मंडलाPublished: Oct 08, 2020 09:48:26 pm
Mangal Singh Thakur
कागजों पर चल रही योजना, पोषण से वंचित हो रहे नौनिहाल
Emphasis on eliminating malnutrition
मंडला. कुपोषण दूर करने के लिए महिला बाल विकास विभाग द्वारा चलाई जा रही पोषण आहार वितरण योजना महज कागजों में सिमटती नजर आ रही है। तमाम कवायदों के बाद भी जिले में हजारों बच्चे कुपोषण का शिकार हो रहे हैं। शासकीय अधिकारी महज कागजी खानापूर्ति में उलझे हुए हैं। कुपोषण से निजात पाने के लिए प्रतिमाह हजारों क्विंटल पोषण आहार बांटा जा रहा है। इसके बावजूद नतीजे सिफर साबित हो रहे हैं। जिले भर में पोषण आहार वितरण में बरती जा रही लापरवाही और अनियमितता के कारण कुपोषित बच्चों को इसका लाभ नहीं मिल पा रहा है। ग्रामीण अंचलों में न गर्भवती महिलाएं बल्कि बच्चे भी विभागीय लापरवाही का शिकार बन रहे हैं। यही कारण है कि जिले में कुपोषित बच्चों की संख्या 12 हजार 556 तक जा पहुंची है।
भयावह हैं आंकड़े
अगस्त 2020 में जारी आंकड़ों के अनुसार जिले में 0 से 5 साल के बच्चों की जांच और उनके कुपोषण की बात की जाए तो जिले में 0 से 5 साल तक के कुल 86 हजार 66 बच्चे हैं। स्क्रीनिंग के दौरान पाया गया है कि जिले में कुल 12 हजार 556 बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। इनमें से 1 हजार 73 बच्चे अति कुपोषण की श्रेणी में शामिल हैं। इस तरह जिले के बच्चों में 15 प्रतिशत बच्चे कुपोषण का शिकार हैं। जबकि 1.2 प्रतिशत बच्चे अति कुपोषित हैं। जाहिर है कि जिले में सरकारों की योजनाओं का जमीनी स्तर पर कितना असर हुआ है। सरकार के जागरूकता अभियान मात्र कागजों में सिमट कर रह गए हैं।
केस-01
मंडला के एनआरसी में एक साल की बच्ची कुपोषण के सबसे खतरनाक स्तर बैगी पेंट पर पहुंच गई है। 13 माह की इस बच्ची का वजन सिर्फ 4 किलो है जबकि इसका वजन लगभग 12 किलो होना चाहिए। बताया जा रहा है कि कुपोषण से पीडि़त यह बच्ची अतिकुपोषण के कारण दिमाग से सम्बंधित बीमारी का भी शिकार हो गई।
केस-02
17 महीने के बच्चे का वजन 4 किलो है जबकि इसका वजन इसकी उम्र के लिहाज से 14 किलोग्राम होना था। बताया जारहा है कि यह बच्चा जन्म के समय सामान्य से ज्यादा वजन का था लेकिन मैदानी अमले द्वारा माता को सही जानकारी नहीं दिए जाने के कारण बच्चा धीरे धीरे कुपोषण का शिकार हो गया और यह हालत हो गई कि अब वह कुपोषण के सबसे खतरनाक स्तर पर पहुंच गया है।