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दो वक्त की रोटी के लिए महानगर की ओर पलायन

locationमंडलाPublished: Nov 28, 2021 09:22:10 am

Submitted by:

Mangal Singh Thakur

ग्रामीण क्षेत्रों में काम की कमी, नहीं हो पा रहा परिवार का पालन पोषण

दो वक्त की रोटी के लिए महानगर की ओर पलायन

दो वक्त की रोटी के लिए महानगर की ओर पलायन

दो वक्त की रोटी के लिए महानगर की ओर पलायन
मंडला/निवास। कोरोना महामारी संक्रमण के चलते पूरा देश लॉकडाउन था। महामारी से स्थिति काबू होते ही लॉकडाउन के बाद पूरा देश अनलॉक होना शुरू हो गया और पलायन कर गए मजदूर और ग्रामीण किसी तरह जद्दोजहद करते हुए अपने गांव पहुंचे। जहां उन्हें मनरेगा के तहत कार्य तो मिला, लेकिन अब गांवों में कोई काम नहीं बचा, वहीं किए गए कार्यो का कई मजदूरों को भुगतान तक नहीं किया गया। जिसके कारण एक बार फिर ग्रामीण जहां से आए थे काम की तलाश में फिर से वहीं के लिए लौटने लगे हैं। जिले के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्रों के ग्रामीण दूसरे जिले, महानगर, राज्यों में काम की तालाश में पलायन शुरू कर दिए है।
जानकारी अनुसार जिले के विकासखंड नारायणगंज और निवास क्षेत्र से एक बार फिर बड़ी संख्या में ग्रामीणों का पलायन शुरू हो गया है। जिले के ग्रामीण प्रतिवर्ष काम की तलाश में पड़ोसी जिले, महानगर समेत अन्य राज्यों में काम की तलाश में जाना शुरू कर दिए है। महामारी की स्थिति सामान्य होते ही बस स्टेंड में पलायन करने वालों को देखा जा सकता है। सब कुछ सामान्य होने के चलते श्रमिकों की संख्या तेजी से बढऩे की संभावना जताई जा रही है। प्रशासन दावा कर रहा है कि मजदूरों के लिए जिले में पर्याप्त कार्य है। लेकिन पलायन कर रहे मजदूरों को देखकर नहीं लगता है कि जिले लोगों के कार्य है। यहां कराए गए कार्यो की भी मजदूरी समय पर नहीं मिल रही है। जिससे इन्हेंं अपने परिवार का पालन पोषण करने में परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
बता दे कि जिले के कई क्षेत्रों में सिंचित भूमि न होने के कारण ग्रामीण खेती नहीं कर पाते है। जिले में एक बहुत बड़ा क्षेत्रफल पठार का भी है, यह भूमि सिंचित ना होने के कारण ग्रामीण इस भूमि में खेती नहीं कर पा रहे है। जिससे पठारी भूमि स्वामियों को आर्थिक परेशानी के साथ पलायन करना उनकी मजबूरी बन जाती है। सूखी जमीन में लोग फसल की पैदावार कैसे करें। सरकार व स्थानीय जनप्रतिनिधि चाहे तो नहर व अन्य जल स्त्रोत के माध्यम से पानी की व्यवस्था करा सकते हैं।
निवास से सैकड़ों की संख्या में हो रहा पलायन :
बता दे कि सरकार भले ही गांव में ही रोजगार देने की योजनाओं के साथ अनेक दावे करे लेकिन धरातल पर तो इन योजनाओं की तस्वीर कुछ और ही दिखती है। मंडला जिले के आदिवासी बाहुल्य तहसील निवास और नारायणगंज में रोजगार के अभाव में ग्रामीणों के पलायन की कुछ ऐसे ही तस्वीरें सामने आई हैं, जिन्हें देखकर साफ अंदाजा लगाया जा सकता है कि सैकड़ो की संख्या में हर रोज महिला, पुरुष, बूढ़े और जवान सभी काम की तलाश में अन्य राज्यों और महानगरों की ओर निकल पड़े है। रोजाना ऐसे परिवार निवास बस स्टैंड व आसपास के सड़क किनारे अपने परिवार के साथ अपना जरूरतमंद समान रखे बस का इंतजार करते देखे जा सकते हैं। निवास तहसील के ग्राम जवैधा, हीरापुर, मसूरघुघरी, तौंरदरा, मोहगांव, बम्हनी, घाटमगांव, हिरनाछापर, जिल्हटी, कोहानी, छिंदगांव मेहरासिवनी, पद्दीकौना, जंगलिया, पाडऱपानी, बाहुर, पायली, बस्तरी, जंगलिया, मोह पानी, हाथीतारा, ग्वारा, भलवारा, हरदुली जुझारी, दादर तेंदूवार, भरद्वारा, बंदरिया, ददरगांव, देवडोंगरी, फड़की रेयत, सिवनी माल, चकदेही, कापा, खमरिया छपरा, मवई बंजा टोला सहित आधा सैकड़ा गांवों से हजारों की संख्या में मजदूर पलायन कर रहे हैं।
मनरेगा भी नहीं रोक पाई पलायन :
ग्रामीणों को गांव में ही रोजगार देने की गारंटी देने वाली रोजगार गांरटी योजना भी मजदूरों को जीविकोपार्जन के पर्याप्त अवसर प्रदान नहीं कर पा रही है। जिसका खामियाजा रोज कमाने खाने वाले ग्रामीणों को भुगतना पड़ रहा है। गांवों में पर्याप्त कार्य ना मिलने के कारण मनरेगा से ग्रामीणों का मोहभंग हो चुका है। ग्रामीणों को मनरेगा में किए गए कार्य की राशि उनके खाते में आते-आते महिनों बीत जाते है, लेकिन ग्रामीणों को तो रोज कमाना ओर खाना पड़ता है। जिसके कारण ग्रामीण काम की तालाश में पलायन कर रहे है।
रोजगार के संसाधनों का अभाव :
निवास क्षेत्र में कहने को तो औद्योगिक क्षेत्र मनेरी आता है लेकिन इस औद्योगिक क्षेत्र में मंडला जिले की अपेक्षा जबलपुर सहित अन्य जिलों के मजदूर अधिक लाभान्वित हो रहे हैं। इसके अतिरिक्त जिले में कहीं भी कोई बड़ा उद्योग नहीं है, जिससे क्षेत्र के लोगों को रोजगार मिल सके और पलायन रूक सके।

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