scriptकॉरपोरेट्स में अच्छे तकनीकी प्रोफेशनल्स भी क्यों विफल रह जाते हैं? | Why best professionals can not perform good in corporates | Patrika News

कॉरपोरेट्स में अच्छे तकनीकी प्रोफेशनल्स भी क्यों विफल रह जाते हैं?

Published: Dec 23, 2015 12:29:00 pm

एक कम्प्यूटर इंजीनियर छात्र विशाल अपनी कम्यूनिकेशन स्किल को बेहतर बनाने के लिए हर हफ्ते दस घंटे मेहनत करता है

job cut

job cut

एक कम्प्यूटर इंजीनियर छात्र विशाल अपनी कम्यूनिकेशन स्किल को बेहतर बनाने के लिए हर हफ्ते दस घंटे मेहनत करता है। वह राजनीति, बिजनेस, अंतरराष्ट्रीय अपॉच्र्युनिटीज जैसे विषयों की जानकारी भी बढ़ाने पर पूरी मेहनत करता है। यह इसलिए, क्योंकि कंपनियां तकनीकी कौशल के अलावा और भी खूबियां चाहती हैं।

हाल में सर्वाधिक प्रगतिशील कंपनी के सीइओ ने कहा कि भारतीयों की उन्नति के काफी अवसर हैं और वे अपने तकनीकी ज्ञान का भारत और दुनिया के अन्य देशों के लिए उपयोग कर सकते हैं। इससे फर्क नहीं पड़ता कि आप कम्प्यूटर के क्षेत्र से हैं या नहीं… फर्क इससे पड़ता है कि आप कितना रचनात्मक सोचते हैं और जनसाधारण की समस्याओं का समाधान करने में कितने समर्थ हैं।

कॉरपोरेशंस के खुद को उन्नतिशील और मुनाफे का बनाने के मानदंड पूरी तरह से बदल चुके हैं और इसीलिए अपने कर्मचारियों से भी उनकी अपेक्षाएं बदली हंै। जब तक भारत के युवा इन बदलती स्थितियों के साथ चलने को तैयार नहीं हैं, कॉरपोरेट सफलता के लिए उनका भविष्य बिल्कुल सीमित है।

एक प्रतिष्ठित कॉलेज का कम्प्यूटर इंजीनियर छात्र विशाल अपनी कम्यूनिकेशन स्किल को बेहतर बनाने के लिए हर हफ्ते दस घंटे मेहनत करता है। वह राजनीति, बिजनेस, अंतरराष्ट्रीय अपॉच्र्युनिटीज जैसे विषयों की जानकारी भी बढ़ाने पर पूरी मेहनत करता है। यह इसलिए, क्योंकि कंपनियां तकनीकी कौशल के अलावा और भी खूबियां चाहती हैं।

मसलन, लीडरशिप, टीम वर्क और प्रबंधन का हुनर ताकि उन्हें उनसे पूरा फायदा मिल सके। कंपनियां अपने कर्मचारियों को ‘स्वतंत्र लीडर्स’ बनने के लिए प्रशिक्षित करती हैं, ताकि वे कुछ इस तरह काम करें, मानो अपना स्वयं का बिजनेस चला रहे हों। उन्हें ऐसे प्रत्याशी चाहिए, जिनमें निजी और प्रोफेशनल फैसले लेने की योग्यता हो।

लेकिन हम देखते हैं कि ज्यादातर विद्यार्थी इस गैप को भर नहीं पाते हैं और स्थितियों की मांग के हिसाब से नहीं चल पाते हैं। नतीजतन वे अपने कॅरियर में शीर्ष पर नहीं पहुंच पाते हैं। विद्यार्थियों को चाहिए कि कम उम्र से ही वे अपना चहुंमुखी विकास करने पर ध्यान केन्द्रित करें। कोरा किताबी या सैद्धांतिक ज्ञान पाने तक सीमित रहने की बजाय, जो सीखा है, उसे व्यवहार में लाने का हुनर भी सीखें।

शिक्षा की व्यावहारिक उपयोगिता से युवाओं में काम के प्रति रुचि बनेगी, वे बेहतर काम कर सकेंगे, ज्यादा रचनात्मक और आत्मविश्वासी बनेंगे। इसके चलते ज्यादा से ज्यादा विद्याथियों को अंतरराष्ट्रीय स्तर का लीडर बनने में मदद मिलेगी।
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

आनंद मुंशी, मोटिवेशनल स्पीकर और मैनेजमेंट गुरु


loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो