रोते बिलखते बेटियों ने अपने पिता का किया अंतिम संस्कार
समाज के लोगों की मौजूदगी में देवदरा मुक्तिधाम में हुआ अंतिम संस्कार

मंडला. बेटा न होने की वजह से बेटियों ने बेटे का फर्ज निभाया और पिता का अंतिम संस्कार कर मुखाग्नि दी। वक्त के साथ समाज की सोच भी बदल रही है। परंपराओं से हटकर दो बेटियों बेटी ने अपने पिता को मुखाग्नि देकर उनका अंतिम संस्कार किया। मृतक का कोई बेटा नहीं था बल्कि दो बेटियां थीं। जानकारी के अनुसार राजीव कॉलोनी निवासी 42 वर्षीय अजय सिंह ठाकुर का सोमवार की सुबह निधन हो गया। अजय पश्चिम सामान्य वन मंडल मंडला में वन रक्षक के पद पर पदस्थ थे। वन विद्यालय झाबुआ में 6 माह वन रक्षक प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे थे 3 माह तक ट्रेनिंग के बाद जुलाई माह में तबियत खराब हो गई। जिनका उपचार जिला चिकित्सालय, निजी हॉस्पिटल के साथ जबलपुर मेडिकल व अन्य चिकित्सकों के पास भी कराया गया। लेकिन राहत नहीं मिली और सोमवार की सुबह ७ बजे उनका निधन हो गया। जिनका अंतिम संस्कार दोपहर तीन बजे देवदरा मुक्ति धाम में किया गया। मृतक के परिवार में वृद्ध माता-पिता, पत्नी और 2 बेटियां हैं। बेटी 15 वर्षीय कशिश लोधी और 10 वर्षीय अमृता लोधी ने रोते बिलखते मुखाग्नि दी। शमशान पर उस समय लोगों के आंसू छलक पड़े, जब एक बेटी ने श्मशान में रूढ़ीवादी परंपराओं के बंधन को तोड़तते हुए अपने पिता का अंतिम संस्कार किया। उसने बेटा बनकर हर फर्ज को पूरा किया, जिसकी हर किसी ने तारीफ की। अंतिम संस्कार में बेटियां रोती रही और पापा को याद करती रहीं। लेकिन बेटे की कमी को हर तरह से पूरा किया। दरअसल, ज्यादातर ऐसी बातें होती हैं कि बेटा कुल का दीपक होता हैं, बेटे के बिना माता-पिता को मुखाग्नि कौन देगा। लेकिन अब यह बातें अब बीते जमाने की हो गई हैं। दोनो बेटियों ने अंतिम संस्कार की हर वह रस्म निभाई, जिनकी कल्पना कभी एक पुत्र से की जाती थी। रिश्तेदारों का का कहना है कि उसके पिता ने दोनो बेटियों को बेटों की तरह पाला है, वो दोनों बहनें ही हैं, उनका कोई भाई नहीं है, उसके पिता ने कभी दोनों बहनों में किसी प्रकार का भेद-भाव नहीं किया।
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