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महंगाई से लकड़ी के दाम में लगी आग

locationमंडलाPublished: Apr 08, 2022 01:09:31 pm

Submitted by:

Mangal Singh Thakur

नागरिकों के लिए बनी आफत

महंगाई से लकड़ी के दाम में लगी आग

महंगाई से लकड़ी के दाम में लगी आग

मंडला. इन दिनों लगातार बढ़ रही महंगाई से जीना दूभर हो रहा है। विशेष रूप से गरीब, मध्यम वर्ग के लिए कई तरह की परेशानियां खड़ी हो गई हैं। जीने के लिए सबसे महत्वपूर्ण रोटी, कपड़ा और मकान में रोटी अर्थात भोजन को सबसे पहला स्थान दिया गया है लेकिन वर्तमान में महंगाई ने ऐसा असर दिखाया है कि गरीब वर्ग के लोगों के लिए दो वक्त की रोटी जुटा पाना मुश्किल हो गया है। दरअसल हाल ही में गैस के दाम बढ़कर 972.50 रूपये के करीब पहुंच गए हैं। जिससे कई लोगों ने अब गैस सिलेण्डर का उपयोग बंद कर दिया और पहले की तरह चूल्हे में भोजन पकाने लगे हैं, लेकिन इन गरीबों की मुसीबत यही खत्म होने का नाम नहीं ले रही है अब तक जिस लकड़ी का उपयोग भोजन पकाने के लिए किया जा रहा था लकड़ी की बढ़ती कीमत के चलते लकड़ी टॉल वालों ने लकड़ी के दाम भी बढ़ा दिए हैं जानकारी अनुसार वर्तमान में जलाउ लकडिय़ों के दाम 700 से 800 रूपये प्रति क्विंटल पर पहुंच गए हैं। गरीब घरों की महिलाओं को चूल्हे में भोजन न बनाने पड़े, उनकी आंखें खराब न हों इसके चलते सरकार द्वारा प्रधानमंत्री उज्जवला योजना प्रारंभ की गई थी। जिले में सभी 19 गैस कंपनियों के कुल 2 लाख 30 हितग्राही हैं। इनमें करीब 1 लाख 80 हजार महिला हितग्राहियों को गैस कनेक्शन दिए गए थे लेकिन धीरे-धीरे गैस के दाम इस कदर बढ़ा दिए गए हैं कि धीरे-धीरे उज्जवला हितग्राहियों ने गैस सिलेण्डर का उपयोग ही बंद कर दिया। गैस एजेंसी से मिले आंकड़ों की मानें तो महज 10 प्रतिशत के आसपास ही उज्जवला हितग्राहियों द्वारा गैस सिलेण्डर की रिफलिंग कराई जा रही है। बाकि महिला हितग्राहियों ने पहले की तरह चूल्हा फूंकना शुरू कर दिया है और इस तरह जिले में उज्जवला योजना फेल होती नजर आ रही है।
जंगलों में बढ़ी निर्भरता
लकडिय़ों के दाम बढऩे से विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में जंगली इलाकों से हरे-भरे पेड़ों को काटकर जलाउ लकड़ी के रूप में उपयोग किया जा रहा है। कुछ ग्रामीणों ने बताया कि बाजार में लकडिय़ों के दाम काफी बढ़ गए हैं, इसलिए जंगल में जाकर जो सूखी लकडिय़ां मिलती हैं उसे बीनकर लाकर उसका उपयोग भोजन बनाने में कर रहे हैं। वहीं वन विभाग से मिलने वाली लकडिय़ां आसानी से नहीं मिल रही है।

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