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गोंडवाना लैंड में पानी, पलायन, बेरोजगारी बड़े मुद्दे, इनके बीच है मुकाबला

locationमंडलाPublished: Apr 25, 2019 03:28:11 pm

Submitted by:

shivmangal singh

लचर स्वास्थ्य व्यवस्था, शिक्षा की कमजोर स्थिति, परिवहन के भी हालात अच्छे नहीं

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मंडला. रानी दुर्गावती, दलपत शाह और नारायण शाह के पराक्रम का गवाह गोंडवाना लैंड आज पानी, पलायन, बेरोजगारी और कमजोर स्वास्थ्य सेवाओं से जूझ रहा है। मंडला का नैनपुर क्षेत्र अंग्रेजों के जमाने में ही रेलवे से जुड़ गया था लेकिन बाद में जब नैरोगेज चलन के बाहर हो गई तो रेल सेवा भी यहां से ठप हो गई। मंडला शहर आज भी रेलवे जैसी बुनियादी सुविधाओं से नहीं जुड़ सका है। ये शहर आसपास के बड़े शहरों के लिए सड़क मार्ग पर ही निर्भर है। उस पर भी मंडला-जबलपुर हाईवे की दुर्दशा लोगों को खून के आंसू रुला रही है। यहां रेलवे की सेवाओं का विस्तार नहीं हो सका, इस वजह से व्यापार, रोजगार और शिक्षा को बढ़ावा नहीं मिल सका। ग्रामीण अंचल से पलायन भयावह स्थिति में हैं। इस बार इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी ने अपने पुराने खिलाड़ी फग्गन सिंह कुलस्ते को ही मैदान में उतारा है। फग्गन सिंह कुलस्ते का मुकाबला कांग्रेस के कमल मरावी से होगा। कमल मरावी कांग्रेस में तो नए हैं लेकिन क्षेत्र में उनकी गोंडवाना गणतंत्र पार्टी के नेता के रूप में पहले से है।
मंडला शहर के लेबर चौक पर काम की तलाश में हर रोज सैकड़ों महिलाएं और पुरुष पहुंचते हैं। इनमें से कुछ को ही काम मिलता है बाकी को मजबूरन घर लौटना पड़ता है। बम्हनी बंजर निवासी अंबिका कुमार जंघेला और शिवकुमार जंघेला को काम नहीं मिला तो घर मायूस लौट रहे थे। पूछने पर बताया क्या करूं गांव में कोई काम तो है नहीं, यहां महीने में 12 से 15 दिन काम मिल जाता है। बड़ी खैरी गांव से आईं मुन्नीबाई मरावी, द्रौपदी बाई, सावन यादव कहते हैं कि गांव में भी कोई काम नहीं है। काम की तलाश में रोज आते हैं किसी दिन काम मिल जाता किसी दिन ऐसे ही लौट जाते हैं। बकछेरा निवासी किसान विष्णुदास पड़वार और ट्रक पर कंडक्टरी करने वाले युवक शिवकुमार यादव कहते हैं कि गांवों में मुद्दे तो बहुत हैं लेकिन इतने मुद्दों को एकदम से दूर कौन करेगा। सबसे बड़ा मुद्दा तो रोजगार का है। खेतों की सिंचाई के पानी नहीं मिलता। बिजली कटौती अलग से होने लगी है। रामनगर निवासी नौमी झारिया और सुलोबाई कहती हैं कि क्षेत्र के नेता बातें बहुत करते हैं लेकिन काम कोई नहीं करता। यहां पर बड़ी संख्या में अभी लोग प्रधानमंत्री आवास और उज्ज्वला के लिए चक्कर काट रहे हैं लेकिन सेक्रेटरी और सरपंच कोई सुनवाई नहीं करते।
चुटका और मनेरी भी नहीं रोक सके पलायन
चुटका परियोजना ने मंडला को अंतराष्ट्रीय पटल पर ख्याति तो दिलाई लेकिन यहां की माली हालत को सुधारने में ये परियोजना असफल रही। 1200 एकड़ जमीन पर 1700 करोड़ रुपए की लागत से बनने वाले परमाणु बिजली संयत्र का काम बेहद धीमी गति से आगे पढ़ रहा है। 700 मेगावाट के बनने वाले इस प्लांट का भविष्य अधर में है लेकिन ग्रामीणों पर विस्थापन और विकिरण के भय की तलवार 24 घंटे लटकी रहती है। मनेरी में भी एलपीजी गैस के बॉटलिंग प्लांट की नींव रखी गई लेकिन ये प्लांट पलायन को नहीं रोक सका।

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