मंडलाPublished: Oct 14, 2019 05:32:37 pm
Mangal Singh Thakur
खाली पदों से बाधित हो रहा दिव्यांगों का उपचार
Divyang is not treated, only getting assurance
मंडला. राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के अंतर्गत ऐसे 14 मुख्य तरह की बीमारियों को शामिल किया गया हैं जिनसे पीडि़त बच्चे का उपचार किया जा सके। इनमें अधिकांश बीमारियां किसी न किसी दिव्यांगता से संबंधित है जो आज भी ग्रामीण इलाके और पिछड़े क्षेत्रों के बच्चों में अधिकता से पाई जा रही है। आदिवासी बहुल्य अंचल के दिव्यांग बच्चों को की बीमारी से मुक्ति दिलाई जा सके, इसके लिए जिला अस्पताल में शीघ्र पहचान एवं हस्तक्षेप केंद्र की स्थापना तो कर दी गई लेकिन यहां बच्चों के उपचार के लिए जो 12 पद स्वीकृत किए गए हैं उनमें से 10 पद अभी तक खाली हैं। अंदाजा लगाया जा सकता है कि इस केंद्र से दिव्यांग बच्चों को किस तरह से उपचार दिया जा रहा है। पहले यहां 13 पद स्वीकृत थे, एक पद को समाप्त कर दिया गया है।
हर सप्ताह लौट रहे दर्जनों दिव्यांग
शीघ्र पहचान एवं हस्तक्षेप केंद्र में प्रति सप्ताह उपचार के लिए दर्जनों बच्चों को लाया जा रहा है लेकिन यहां पर्याप्त भर्तियां एवं अधिकारियों की उपस्थिति न होने के कारण ज्यादातर बच्चों को बिना उपचार के ही उनके माता पिता वापस ले जाने को विवश हैं। केंद्र में मूक, बधिर, अंधत्व, मानसिक रोग, दंत रोग, शारीरिक व्याधि आदि से संबंधित बीमारियों का उपचार किया जाना चाहिए। लेकिन फिलहाल यहां मात्र एक ही बीमारी का इलाज हो रहा है, वह है बधिरता। शेष बीमारियों के लिए यहां अधिकारियों की भर्ती अब तक नहीं की जा सकी है।
सिर्फ बधिरता का इलाज
जिला शीघ्र पहचान एवं हस्तक्षेप केंद्र में उपलब्ध ऑडियोलॉजिस्ट के कारण जन्म से बधिर 15 बच्चों की अब तक बधिरता समाप्त हो चुकी है। यही कारण है कि वे अब बोलने में भी सक्षम हो गए हैं। चूंकि जिन बच्चों में बधिरता होती है वे किसी आवाज को नहीं सुन पाने के कारण उस पर प्रतिक्रिया करने में भी असमर्थ होते हैं यही कारण है कि उनमें बोलने की क्षमता का भी विकास नहीं हो पाता। अंदाजा लगाया जा सकता है कि सिर्फ ऑडियोलॉजिस्ट के होने से महज चार वर्षों में लगभग 98 लाख रुपए का लाभ जिले के 15 बधित बच्चों को पहुंचाया जा चुका है। उक्त राशि में बच्चे की नि:शुल्क सर्जरी, उपचार, दवाइयां, भोजन-आवास आदि सुविधाएं शामिल हैं।