जान के लिए सिर्फ चाइनीज मांजा ही खतरनाक नहीं है, विभिन्न जश्न और आयोजनों के दौरान तोरण के लिए इस्तेमाल होने वाली प्लास्टिक की रस्सियां भी जान जोखिम में डाल सकती हैं। इन रस्सियों के सहारे पताका और अन्य प्रतीक चिह्न बांधे जाते हैं, लेकिन आयोजन के बाद इसे हटाया नहीं जाता जो बाद में सड़क के बीच झूलते रहते हैं। चौक-चौराहों पर ये रस्सियां भारी वाहनों में फंसकर झूलती जाती हैं। ये झूलती रस्सियां चायनीज मांजे से कम खतरनाक नहीं होती। दोपहिया वाहन चालक इसमें भी फंसकर चोटिल हो सकते हैं। वहीं बिजली के तारों में फंसकर किसी घटना के कारण बन सकते हैं। शहर के ईएलसी चौक, फव्वारा चौक से लेकर इंदिरा तिराहा और सत्कार तिराहा के साथ ही गोलगंज पहुंच मार्गों पर विशेष आयोजनों के बाद ऐसे हालात आसानी से देखने को मिलते हैं। आयोजन के बाद इन्हें सुरक्षित तरीके से निकालकर आमजन व पक्षियों की जान को सुरक्षित किया जा सके। प्लास्टिक की रस्सियां भी चायनीज मांजे की तरह ही खतरनाक हैं। नगर निगम को चाहिए कि किसी भी तरह के आयोजन के बाद मुख्य चौक और चौराहों पर साफ-सफाई के साथ प्लॉस्टिक की इन रस्सियों को भी हटाया जाए। शहर के भीतर कई स्थानों पर इस तरह की रस्सियां लटकती हुई देखी जा सकती हैं।