scriptमध्यप्रदेश में यंहा है औषधीय गुण लिए हैं दुर्लभ पलाश | In Madhya Pradesh, there are medicinal properties for rare potassium | Patrika News
मंडला

मध्यप्रदेश में यंहा है औषधीय गुण लिए हैं दुर्लभ पलाश

खिलते हैं सफेद व स्वर्ण रंग के फूल

मंडलाMar 11, 2018 / 11:30 am

shivmangal singh

In Madhya Pradesh, there are medicinal properties for rare potassium
मंगल सिंह

मंडला. बंसत ऋतु में हर पेड़-पौधों में फूल नजर आ रहे हैं। जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में पलाश के पेड़ों पर हर तरफ लालिमा बिखेरते टेसू के फूल लोगों के आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। फूलों से महकती खुशबू से लोगों का मन आनंदित होकर हिलोरे मार रहा है। जिले में पलाश के कुछ पेड़ दुर्लभ प्रजाति के हैं। जिसे संरक्षण की दरकार है। संरक्षण न होने से लोग पेड़ को नुकसान भी पहुंचा रहे हैं। ऐसे ही दो पलाश के पेड़ मोहगांव विकासखंड के अंतर्गत हैं। एक पेड़ मंडला-डिंडोरी रोड पर चाबी के एक किलोमीटर पहले खैरीमाल में है। आसपास गांव में यह पेड़ स्वर्ण पलाश के नाम पहचान बनाया हुआ है। बताया गया कि इस पेड़ की फूल स्र्वण रंग में है। जो कि फरवरी मार्च माह में खिलते हैं। सुंंगधित फूल होने के कारण दूर-दूर से लोग इसे देखने भी पहुंचते हैं। जानकारों की माने तो यह वृक्ष अत्यंत ही विलुप्त प्रजाति का है। पलाश के पुष्प में औषधीय गुण भी छिपे हुए हैं। इसी तरह सफेद पलाश को चमत्कारी पेड़ माना जाता है। यह पेड़ दुर्लभ प्रजाति का है। जानकारों की मानें तो इसके केवल दो पेड़ ही पूरे मध्यप्रदेश में हैं। इस पेड़ के विभिन्न हिस्सों का उपयोग तंत्र क्रियाओं में किया जाता है। इसका एक पेड़ मंडला जिले के सकरी गांव में पाया गया है। शासन ने इसे संरक्षित तो कर दिया है, लेकिन गाहे-बगाहे इसकी जड़ें और फूल चोरी हो रहे हैं। ग्रामीणों का कहना है कि तंत्र-मंत्र के लिए इस पेड़ की जड़ों को खोदा जाता है। सफेद पलाश का पेड़ जिला मुख्यालय से 50 किलोमीटर दूर मोहगांव विकासखंड के जंगलों के बीच बसे सकरी गांव में है। ग्रामीणों का कहना है कि यह पेड़ करीब ढाई सौ साल पुराना है। इसके फूल और जड़ें औषधीय काम में आते हैं। एकलौता पेड़ होने के कारण ग्रामीण खुद ही इसे संरक्षित करते हैं। हालांकि शासन ने यहां संरक्षित प्रजाति होने का बोर्ड भी लगाया है। पेड़ को संरक्षित कर रहे भवेदी परिवार ने बताया कि पेड़ की देखरेख तीन पीढिय़ों से करते आ रहे हैं। जड़ो का उपयोग आदिवासी आम तौर पर तांत्रिक क्रियाओं में करते हैं। कई बार रात में इस पेड़ की जड़ों को खोदा जा चुका है। लोग इसके फूल भी ले जाते हैं। सम्मोहन व गोंड़ी तांत्रिक क्रियायों में इसकी जड़ों का उपयोग किया जाता है। पर्याप्त सुरक्षा नहीं होने के कारण इस पेड़ के अस्तित्व पर संकट छाया हुआ है। पर्यावरण के जानकार राजेश क्षत्री ने बताया कि सफेद व स्वर्ण पलाश का पेड़ दुर्लभ माना जाता है। जिले में मोहगांव विकासखंड में दो पेड़ हैं जो कि काफी पुराने हैं। औषधीय गुण होने के कारण ये पेड़ काफी उपयोगी है। लाल फूल का वैज्ञानिक नाम ब्यूटिमा मोनोस्पर्मा है सफेद पुष्पो वाले लता पलाश को औषधीय दृष्टिकोण से अधिक उपयोगी माना जाता है। सफेद फूलो वाले लता पलाश का वैज्ञानिक नाम ब्यूटिया पार्वीफ्लोरा है जबकि लाल फूलो वाले को ब्यूटिया सुपरबा कहा जाता है। पलाश का हिन्दू धर्म में काफी महत्व है। हिन्दू सेवा परिषद के जिला अध्यक्ष धमेन्द्र सिंह ठाकुर का कहना है कि इस दुर्लभ प्रजाति के पेड़ का धार्मिक मान्यता भी है। सफेद पलाश भगवान विष्णु से जुड़ा हुआ है। दोनो पेड़ों का संरक्षण किया जाए ताकि इस विलुप्त और दुर्लभ प्रजाति को बचाया जा सके। इसके साथ ही इसके पौधे तैयार कर अन्य स्थानों पर पौधारोपण कर इस प्रजाति को बढ़ाया जाए। मोहगांव बीआरसी दीपक कछवाहा ने बताया कि स्वर्ण पलाश के लिए ग्रामीण अब जागरूक होने लगे हैं। स्थानीय लोगों के प्रयास के बाद पेड़ के आसपास चबूतरा का निर्माण किया गया है। इसके साथ ही स्कूली बच्चों को शैक्षणिक भ्रमण व अन्य गतिविधियों के दौरान उक्त पेड़ के महत्व को समझाया जा रहा है। ताकि दुर्लभ प्रजाति के पलाश के पेड़ को संरक्षण मिल सके।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो