मंडलाPublished: Mar 07, 2022 12:12:32 pm
Mangal Singh Thakur
स्वाद चखने के लिए उमड़ती है भीड़
मंडला. शहर के उदय चौक से बुधवारी जाते समय सराफा बाजार में फुन्दी हलवाई की दुकान में रबड़ी का स्वाद चखने के लिए न केवल मंडला बल्कि आसपास के जिलों से भी लोग पहुंचते हैं। जिस फुन्दी हलवाई नाम से अब यह दुकान संचालित हो रही है वे फुन्दी लाल तो इस दुनिया में नहीं है लेकिन वर्तमान में उनके बेटे जीवन लाल बर्मन अपने पिता से मिली इस मीठी विरासत को ठीक उसी तरह आगे बढ़ा रहे हैं जैसे की उनके पिता छोड़ गए थे। ५७ वर्षीय जीवन लाल ने बताया कि 1981 में उनके पिता फुन्दी लाल का निधन हो गया था। फुन्दी लाल के पहले फुन्दी लाल के भी पिता लटोरा बर्मन भी रबड़ी बनाते थे, सराफा में एक छोटी सी दुकान को किराये में लेकर दादा ने रबड़ी का व्यवसाय शुरू किया था, इसके बाद फुन्दी लाल ने इस व्यवसाय को न केवल आगे बढ़ाया बल्कि इनकी रबड़ी के जिले और जिले से बाहर तक चर्चे होने लगे। फुन्दी लाल के निधन के बाद अब तीसरी पीढ़ी के रूप में जीवन लाल रबड़ी बना रहे हैं। रबड़ी खाने वाले ग्राहक विनय कछवाहा का कहना है कि रबड़ी में जो क्वालिटी पहले थी वही अब भी है। दूसरी दुकानो से हट कर स्वाद बरकरार है। जीवन लाल ने बताया कि उनके पिता और दादा ने रबड़ी का व्यवसाय एक छोटी सी किराये की दुकान में चलाया, अब तीसरी पीढ़ी में इस व्यवसाय को आगे बढ़ाते हुए जीवन लाल ने अपने दादा, पिता से मिले रबड़ी बनाने के गुर ने उन्हें अब इस लायक बना दिया कि जहां उनके पिता और दादाजी किराये की दुकान चलाते रहे अब उसी दुकान के बाजू से जीवन लाल ने पक्की दुकान बना ली है। रबड़ी बनाने में उनके बेटे-पत्नी भी पूरा सहयोग करती है और वे अपने बेटों से भी यह चाहते हैं कि अपने दादा, परदादा से मिले इस व्यवसाय को आगे बढ़ाएं बल्कि जिस स्वाद के लिए यह दुकान जानी पहचानी जाती है वह आगे भी कायम रखें। शहीद उदयचंद वार्ड में रहने वाले जीवन लाल बताते हैं कि दूध से बनने वाली रबड़ी जहां अपनी मिठास के लिए जानी जाती है, वहीं इसे बनाने में कड़ी मेहनत करना पड़ता है, पहले शुद्ध दूध मिल जाने से कम दूध से अधिक रबड़ी निकाली जा सकती थी लेकिन अब शुद्ध दूध मिलना बहुत मुश्किल होता है लेकिन वे अपने दादा और पिता से मिले इस व्यवसाय पर किसी तरह की कोई समझौता नहीं करते। जीवन लाल ने बताया कि वे दूध लेने से पहले अच्छी तरह उसकी शुद्धता की जांच करते हैं इसके बाद ही उस दूध का उपयोग रबड़ी बनाने में करते हैं। उन्होंने बताया कि रंगरेजघाट धर्मशाला के पास पूर्व में व्यायाम शाला का संचालन किया जाता था यहां व्यायाम करने के बाद पहलवान फुन्दी लाल की रबड़ी खाने के लिए आते थे।