पांच बार की असफलता के बाद भी नहीं मानी हार, पुलिस कांस्टेबल ने पास की यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा
संघर्ष भरी जिंदगी
जब उम्मुल 8वीं कक्षा में पढ़ना चाहती थी तो घरवालों ने पढ़ाने से इन्कार कर दिया। क्योंकि समाज और परिवेश का हवाला देकर घरवाले यही कहते थे की 8वीं तक पढ़ना भी बहुत है। घरवालों का कहना था की तुम्हारे पैर ख़राब है तो सिलाई का विकल्प ठीक रहेगा। उम्मुल के साथ कुछ ऐसा भी था कि उनकी खुद की रियल माँ नहीं थी और सौतेली माँ की हमदर्दी उनके साथ नहीं थी। उम्मुल ने बताया कि घरवालों के द्वारा साफ़ इन्कार किए जाने और राजस्थान भेजे जाने की बात पर वह खुद घर से दूर किराये का कमरा लेकर रहने लगी। यहाँ उम्मुल सुबह स्कूल जाती और फिर स्कूल से आकर बच्चों को पढ़ाती। 10वीं से ही एक चेरिटेबल ट्रस्ट की तरफ से स्कालरशिप मिल गई। 12वीं तक की पढ़ाई छात्रवृति के जरिए पूरी हो गई। जब 12वीं कक्षा में टॉप किया तो हिम्मत मिल गई और दिल्ली यूनिवर्सिटी में आवेदन किया और स्नातक की पढाई पूरी की। लेकिन आगे की पढ़ाई के लिए प्रैक्टिकल सब्जेक्ट सबसे बड़ी बाधा बन गया, क्योंकि प्रैक्टिकल के लिए शाम को रुकना होता है और अगर शाम को रुकना हुआ तो बच्चों को पढ़ाना बंद करना पड़ता। स्नातकोत्तर के लिए JNU में अलग विषय के साथ आवेदन किया और प्रवेश के साथ पढ़ाई शुरू कर दी। JNU में आने के बाद मुझे पढ़ाई को लेकर सभी सहूलियतें (सुविधाएँ) मिल गई जो पढ़ाई में बाधा बन रही थी।
पहले जज फिर आईपीएस और उसके बाद हुआ आईएएस बनने का सपना पूरा, जानें इनकी जुबानी
आईएएस बनना ही एकमात्र बचपन का सपना
बचपन में सुने हुए बड़े दिग्गजों के नाम पर खुद को भी उन्ही की तरह बनाने को लेकर एक जूनून भी बन गया। लेकिन पारिवारिक परिस्थिति के सामने थोड़ा कठिन सा हो गया। JNU आने के बाद खुद को रिलैक्स महसूस किया। 2015 में उम्मुल एक साल के लिए जापान रहकर फिर से आई तो लगा की यह सही समय है। उम्मुल ने पीएचडी में दाखिला लेने के साथ ही जनवरी 2016 में आईएएस के लिए तैयारी शुरू की और अपने पहले ही प्रयास में सिविल सर्विस की परीक्षा 420वीं रैंक पास की।