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जान पर खेलकर करते हैं पूर्वजों का अस्थि विसर्जन

locationमंडलाPublished: Aug 24, 2019 04:42:30 pm

Submitted by:

Mangal Singh Thakur

बिना सुरक्षा के खतरों से भरी उफनती नदी करा रहे पार

Ancestors perform bone immersion by playing on their lives

Ancestors perform bone immersion by playing on their lives

मंडला. जिला मुख्यालय से सटे उपनगरीय क्षेत्र महाराजपुर स्थित संगम घाट पर हर समय किसी हृदय विदारक हादसे की आशंका बनी हुई है। बारिश के कारण नर्मदा उफान पर है और इस संगम घाट से नाव में सवार होकर लोग नर्मदा के बीच उस पवित्र स्थल पर पहुंचते हैं जहां त्रिवेणी का संगम है। यही अपने मृत परिजनों का अस्थि विसर्जन किया जाता है। गौरतलब है कि इस पवित्र संगम घाट पर सिर्फ मंडला जिले के सभी क्षेत्रों के लोग ही नहीं, बल्कि आसपास के जिले जैसे सिवनी, बालाघाट, छिंदवाड़ा आदि क्षेत्र से दर्जनों लोग प्रतिदिन पहुंचते हैं ताकि नर्मदा में अस्थि विसर्जन के बाद तर्पण कर्मकांड आदि कर सकें। जिन नावों से लोग नर्मदा के बीचों बीच संगम स्थल पर पहुंच रहे हैं, उन नावों में न ही सुरक्षा के कोई उपकरण मौजूद हैं और न ही आकस्मिक परिस्थितियों से निपटने के लिए लाइफ जैकेट आदि रखे जाते हैं। इतना ही नहीं, अधिकतर नावों में पानी भी रिसता रहता है, इसके बावजूद लोग मृत परिजन का अस्थि विसर्जन करने के लिए अपनी जान को जोखिम में डाल रहे हैं।
नहीं लिया सबक
20 जून 2019 को जिला मुख्यालय से 40 किमी दूर स्थित नारायणगंज ब्लॉक, टिकरिया थानांतर्गत मेहगांव के समीप सुबह लगभग 7 बजे दर्दनाक हादसा हुआ और समीपी गांव की बारात से लौटते ग्रामीण जिस नाव में बैठकर नर्मदा नदी पार कर रहे थे, वह नाव बीच नदी में पलट गई और एक बच्चे सहित चार महिलाओं की मौके पर डूबने से मौत हो गई थी। हादसे का कारण बताया गया था कि नाव के नीचे तल में छेद होने के कारण पानी धीरे-धीरे रिस कर नाव में भर गया जिससे अनियंत्रित होकर नाव पलट गई। मौके पर उपस्थित प्रशासनिक अमले के एसडीएम तहसीलदार आदि को निर्देशित किया था कि आगे से जितने भी घाट नीलामी की जाती है व इनका संचालन आमजन के आवागमन के लिए किया जाता है। इसमें प्रशिक्षित संचालकों को रखा जाए, लाइफ जैकेट अनिवार्य रूप से उपलब्ध हो, नाव में ओवर लोडिंग ना किया जाए, आमजन के हित में इंश्योरेंस आदि की सुविधा भी हो। लेकिन उस दर्दनाक हादसे और उन सभी निर्देशों को अधिकारियों ने भुला दिया है।
खतरा है संगम घाट में
उपनगरीय क्षेत्र महाराजपुर से ही अधिकांश नावों का संचालन किया जा रहा है। बारिश और नर्मदा के उफान पर होने के बावजूद लोग इसलिए नाव के जरिए नदी में उतर रहे हैं क्योंकि उन्हें अपने मृत परिजनों का अस्थि विसर्जन करना पड़ता है। घाट पर सुरक्षा व्यवस्था के कोई भी इंतजाम नहीं है। न ही किसी आपदा के दौरान तुरंत रेस्क्यू किया जा सकता है। यहां से संचालित होने वाली किसी नाव में सुरक्षा के कोई उपकरण नहीं हैं।
जाते हैं पुरवा घाट
जितने भी लोग अपने परिजनों के अस्थि विसर्जन के लिए नर्मदा के बीच संगम स्थल तक पहुंचते हैं। उनमें से अधिकांश नदी के दूसरी ओर पुरवा घाट स्थित कृष्ण मंदिर भी जरुर जाते हैं ताकि वहां आवश्यक पूजन अनुष्ठान आदि कर सकें। घाट की सीढिय़ां अत्यधिक गहरी और काई एवं फिसलन भरी है। इस घाट पर भी प्रशासन के द्वारा ऐसे कोई भी इंतजाम नहीं किए गए हैं कि किसी प्रकार की आपदा होने पर तत्काल रेस्क्यू किया जा सके।
कीचड़ से भरा किला घाट
संगम स्थल से कुछ लोग किला घाट की ओर भी आते हैं। यहां घाट पर दूर तक कीचड़ भरा हुआ है। पानी के अंदर भी दलदल की तरह मिट्टी धंसती है। अंजान लोगों के लिए इस घाट पर जाना और उतरना खतरे से खाली नहीं लेकिन यहां किसी भी तरह का न ही कोई सूचना बोर्ड लगा हुआ है और न ही यहां किसी तरह की सुरक्षा व्यवस्था है। बस्ती से दूर होने के कारण इस घाट पर होने वाली किसी भी तरह की अनहोनी की खबर भी देर तक लोगों को नहीं मिलेगी।

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