा है कि देश के विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में अस्थायी तौर पर करीब तीन लाख शिक्षक कार्यरत हैं, लेकिन उनके लिए कोई सेवा-शर्तें नहीं हैैं तथा उन्हें दिहाड़ी मजदूरों की तरह काम करना पड़ रहा है। इसके अलावा विश्वविद्यालयों और कॉलेजों में शिक्षकों के आधे पद खाली हैं। बिहार के कई शिक्षण संस्थानों में शिक्षक ही नहीं हैं। ऐसी स्थिति में केन्द्र सरकार ने राज्यों को दी जाने वाली आर्थिक सहायता अस्सी प्रतिशत से घटाकर पचास प्रतिशत कर दी है, जबकि 1973 से लेकर 2006 तक यानी तीसरे से लेकर छठे वेतनमान तक केन्द्रीय सहायता अस्सी प्रतिशत से कम नहीं की गई थी।
उन्होंने पटना विश्वविद्यालय को केन्द्रीय विश्वविद्यालय बनाए जाने की मांग की,जिसे एशिया का सातवां गौरवशाली विश्वविद्यालय माना जाता है। इस बीच, केन्द्रीय विश्वविद्यालय शिक्षक महासंघ (फेडफुटा) की अध्यक्ष नंदिता नारायण दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) शिक्षक संघ के अध्यक्ष राजीव रे एवं फेडफुटा के पूर्व अध्यक्ष आदित्य नारायण मिश्रा ने भी सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों में शिक्षकों के साथ न्याय नहीं किए जाने का आरोप लगाया है और चौहान समिति की रिपोर्ट को सार्वजनिक किए जाने की मांग की है।