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मार्कंडेय आश्रम में चर्तुमास पर है 102 वर्षीय संत

locationमंडलाPublished: Aug 02, 2021 12:13:32 pm

Submitted by:

Mangal Singh Thakur

पूरे जीवन काल में नहीं किया नशे का सेवन, सिर्फ गाय का दूध पिया

मार्कंडेय आश्रम में चर्तुमास पर है 102 वर्षीय संत

मार्कंडेय आश्रम में चर्तुमास पर है 102 वर्षीय संत

मंडला. जिला मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित ग्राम मधुपुरी मार्केन्डेय आश्रम में एक संत साधनारत हैं। चर्तुमास में रूके संत श्रीकृष्ण दास की उम्र लगभग 102 वर्ष है। 102 वर्ष की उम्र और मां नर्मदा की पैदल परिक्रमा करने की बात सुनकर हर कोई अचांभीत हो जाता है। वर्तमान स्थिति में 50 की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते व्यक्ति इतना शिथिल हो जाता है कि वह दवाईयों और दूसरों पर आश्रित होकर आगे का जीवन गुजार पाता है। भौतिक संसाधनों की आदत ने लोगों को दूसरों पर या अन्य संसाधनों पर निर्भर बना दिया है। ऐसे में इस 102 वर्ष की उम्र पर पैदल परिक्रमा करने वाले संत श्रीकृष्ण दास मां नर्मदा की परिक्रमा पर तीन माह पहले वैसाख माह से शुरू की थी। संत रतलाम जिला के आलोट विक्रमगढ़ निवासी है। पैदल परिक्रमा पर अकेले निकल पड़े है। इन्हें तीन माह से अधिक समय हो गया है। अब ये अपना चर्तुमास मार्केन्डेय आश्रम में गुजारेंगे। इसके बाद यहां से दशहरा पर्व के बाद परिक्रमा को आगे बढ़ाते हुए निकलेंगे। जिसके बाद उनकी पैदल नर्मदा यात्रा यहां ओमकारेश्वर जाएगी। महात्मा श्रीकृष्ण ने बताया कि पहले भी वह पैदल परिक्रमा कर चुकें है। उन्होंने पहले बद्रीनाथ, केदारनाथ, गंगोत्री और जामुन की यात्रा पैदल ही की है।


उन्होंने बताया कि इस उम्र में भी वह पैदल अन्य व्यक्तियों की तरह चल फिर सकते है, किसी भी कार्य को करने में उनके हाथ कंपकपाते नहीं है। उनका कहना है कि हर व्यक्ति को अपने जीवन में स्वस्थ रहने के लिए कुछ नियम बनाना जरूरी है। मेरी सेहत का राज भी वहीं है। में अपने जीवन में कुछ नियम बनाए है। उन्होंने कहा कि वे अधिक से अधिक पैदल चलना, भोजन करने के लिए सिर्फ अपने ही पात्र का उपयोग करना, अपने ही विस्तर पर सोना, एक समय भोजन करना, नित्य क्रिया के बाद अपने आपका शुद्धिकरण करना, मदिरा, तंबाकू समेत अन्य नशे का सेवन पूरे जीवन काल में ना करना समेत अन्य नियम की बदौलत में आज तक पूरी तरह स्वस्थ हूं। इसके साथ ही गाय के दूध का सेवन किया है।


महात्मा श्रीकृष्ण दास ने बताया कि मां नर्मदा के किनारे स्थित मार्केन्डेय आश्रम अद्भूत है। यहां शोरगुल से दूर एकांत है। यहां साधना, भजन र्कीतन करने में आनंद आता है। हमारे चर्तुमास के दौरान हमने यहां अखंड धुनी और ज्योत प्रज्जवलित की है। प्रतिमाह की पूर्णिमा और अमावस्या को यहां कन्या भोजन करा रहे है। नर्मदा परिक्रमा से पूर्व इन्होंने अधिकांश तीर्थो की यात्रा भी कर चुके है। नर्मदा परिक्रमा को लेकर उनका कहना है कि यदि वास्तव में हम मां रेवा का सम्मान करते हैं तो वह तभी पूर्ण मानी जाएगी। परिक्रमा के दौरान तन की शुद्धि के साथ हमेशा मन शुद्ध रहना चाहिए।

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