जिला क्षय रोग अधिकारी जेपी चीचाम का कहना है कि ने बताया कि मरीजों की संख्या बढऩे का कारण अपर्याप्त और पौष्टिकता से कम भोजन, स्वच्छता का अभाव, कम जगह में बहुत से लोगों का रहना और टीबी के मरीज के संपर्क में रहना व उसकी चीजों को इस्तेमाल करना है। इसके अलावा टीबी के मरीजों के कहीं भी थूक देने से, रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने और बीच में ही दवाओं को छोड़ देना भी कारण है। समान्यता 6 माह के उपचार से टीबी को हराया जा सकता है। छह माह में टीबी खत्म नहीं होती तो फिर अलग से ट्रीटमेंट दिया जाता है। इस तरह एमडीआर के 6 केस हैं।
टीबी जन आंदोजन के तहत जिले एवं ब्लॉक में मीडिया उन्मुखीकरण कार्यशाला, फार्मासिस्ट उन्मुखीकरण कार्यशाला, निजी क्षेत्र के चिकित्सकों के लिए कार्यशाला, धार्मिक गुरूओं हेतु कार्यशाला कॉलेज एवं महाविद्यालयों में कार्यक्रम संबंधी कार्यशाला, महिला दिवस पर आशा, एएनएम एवं आगनवाड़ी कार्यकर्ताओं के लिए कार्यशाला, कम्युनिटि मीटिंग, धार्मिक स्थलों पर माईकिंग एवं आईईसी, सीएचओ ऑरिएण्टेशन, बाल क्षय रोग खोज अभियान, रैली एवं नुक्कड़ नाटक आदि जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किए जाएंग।
टीबी यानी क्षय रोग
प्रतिरोधक क्षमता कमजोर पडऩे पर कोई व्यक्ति इसकी चपेट में आ सकता है।
बच्चों में टीबी की रोकथाम के लिए उनके पैदा होने के बाद अतिशीघ्र बीसीजी का टीका लगवाना आवश्यक है।
टीबी का एक मरीज 10-15 लोगों को इसका बैक्टेरिया बांट सकता है।
यह बीमारी टीबी मरीज के साथ बैठने से नहीं होती बल्कि उसके खांसी, छींक, खून व बलगम के संक्रमण से होती है।
मुंह पर रूमाल रख कर, बलगम को राख या मिट्टी से डिस्पोज करके व सही समय पर टीबी की जांच व इलाज से हम इसे मात दे सकते हैं।
जिले में टीबी काफी हद तक कंट्रोल में है। टीबी की मरीजों को उचित उपचार मिले इसके लिए निजी चिकित्सालयों में भी नजर रखी जा रही है। इसके लिए एनजीओ की भी मदद ली जा रही है। वर्तमान में 554 मरीज हैं जिनका उपचार चल रहा है।
डॉ जेपी चीचाम, जिला क्षय अधिकारी