मां नर्मदा की सहस्त्रधाराओं के बीच है शिवमंदिर
जिला मुख्यालय से 6 किलोमीटर दूर सहस्त्रधारा दर्शनिक स्थल के साथ धार्मिक महत्व भी रखता है। मां नर्मदा के किनारे स्थित इस क्षेत्र में बड़ी संख्या में लोग पहुंचकर प्रकृति के सौंदर्यता का आनंद उठाते हैं। भगवान शिव की महिमा युगों से चारों ओर देखने मिलती है। कुछ ऐसे भी स्थान हैं जिनका उल्लेख ग्रंथों और पुराणों में भी है। एक ऐसा ही स्थान सहस्रधारा है जो कि मंडला से नजदीक ही स्थित है, पर्यटन के उद्देश्य से यहां दूर-दूर से लोग पहुंचते हैं। बताते हैं कि नर्मदा नदी का जलपान करने के लिए भगवान शिव स्वयं ***** के आकार में यहां विराजमान हो गए थे। यहां नर्मदा सहस्र धाराओं में विभाजित होकर एक विशाल कुंड में गिरती है। जिस कुंड में यह प्रवेश करती है वहां विशालकाय गोल चट्टान है। इसी स्थान पर उत्तरमुखी शिव मंदिर देखने मिलता है। जहां गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित है। यहां जिलहरी भी उत्तरमुखी ही है। अंदर 11 रुद्रों के अलग-अलग आसन है।
पौराणिक मान्यता है कि माहिष्मति का राजा सहस्रबाहु इसी विशाल कुंड में अपनी पत्नियों के साथ जलक्रीड़ा कर रहा था। उसी समय लंकाधिपति रावण वहां पहुंच गया और दोनों का भयंकर युद्ध भी हुआ था। मां नर्मदा की सहस्त्र धाराओं के बीच दो शिव मंदिर स्थित हैं, जो गोंड-राजाओं द्वारा निर्मित माने जाते हैं, इसमें से एक मंदिर माँ नर्मदा के बीचों-बीच टापू पर स्थित है, इस मंदिर तक जाने के लिए पुल बना है, जबकि दूसरा पंचमठा मंदिर नर्मदा की धारा से कुछ दुरी पर स्थित है जिसमें पांच गुम्बक हैं। दोनों मंदिरों के शिखर गुम्बदाकार हैं। दोनों के गर्भ गृह में शिवलिंग स्थापित हैं। पंचमठा मंदिर में श्रद्धालु सावन माह में पूजा करने पहुंचते हैं। यहां पूजारी द्वारा मंदिर की देखरेख की जाती है।